Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kebatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुसढे बहुसंकप्पे आसवसत्ती पलिउच्छन्ने उट्ठियवायं पश्यमाणे मा मे केइ अदक्खू, अनाणपमायदोसेणं सत्यं मूढे धमं नाभिजाणइ,|| अट्टा प्या माणव ! कंमकोविया, जे अणुवरया अविज्जाए पलिमुक्खमा आवट्टमेव अणुपरियद॒तित्तिबेमि।१४६१०५०१॥ आवन्ती केयावन्ती लोए अणारंभजीविणो तेसु एत्थोवरए तं झोसमाणे अयं संघीति अदक्खू, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणेत्ति अनेसी, एस मग्गे आरिएहिं पवेइए उठ्ठिए नोपमायए० जाणिन्तु दुक्खं पत्तेयं सायं, पुढोछंदा इह माणवा, पुढो दुक्खं पवेइयं, से अविहिंसमाणे अणवयमाणे पुट्ठो फासे विषणुत्रए । १४७। एस समियापरियाए वियाहिए जे असत्ता पावेहिं कस्मेहिं, उदाह ते आयंका फुसंति, इति उदाह धीरे ते फासे पुट्ठो अहियासइ, से पुस्विंपेयं पच्छापेयं भेउरधम्मं विद्धंसणधम्ममधुवं अणिइयं असासयं चयावचइयं विष्परिणामधम्म पासह एयंरुवसंधिं ।१४८।समुप्पेहमाणस्सइकाययणस्यस्स इह विष्पमुक्कस्स नत्थिमग्गे विरयस्सतितिबेमि । १४९। आवंती केयावंती लोगसि परिगहावंती से अयं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा एएसु चेव परिग्गहावंती, एतदेव एगेसिं महन्मयं भवइ लोगवि (प्र० चि) तं च णं उहाए एए संगे अवियाणओ। १५० से सुपडि बद्धं सूवणीयंति नच्चा पुरिसा परमचक्खू विपरिक्कमा एएसु चेव बंभचेति बेमि, से सुयं च मे अज्झत्थयं च मे बंधप्पमुक्खो, अझत्थेव (५० भुज्झज्झत्थेव) इत्थ विरए अणगारे दीहरायं तितिक्खए, पमत्ते बहिया पास अय्यमत्तो परिव्वए, एयं मोणं सम्म अणुवासिनासित्तिबेमि।१५१ अ०५३०२॥ ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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