Book Title: Adhyatma aur Pran Pooja
Author(s): Lakhpatendra Dev Jain
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1014
________________ अध्याय ३५ प्राण ऊर्जा के प्रसंग में अर्हत ध्यान Arhatic Meditation in the context of Pranic Energy (१) अर्हत ध्यान द्वारा प्राण ऊर्जा का परावर्तन जैसा कि भाग ४ के अध्याय ११ के क्रम ( 2 ) में वर्णन किया गया है कि 2 का 8 से उच्च सम्बन्ध है । काम चक्र की यौन ऊर्जा का एक अंश प्राणशक्ति की उच्च कोटि की ऊर्जा में परावर्तित होता है, जिसको 8 व 11 के सुचारु रूप से परिचालन में प्रयोग होता है । शक्तिशाली काम चक्र जीवन में उन्नति के लिए सहायक होता है । स्वस्थ जीवन में कामेच्छा एवम् संभोग की प्रवृत्ति अनादिकालीन संस्कारों के कारण स्वाभाविक है । किन्तु किसी कारणवश यदि यह इच्छाएं दब जाएं अथवा दबा दी जाएं और यौन ऊर्जा का समुचित सकारात्मक उपयोग न हो पाये, तो ये यौन विकृतियों के रूप में उभर सकती हैं जैसे अध्याय २४ के क्रम १० में वर्णित मनोरोग । ब्रह्मचारियों एवम् त्यागीगण जो ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करते हैं, उनके संयम एवम् धार्मिक चर्या से यह यौन ऊर्जा उच्च कोटि की ऊर्जा में परावर्तित होती रहती है, जो उनके आत्मिक उत्थान के काम आती है । इस प्रकरण में जो अर्हत ध्यान का प्रसंग है, उसमें प्राणशक्ति उपचार की निर्धारित संस्थायें यौन ऊर्जा को उच्च कोटि की ऊर्जा में परावर्तन करने का विज्ञान एवम् कला सिखाते हैं जिसमें वह परावर्तित ऊर्जा मस्तिष्क के कोशिकाओं को अधिक सक्रिय करती हैं। (२) अर्हत ध्यान के लाभ इस ध्यान के नियमित रूप से करने से निम्न लाभ होते हैं:(क) ऊर्जा चक्र बड़े हो जाते हैं और काफी तेज घूमते हैं। ५.५४२

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