Book Title: Adhyatma aur Pran Pooja
Author(s): Lakhpatendra Dev Jain
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1046
________________ ताकू गालै ताकू मंगल कहिये तथा · मंग" कहिये सुखकू ल्यावै दे ताकू मंगल कहिये सो यातै दोऊ कार्य होय हैं। उच्चारणते विघ्न टलैं हैं, अर्थ विचारे सुख होय है, याही ते याकू मंत्रनिमें प्रधान कह्या है, ऐसें तौ मंत्रके आश्रय महिमा है। बहुरि पंचपरमेष्ठीकू नमस्कार यामैं है - ते पंचपरमेष्ठी अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु ये हैं सो इनिका स्वरूप तौ गंथनिमैं प्रसिद्ध है, तथापि कछू लिखिये है : - x -- x - x - संसारमैं चतुर्गतिविर्षे अनेक प्रकार सुखदुःखरूप भया भ्रमै है, तहां कोई काल ऐसा आवै जो मुक्त होना निकट आवै तब सर्वज्ञके उपदेशका निमित्त पाय अपना स्वरूपकू अर कर्मबंधका स्वरूपकू अर आपमें विभावका स्वरूपकू जानै इनिका भेद ज्ञान होय तब परद्रव्यकू संसारके निमित्त जानि तिनितें विरक्त होय अपने स्वरूपका अनुभवका साधन करै दर्शनज्ञानरूप स्वभावविर्षे स्थिर होनेका साधन करै तब याकै बाह्य साधन हिंसादिक पंच पापनिका त्यागरूप निर्ग्रन्थपद सर्व परिग्रहका त्यागरूप निर्ग्रन्थ दिगंबर मुद्रा धारै पांच महाव्रत पांच समितिरूप तीन गुप्तिरूप प्रवर्ते तब सर्व जीवनिकी दया करनेवाले साधु कहावै. तामैं तीन पदवी होय-- जो आप साधु होय अन्यकू साधुपद की शिक्षादीक्षा देव सो लौ जाचार्य कहा, अर साबु होय जिनसूत्रकू पढ़े पढ़ावै सो उपाध्याय कहावै, अर जो अपनें स्वरूपका साधनमैं रहे सो साधु कहावै अर जो साधु होय अपनें स्वरूपका साधनका ध्यानका बलते च्यारि घातिकर्मनिका नाशकरि केवलज्ञान केवलदर्शन अनंतसुख अनंतवीर्यकं प्राप्त होय सो अरहंत कहावै, तब तीर्थंकर तथा सामान्यकेवली जिन इंद्रादिककरि पूज्य होय तिनिकी वाणी खिरै जिसतै सर्व जीवनिका उपकार होय अहिंसाधर्म का उपदेश होय सर्व जीवनिकी रक्षा करावै यथार्थ पदार्थनिका स्वरूप जनाय मोक्षमार्ग दिखावै ऐसी अरहंत पदवी होय हैं, बहुरि जो च्यारि अघाति कर्मकाभी नाशकरि सर्व कर्मनिरौँ रहित होय सो सिद्ध कहावै । ऐसें ये पांच पद हैं, ते अन्य सर्व जीवनित महान हैं ताते पंचपरमेष्ठी कहानैं हैं, तिनिके नाम तथा स्वरूपके दर्शन तथा स्मरण ध्यान पूजन नमस्कारतें अन्य जीवनिके शुभपरिणाम होय हैं तातैं पाप का नाश होय है, वर्तमानका विघ्न विलय होय है, आगामी पुण्यका बंध होय है तातें स्वर्गादिक शुभगति पावै है। अरि इनिकी अज्ञानुसार प्रवर्त्तनंत परंपराकरि संसारतें निवृत्तिभी होय है तातें ये पंच परमेष्ठी सर्व जीवनि के उपकारी परमगुरु हैं, सर्व संसारी जीवनिकै पूज्य हैं। ............. ऐसैं जिनमतमैं इनि पंच परमेष्ठीका महानपणां प्रसिद्ध ६.४

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