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प्राणशक्ति उपचारक कम्त चक्र से नीले रंग. हरे रंग और हरे-नीले रंग की ऊर्जा
लेकर उपचार करते हैं। (9) आज्ञा चक्र (भ्रकुटि चक्र)- AJNA CHAKRA (क) स्थिति- यह चक्र भौहों के बीच में स्थित होता है। (ख) कार्य- यह पीयूष ग्रंथि (pituatary gland), अंतःस्त्रावी ग्रंथियों (endocrine
glands) को नियंत्रित करता है ओर ऊर्जित करता है और एक सीमा तक मस्तिष्क को भी ऊर्जित करता है। उपरोक्त ग्रंथियों का वर्णन भाग २, अध्याय १० के अन्तर्गत किया गया है।
आज्ञा चक्र को प्रधान चक्र अथवा मास्टर चक्र भी कहा जाता है क्योंकि यह अन्य सभी बड़े चक्रों और उनसे सम्बन्धित अंतःस्त्रावी ग्रंथियों तथा प्रमुख अंगों को निर्देशित व नियंत्रित करता है। यह आंख व नाक को भी प्रवाहित करता है। इस चक्र को ऊर्जित करना पूरे शरीर को ऊर्जित करने के समान होता है। इसके ऊर्जन की विधि ब्रह्म चक्र और ललाट चक्र के ऊर्जन से भिन्न होती है। एक के बाद दूसरे चक्र को ऊर्जा देने की पद्धति के बजाय, भृकुटि चक्र अन्य चक्रों को एक ऐसी तेज पंक्ति में प्रकाशित करता है जिससे पूरा शरीर ऊर्जित होता है। इसलिए चमत्कारी उपचारक या प्रार्थना द्वारा उपचार करने वाले उपचारक अपनी अंगुली या हथेली से रोगी के ब्रह्म चक्र या ललाट चक्र या भृकुटि चक्र को छूते हैं। सिर में प्राणशक्ति तेजी से जाने से कुछ रोगियों को मूर्जा आ जाती है।
आज्ञा चक्र उच्च अथवा अमूर्त मस्तिष्क/ विचारों का केन्द्र (centre of the higher mental faculty or abstract mind) होता है। यह इच्छाशक्ति एवं निर्देशन
कार्य विशेष का केन्द्र (centre of the will or directive function) होता है। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग
शारीरिक- मधुमेह (diabetes) तथा अन्तःस्त्रावी सम्बन्धी अन्य रोग, एलर्जी, अस्थमा, कैन्सर। मनो- चिड़चिड़ापन, तनाव, क्रोध, शोक, चिन्ता, हिरटीरिया, फोबिया, भावनात्मक आघात, आशंकितता, भयातुरता, मस्तिष्क में अनर्गल बातें घूमते रहना, हकलाना,