Book Title: Adhyatma aur Pran Pooja
Author(s): Lakhpatendra Dev Jain
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1050
________________ पुस्तक को पढ़ने के दो लक्ष्यों अर्थात् (१) स्व-आत्मा की उन्नति एवम् (२) वैयावृत्य, विशेषकर चतुर्विध संघ की. में से प्रथम लक्ष्य की उपलब्धि हो सकेगी। ___ यदि आपने उक्त क्रम ७, ८, ६, व १२ में उपरोक्तानुसार दक्षता अथवा अभ्यास नहीं भी किया, तब भी आप प्रयास तो कर सकते हैं। अध्याय ३ प्राण ऊर्जा द्वारा अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश पंच परमेष्ठी को साक्षात नमस्कार - (क) जिन प्रतिमा अथवा गुरु का साक्षात दर्शन करें। तत्पश्चात् पंच परमेष्ठी से प्रार्थना करते हुए विद्युत बैंगनी (दिव्य) ऊर्जा (ev), जिसका वर्णन भाग ५, अध्याय ८ में दिया है, को अपने ब्रह्म-चक्र (11) में ग्रहण करें एवम् उसको अपने हाथ-चक्र के द्वारा प्रेषण करते हुए. सुनिश्चित करलें कि आप ev को समुचित मात्रा में ग्रहण कर रहे है। (ख) फिर अपना ध्यान आपके सामने विराजित जिन प्रतिमा अथवा गुरु के चरणों में केन्द्रित करते हुए, ध्यान करें कि आपके ब्रह्म-चक्र से नमस्काररूपी ऊर्जा निकल कर उस प्रतिमा अथवा गुरु के श्री चरणों में लगातार जा रही है तथा आपके ब्रह्म-चक्र से उनके चरणों के मध्य एक ऊर्जा का पुल बन गया है तथा इस पुल के माध्यम से आप उनके श्री चरणों में शिरोनति कर रहे हैं, मानों आपका सिर शिरोनति की स्थिति में सीधा ही उनके श्री चरणों से स्पर्श कर रहा है। इस स्थिति में अत्यन्त भक्तिपूर्वक रह कर उनके चरणों के दिव्य स्पर्श का आनन्द उठाइये। कदाचित् आपको ऐसा अनुपम सुख मिलेगा, जिसको शायद पहले अनुभव न किया हो। (ग) अब विचार कीजिए कि उस जिन प्रतिमा अथवा गुरु के श्री चरणों की पवित्र आशीर्वादात्मक ऊर्जा उनके श्री चरणों से निकल कर आपके ब्रह्म-चक्र के माध्यम से आपके समस्त शरीर में प्रवेश करके आपको आल्हादित एवम् ६.८

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