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(ज) शलभासन
पेट के बल लेट जायें तथा दोनों हाथों को पीछे ले जाकर एक दूसरे को बांध लें। फिर पूरक करते हुए छाती को और दोनों पैरों को यथासम्भव ऊपर उठायें और कुम्भक करें। न ही मन २० तक करें। फिर पूर्ववत स्थिति में आ जायें। इस प्रक्रिया को तीन बार करें। यह मेरुदण्ड के निचले भाग के लिये विशेष लाभदायक है ।
(झ) धनुरासन
पेट के बल लेटें । अपना ध्यान मणिपुर चक्र में रखें। पूरक करते हुए, दोनों हाथों से दोनों पैरों को पकड़कर कुम्भक करें। फिर पूर्ववत स्थिति में आ जायें। इसे तीन बार करें। इससे पेट की चरबी कम होती है, गैस दूर होती है, पेट के रोग नष्ट होते हैं, कब्ज में लाभ होता है, भूख खुलती है, छाती का दर्द दूर होता है, हृदय मजबूत बनता है, गले के रोग नष्ट होते हैं, आवाज मधुर होती है, श्वसन प्रक्रिया सुव्यवस्थित चलती है, मुखाकृति सुन्दर बनती है, आँखों की रोशनी बढ़ती है और तमाम रोग दूर होते हैं, हाथ-पैर का कम्पन रुकता है, पेट के स्नायुओं में खिंचाव आने से पेट को अच्छा लाभ होता है, जठराग्नि तेज होती है और पाचन शक्ति बढ़ती है, वायु रोग नष्ट होता है, मेरुदण्ड लचीला व स्वस्थ बनता है। सर्वाइकल स्पाँडेलाइटिस (cervical spondylytis), कमर दर्द एवमं उदर रोगों में लाभदायक है । इसमें भुजंगासन और शलभासन का समावेश होने से दोनों आसनों का लाभ मिलता है। स्त्रियों के लिए ये आसन विशेष लाभकारक है। इससे मासिक धर्म के विकार और गर्भाशय के तमाम रोग दूर होते हैं।
(ञ) ताड़ासन
सीधे खड़े होकर कुम्भक करते हुए दोनों हाथों को पार्श्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठायें और पैर के पंजे भी उठायें ताकि पूरा शरीर मात्र दोनों पंजों पर रहे तथा दृष्टि एकदम ऊपर आकाश की ओर रहे। बाद में यथावत पूर्व स्थिति में आ जायें। इस प्रक्रिया को तीन बार करें। यह वृद्धावस्था में शरीर के सन्तुलन बनाये रखने के लिये विशेष लाभदायक है। इससे फेंफड़े मजबूत होते हैं ।
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