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इस प्रकार के निदानों में यथार्थता होने के लिए काफी अधिक अभ्यास तथा उच्च श्रेणी की संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। दृश्यात्मक निदेशात्मक उपचार - visual instructive Healing
निर्देशों को दृश्यात्मक अथवा मौखिक तौर पर दिये जा सकते हैं। यदि निदेश चित्रों में दिये जाते हैं, तो यह दृश्यात्मक निदेश कहलाते हैं। इसको दृश्यीकरण अथवा प्रतिबिम्ब के द्वारा उपचार भी कहते हैं। यह उपचारक या रोगी के द्वारा अथवा दोनों के द्वारा किया जा सकता है। प्राणिक उपचार की तरह दृश्यीकरण अथवा प्रतिबिम्बीकरण को बार-बार दोहराना पड़ता है। यह अति आवश्यक एवम् महत्वपूर्ण है कि उपचारक अपने को रोगी से निस्पृह रखे ताकि वह रोगी की भौतिक उपचेतनात्मक बुद्धि को दिए गये दृश्यात्मक निर्देशों को अपने से अलग कर सके। रोगी के चित्त अथवा प्रतिबिम्ब को रोगी के आज्ञा चक्र (9) के अन्दर दृश्यीकृत करिए।
निदेश को मृदुता किन्तु दृढ़तापूर्वक दीजिए | ज्यादा अधिक इच्छाशक्ति का उपयोग न कीजिए, अन्यथा रोगी की भौतिक उपचेतनात्मक बुद्धि इसका विरोध करेगी। यदि उपचारक रोगी की भौतिक उपचेतनात्मक बुद्धि पर हावी हो जाता है, तो वह आंशिक रूप से कुंठित हो जाती है और निदेशों का तुरन्त पालन नहीं कर पायेगी।
प्रयोग के चित्र या प्रतिबिम्ब वास्तविक हो सकते हैं अथवा प्रतीतात्मक हो सकते हैं। वास्तविक अथवा अक्षरात्मक /शब्दात्मक चित्रण के लिए शरीर के रचना शास्त्र का गहन अध्ययन/परिप्रेक्ष्यता की आवश्यक्ता होती है। जिनका रचना शास्त्र का ज्ञान सीमित है, उनके लिए प्रतीतात्मक चित्र अथवा प्रतिबिम्ब का उपयोग करना सुगम होता है। दृश्यीकरण को प्रति सत्र में लगभग दस से पन्द्रह मिनट तक दिन में एक बार अथवा कई बार करना होता है जब तक कि उपचार पूरा न हो जाए। (ख) कार्य प्रणाली
(१) रोगी के चेहरे को दृश्यीकृत कीजिए।
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