Book Title: Adhyatma aur Pran Pooja
Author(s): Lakhpatendra Dev Jain
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1057
________________ अच्छा महसूस करेंगे। इस अनुभव को जीवन की एक अमूल्य निधि समझकर, इसकी अनुभूति ने ही चुनः पुनः आनन्द उठायें। __ आत्म शुद्धि मंत्र ॐ ह्रीं अमृते अमृतोभ्दवेः अमृतवर्षीणी अमृतं स्त्रावय स्त्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लू द्रां द्रां द्रीं द्रीं दावय दावय सं हं क्ष्वी क्ष्वी हैं सः स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा अस्य आत्म शुद्धि कुरू कुरू स्वाहा। उक्त अनुभवों को सर्वसाधारण में न बतायें, क्योंकि लोग आपका कदाचित् विश्वास न करें। अध्याय 5 अध्यात्म क्षेत्र में प्राण ऊर्जा के प्रवेश के सम्बन्ध में अनुसंधान की आवश्यक्ता विद्वज्जनों एवम् त्यागी गणों से विनम्र निवेदन है कि वे इस क्षेत्र में, जो सम्भवतः नया है. अपने सृजनात्मक एवम् सकारात्मक बुद्धि से प्रयोग एवम् अनुसंधान करें और जनकल्याण के लिए उचित मार्ग दर्शन देने की कृपा करें। सन्दर्भ - ___ अष्टपाहुड विरचित श्री कुन्दकुन्दाचार्य / 2. लघु विद्यानुवाद 3. आचार्य श्री 108 दयासागर जी महराज का मार्गदर्शन / 4. प्रस्तुतकर्ता के निजी अनुभव / अन्त मङ्गलाचरण एस सुरासुर-मणुसिंद-वंदिदं धोद-घाइ-कम्म-मलं। पणमामि वड्ढ़माणं. तित्थं धम्मस्स कत्तारं / / 24 / / अर्थ - जो इन्द्र, धरणेन्द्र और चक्रवर्तियों से वंदित, घातिकर्मरूपी मल से रहित और धर्म-तीर्थ के कर्ता हैं, उन वर्धमान (अथवा सन्मति, वीर, अतिवीर, महावीर) तीर्थङ्कर को मैं नमस्कार करता हूँ / / 24 / / 6.15

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