Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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समानता है। अमरकोष के टीकाकार क्षीरस्वामी का समय ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध है । विद्धशालभञ्जिका को उद्धृत करने वाले यही क्षीरस्वामी थे, जयसिंह के गुरू क्षीरस्वामी नहीं। अतः राजशेखर को इस आधार पर आठवीं शताब्दी का नहीं माना जा सकता।
श्री H.H. Willson का ग्यारहवीं, बारहवीं शताब्दी का मत :
श्री H.H. Wilson राजशेखर को उनकी चौहानवंशीय पत्नी के कारण चौहान वंश का ही मानते हुए उन्हें ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध अथवा बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध के किसी राजपूत राजा का मन्त्री मानते थे। कर्पूरमञ्जरी सट्टक की प्रस्तावना में उनकी चौहानवंशीया पत्नी अवन्तिसुन्दरी का वर्णन है। सम्भवतः पत्नी के कारण ही कीथ महोदय भी उन्हें महाराष्ट्र के क्षत्रिय कुल का मानते थे। 2 किन्तु पत्नी के कारण ही आचार्य राजशेखर को राजपूत मानकर उन्हें ग्यारहवीं, बारहवीं शताब्दी का नहीं माना जा सकता। वस्तुतः आचार्य राजशेखर का अन्तर्जातीय अनुलोम विवाह हुआ था। वे मंत्रिपुत्र थे, किन्तु किसी राजपूत राजा के मंत्री नहीं थे। गुर्जर प्रतिहारवंशीय राजा महेन्द्रपाल के गुरू के रूप में प्रतिष्ठित आचार्य राजशेखर ने स्वयं उपाध्याय कहकर भी अपना ब्राह्मणत्व सिद्ध किया है। 3
1.
(क) In a verse, cited from another work by the writer (The Karpurmanjari), his wife is styled as the chaplet of the crest of the Chauhan Raco from which it follows that he belonged to that tribe. We can only conclude, therefore, that Rajshekhar was the minister of some Rajput prince who flourished in the central India at the end of eleventh or the beginning of the twelveth century."
"Hindu Theatre' Page - 362 (H.H. Wilson)
(ख) चाहुआणकुल मौलिमालिआ राअसेहर कइंदगेहिणी भत्तुजो किमवतिसुन्दरी सा पइंजइठमेअमिच्छइ ।
कर्पूरमञ्जरी (1-11)
2. "He was of a Maharashtra Kshtriya family of the Yayavaras, who claimed decent from Ram" 'The Sanskrit Drama'-Page - 231 Ed. 1954 (A.B. Keith) 3. वालकविः कविराजो निर्भयराजस्य तथोपाध्यायः । इत्यस्य परम्परया आत्मा माहात्म्यमारूढः ॥ (कर्पूरमञ्जरी 1-9 )
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