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व्यक्ति में 1 से प्राण ऊर्जा ऊपर के चक्रों (मय bh) के जाती है, जो उनके प्राण ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करती है। पार्किन्सन रोग में 1 में जो गंदी रोगग्रस्त लाल ऊर्जा होती है, उससे रीढ़ की हड्डी तथा उसके अगल-बगल के क्षेत्र और 6 अवर हो जाते हैं। तधा briमी अवरुद्ध हो जाते हैं। इन्हें 1 द्वारा परावर्तित ऊर्जा के न मिलने के फलस्वरूप, इस प्रकार की ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिए 9 तथा bh को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है जिसके कारण वे अधिक सक्रिय हो जाते हैं और उन पर खालीपन हो जाता है। bh के गलत रूप से कार्य करने के कारण मस्तिष्क में कुछ तंत्रिकाओं की कोशिकाओं (nerve cells) का पतन (degeneration) हो जाता है, जिसके कारण डोपामीन (Dopamine) का उत्पादन होता है तथा उसकी कमी हो जाती है। (क) GS (कई बार) G (ख) C (रीढ़ की हड्डी तथा उसका आसपास का क्षेत्र) o~v-0 को सिर के
नजदीक. गर्दन के आगे उपयोग न करें। (ग) C' 1G~0 (इसको ५० से १०० बार करें)/E 1 R- यह चरण अति
महत्वपूर्ण है। (घ) C' 3 (ङ) C (2, 4)/ E R (च) (C" B, C LG~O/E 6 GOR - इसको अनुभवी तथा कुशल
प्राणशक्ति उपचारक करें। c Lu ! E Lu (Lub के माध्यम से) GOR-- इसका पूरे शरीर पर सफाई तथा शक्ति प्रदान करने का प्रभाव पड़ता है। E0 के समय
अपनी उंगलियां रोगी के सिर की ओर इंगित न करें। (ज) c717b (कम G) v . यह चक्र ऊपर के चक्रों का नियमन तथा
समन्वयन करता है। (झ) 05 /EW - सावधानी से (ञ) 0 (8, 8, 1G VIE V (ट) C' (समस्त सिर पर, 11, 10, 9, bh)G~VIE ev तथा E (bh और
9) B द्वारा इन चक्रों का संकुचन करें। इस चरण में (9, bh) के C और E पर विशेष ध्यान दें। यह चरण अति महत्वपूर्ण है।