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अध्याय - ७
प्राण ऊर्जा द्वारा शारीरिक रोगों का उपचार
दूरस्थ प्राणशक्ति (अनुपस्थित) उपचार DISTANT PRANIC HEALING
भेजने वाले के विचारों से गुंथी प्राणशक्ति (ओजस्वी) ऊर्जा दूर बैठे उन लोगों तक प्रक्षेपित की जा सकती है जो उसे प्राप्त करना चाहते हैं इसी से उपचार किया जा सकता है।
योगी रामचरक
The Science of Pranic Healing दूरस्थ उपचार की क्रियाविधि टेलीफोन की तरह होती है। उपचारक और रोगी के बीच में संबंध वायवी शरीर के कारण होता है जो पृथ्वी के वायवी शरीर का ही भाग होता है। जब उपचारक अपना ध्यान रोगी की ओर लगाता है तब वह रोगग्रस्त ऊर्जा वायवी शरीर से निकालकर प्राणशक्ति (ओजस्वी ऊर्जा) को रोगी के वायवी शरीर में प्रक्षेपित कर सकता है। ऐसा "ऊर्जा का विचारों के पीछे चलने" का नियम (देखिये अध्याय १ का क्रम ख-१) के कारण होता है। सामने बैठे रोगी और दूरस्थ स्थित रोगी के उपचार के नियम, पद्धतियों व सिद्धान्तों में कोई अन्तर नहीं है, बस दोनों में अन्तर इतना है कि दूरस्थ प्राणशक्ति उपचार में उपचारक को लगातार अभ्यास और अचूकता के लिए अपनी मानसिक ताकत का विकास करने या उसे तेज करने की जरूरत होती है। आप में से जो लोग उपचार का कार्य कर रहे हों या उस पर खोज कर रहे हों, वे इतने पक्के हो चुके होंगे कि बिना जांच किये ही बता सकते हैं कि रोगी के शरीर का कौन सा भाग रोगग्रस्त है। कुछ लोगों में ऊर्जित किये जाने वाले अंग के स्वास्थ्य को मोटे तौर पर देखने या महसूस करने की मनःशक्ति विकसत हुई होगी। उपचार में मनःशक्ति का धीरे धीरे विकास और धीरे-धीरे खलकर आना एक प्राकृतिक क्रिया है। दूरस्थ प्राणशक्ति उपचार करने से पहले कम से कम माध्यमिक प्राणशक्ति उपचार करने में कुशलता प्राप्त करने की सलाह दी जाती है।
इस विधि को सीखने के लिए विभिन्न चरणों में अभ्यास करें।