Book Title: Adhyatma aur Pran Pooja
Author(s): Lakhpatendra Dev Jain
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1049
________________ भविष्यति” के अनुसार इन ही के माध्यम से लक्ष्य अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है, अन्य कोई रास्ता नहीं है, न अन्य कोई शरण है। ति हृदय पर ध्यान-चिन्तन, जिसका वर्णन भाग ५ के अध्याय ३ के क्रम (ग) में दिया है, उराका अनेकों बार अभ्यास कर लिया होगा। इसमें वर्णित हृदय-चक्र से गुलाबी रंग की ऊर्जा, ब्रह्म-चक्र से सफेद चमकीली ऊर्जा, हृदय तथा ब्रह्म - चक्र से सुनहरे रंग की ऊर्जा को विश्व को प्रेषित करते हुए एवम् इनके द्वारा विश्व को लपेटने का तथा इसके पश्चात् ब्रह्म-चक्र में अत्यन्त तेजमयी ॐ के विराजमान होने का समुचित रूप से भव्य दिदर्शन कर लेने का भी अभ्यास कर लिया होगा। ७. प्राण ऊर्जा के जांचने ivarming) , जिसका वर्णन भाग ५ के अध्याय ४ के क्रम ५ (ड.) में दिया है, काफी दक्षता प्राप्त कर ली होगी। प्रारम्भिक व माध्यमिक प्राणशक्ति उपचार में कम से कम अर्धदक्षता प्राप्त कर ली होगी। रंगीन प्राण ऊर्जा का अध्ययन कर लिया होगा, जिसका वर्णन भाग ५ के अध्याय ८ में दिया है, तथा जिसके द्वारा उपचार का कुछ-कुछ अभ्यास कर लिया होगा। १०. साधरणत. भाग ५ का समस्त अध्ययन कर लिया होगा, विशेषकर अध्याय २३, ३३, ३४ व ३६ का। ११. विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा जिसका वर्णन भाग ५ के अध्याय ८ के क्रम २० में दिया है. उसको परमात्मा के आशीर्वाद के फलस्वरूप अपने ब्रह्म-चक्र में प्राप्त करने एवम् इसको प्रेषित करने का समुचित अभ्यास एवम् अनुभव प्राप्त कर लिया होगा एवम् उसके प्रति संवेदनशीलता हासिल कर ली होगी। १२. भाग ५ के अध्याय २३ के क्रम ७ में वर्णित चक्र व आभामण्डल के कवच तथा अध्याय ३६ के क्रम ५ में बतायी गयी विधि का कुछ अभ्यास कर लिया होगा। यदि ऐसा है तो, मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस भाग में वर्णित अध्यात्म में प्राण ऊर्जा का योगदान प्रकरण को पढ़कर, उसका अभ्यास करने से इतने दिव्य अनुपम आनन्द मे मग्न हो सकते हैं जिसमें से वापस आने का मन नहीं करेगा। तभी इस ६.७

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