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भी इस फिल्टर का कुछ भाग जल जाता है। इसके अलावा जब कोई व्यक्ति बहुत ही अधिक क्रोधित होता है, तो सौर जालिका चक्र, आज्ञा चक्र और कभी-कभी ब्रह्म चक्र की जालियां (filter) फट सकती हैं। इससे अत्यधिक क्रोध व अत्यन्त हिंसामयी नकारात्मक परजीवी आकर्षित होते हैं, जो फटे हुए फिल्टर के माध्यम से ऊर्जा के मैरिडियन्स मे प्रवेश कर उस व्यक्ति के साथ चिपक जाते हैं, तब उस समय वह क्रोधित व्यक्ति अस्थायी तौर पर मानसिक रूप से विकृत (insane) हो जाता है और उस समय ऐसे-ऐसे भयानक कार्य कर बैठता है, जो वह साधारण तौर पर नहीं करता। कितने समय तक यह क्रोध के परजीवी उसके साथ रहते हैं, यह उसके चरित्र व प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। यदि वह अक्सर अत्यधिक क्रोधित होता रहता है, तो ये मानसिक विकृति लगभग स्थायी हो जाती है।
नकारात्मक परजीवी कमजोर होते हैं और अनुभवी प्राणशक्ति उपचारकों द्वारा आसानी से नष्ट किये जा सकते हैं। ये इच्छा शक्ति अथवा विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा अथवा नमक के घोल में फेंकने से नष्ट किये जा सकते हैं। इसका कथन भाग ५ में किया है।
किसी भी कारणवश ऊर्जा के फिल्टर में दरार या छेद हो जाने के परिणामस्वरूप नकारात्मक सोच के आकार व नकारात्मक परजीवी चक्र के अन्दर घुसते हुए, जीव द्रव्य शरीर की आगे की व पिछली मैरिडियन्स में फैल जाते हैं और चूँकि चक्र मैरिडियन्स से जुड़े होते हैं, इसलिए ये कुछ समय में चक्रों में घुसकर उनको प्रभावित करते हैं। इस प्रकार अनेक मनोरोग उत्पन्न कर देते हैं, यहाँ तक कि व्यक्ति पागल भी हो सकता है अथवा आत्महत्या कर सकता है।
किसी भी मनोरोग की चिकित्सा में सौर जालिका चक्र का उपचार अत्यावश्यक है, क्योंकि सर्वप्रथम यही चक्र प्रभावित होता है। इस प्रकार तनाव: चिड़चिड़ापन; चिन्ता; शोक; हिस्टीरिया; विभिन्न प्रकार के फोबिया जैसे पानी से भय, अग्नि से भय, कीड़े-मकौड़े से भयादि, मस्तिष्क में अनर्गल बातें घूमते रहना (obsession); सनकीपन: विवशतायें (cornpulsions)- जैसे न चाहते हुए भी चोरी आदि करना; भावनात्मक आघात (traumas); धूम्रपान, शराब, नशीले पदार्थों
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