Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandis अणगारा मोत्ति एगे पश्यमाणा जमिणं विरूविरूवेहिं सत्थेहिं वाउम्मसमारंभेण वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे|| विहिंसति तत्थ खलु भगवया परण्णिा पवेइया इमस्सचेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाईभरणमायणाए दुक्खपडिघायहे| से सयमेव वाउसत्थं समारभति अण्णेहिं वा वाउसत्थं समारंभावेइ अण्णे वाउसत्थं समारंभंते समणुजाणति, तं से अहियाए तं से अबोहीए, से तं संबुज्जमाणे आयाणीयं समाए सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिंणायं भवति एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु णिरए, इच्चत्थं गड्ढिए लोए जमिणं विरुववेहिं सत्थेहिं वाउम्मसमारंभेण वाउसत्थं समारंभेमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति ।५९ से बेमि संति संपाइमा पाणा आहच्च संपयंति यफरिसंच खलु पुट्ठा एगे संघायमावजंति, जे तत्थ संधायमावजंति ते तत्थ परियावज्जति जे तत्थ परियावजंति ते तत्थ उद्दायंति, एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्छेते आरंभा) अपरिणाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्छेते आरंभा परिण्णाया भवंति, तं परिण्णाय मेहावीणेवसयंवाउसत्थं समारंभेजा णेवण्णेहिं वाउसत्थं समारंभावेजाणेवऽण्णे वाउसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा जस्सेते वाउसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मेत्तिबेमि ।६० एत्थंपि जाणे (प्र० ॥) उवादीयमाणा जे आयारे ण मंति आरंभमाणा विणयं वयंति छंदोवणीया अझोववण्णा आरंभसत्ता पकरंति संग ।६१।से वसुमं सव्वसम्ण्णागयपण्णाणेणं अयाणे अकरणिज्ज पावं कम्मं णो अण्णेसि, तंपरिण्णाय मेहावी व सयं छज्जीवनिकायसत्थं समारंभेजाणेवऽण्णेहिं छज्जीवनिकायसत्तं समारंभावेजाणेवऽण्णे छज्जीवनिकायसत्थं || श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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