Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असमारंभमाणस्स इच्छेते आरंभा परिणाया भवंति, (तं परिणाय मेहावी व सयं अगणिसत्थं समारंभे नेवऽण्णेहिं अगणिसत्थं समारंभावेज्जा अगणिसत्थं समारंभमाणे अण्णे न समणुजाणेजा) जस्सेते अगणिकम्मसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मेत्तिबेमि ।३९। अ० १३० ४ ॥ तंणो करिस्सामि समुट्ठाए, मत्ता मइमं, अभयं विदित्ता, तं जे णो करए, एसोवरए, एत्थोवरए, एस अणगारेत्ति पवुच्चई| | १४०। जे गुणे से आवटे जे आवट्टे से गुणे । ४१।उड्ढं अवं तिरियं पाईणं पासमाणे रुवाइं पासति, सुणमाणे सद्दाई सुणेति, उड्ढं अवं पाईणं मुच्छमाणे वेसु मुच्छति, सद्देसु आवि । ४२। एस लोए वियाहिए एत्थ अगुत्ते अणाणाए। ४३। पुणो पुणो गुणासाए, वंकसमायारे । ४४ । पमत्तेऽगारमावसे १४५। लजमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे पवदमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइकम्मसमारंभेणं वणस्सइसत्थं समारभमाणा अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति, तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाती (प्र० जरा) मरणभोयणाए दुक्खपडिधायहे से सयमेव वणस्सइसत्थं समारंभइ अण्णेहिं वा वणस्सइसत्थं समारंभावेइ अण्णे वा वणस्सइ सत्थं समारभमाणे समणुजाणइ, तं से अहियाए तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठए सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिंणायं भवति एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु २ एस खलु णरए, इच्च्त्थं गड्ढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइकम्मसमारंभेणं वणस्सइसत्थं समारंभमाणे अण्णे | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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