________________
(घ) रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थ की उसके विखंडन की इच्छा करके भी शीघ्र
नष्ट किया जा सकता है या भूरे पदार्थ को लगातार कम होता हुआ भी दृश्यीकृत किया जा सकता है। इसके अलावा आप आग को दृश्यीकृत
करें और रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थ को उसमें फेंक दें। (ङ) प्रकाश की गेंद (प्राणशक्ति की गेंद) को बनते हुए और उसे प्रभावित
अंगों में जाता हुआ महसूस करें तथा उन अंगों को महसूस करें। (च) प्रक्षेपित प्राणशक्ति ऊर्जा को स्थिर करें। (छ) अपनी आंखें खोल लें और दुबारा जांच करें। यदि जरूरी हो तो रोगी
का और अधिक इलाज करें। पहली और दूसरी विधि में अंतर यह है कि पहली विधि में प्राणशक्ति को रोगी के शरीर में भेजने से पहले उपचारक के शरीर में खींची जाती है। दूसरी विधि में आसपास के वातावरण से प्राणशक्ति प्राप्त करके उपचारक के शरीर से गुजरे बिना सीधे रोगी के शरीर में प्रक्षेपित की जाती है। आप इन दोनों विधियों को मिला सकते हैं।
प्रस्तुतकर्ता को ज्ञात है कि विधि नं० १ द्वारा एक कुशल उपचारक ने लखनऊ से बैठकर एक केस में दिल्ली तथा दूसरे केस में हांगकांग में बैठे रोगी का सफलतापूर्वक उपचार किया था। (३) तृतीय चरण
जब आप द्वितीय चरण में कुशल हो जाते हैं, तो बगैर पहले से निश्चित किये हुए ही, मात्र रोगी की फोटो रखे हुए ही अथवा उसकी शक्ल-सूरत याद करते हुए ही द्वितीय चरण में बताये गये विधि के अनुसार उपचार करने का अभ्यास कर सकते हैं। उपचार के बाद में रोगी से सम्पर्क करके परिणामों की तुलना की जा सकती है और आवश्यक्तानुसार और अधिक उपचार किया जा सकता है। हो सकता है कि और अभ्यास तथा कुशलता प्राप्त करने के पश्चात् इस प्रकार रोगी से सम्पर्क की भी आवश्यकता न पड़े। (४) चतुर्थ चरण
अब आप उन रोगियों का उपचार करें जिनको आपने पहले न देखा हुआ हो। उनकी फोटो प्राप्त करके सामने रखकर उपचार करने का अभ्यास करें।
५-१४५