Book Title: Adhyatma aur Pran Pooja
Author(s): Lakhpatendra Dev Jain
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 1025
________________ अध्याय – ३७ प्राण ऊर्जा क्षेत्र में खोज व अनुसंधान Discovery and Research in the field of . Pranic Energy (१) भूमिका- Introduction प्राण ऊर्जा एवम् उसके द्वारा चिकित्सा का स्पष्ट वर्णन उपलब्ध जैन शास्त्रों में नहीं मिलता। यदि सर्वज्ञ के कथन की उपलब्धता होती, तो वह पूर्ण एवम् प्रमाणित होता एवम् उसमें आगे शोध करने की गुंजाइश नहीं होती। जैसा कि भाग ४ के अध्याय २ में वर्णित है, वर्तमान युग में श्री चोआ कोक सुई ने इस विद्या का गहन अध्ययन च काफी खोज के पश्चात प्रस्तुत किया है, यद्यपि इसका आधार जैन साहित्य प्रतीत होता है। वर्तमान पीढ़ी का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह उपलब्ध ज्ञान का बुद्धिमता पूर्वक विकास कर एवम् उसकी गुणवत्ता बढ़ाकर अगली पीढ़ी को सौंपे। जिस प्रकार विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में अनुसंधान की प्रक्रिया चलती रहती है, उसी प्रकार प्राण-ऊर्जा के क्षेत्र में भी आवश्यक्ता है। आधुनिक खोज- Modern Findings (क) किये गये अध्ययन एवम् प्रयोग (१) १६३६ में सेम्योन डेविडोविच किर्लियन व उनकी पत्नी ने तीव्र आवृत्ति के विद्युतीय क्षेत्र पर आधारित किर्लियन (Kirlian) फोटोग्राफी का विकास किया जिसका न दिखाई देने वाले ऊर्जा शरीर या जीव द्रव्य शरीर के कुछ भागों के चित्र लेने में उपयोग किया जाता है। किलियन दम्पत्ति के अध्ययन के आधार पर यह देखा गया है कि कोई भी रोग दिखाई देने वाले शरीर को प्रभावित करने से पहले जीवद्रव्य शरीर को प्रभावित करता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057