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श्रीआचारानवृत्तिः (शी०) ॥३७॥
अध्ययनं १ उद्देशकः२
अंधमन्भे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमन्भे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे गुप्फमब्भे अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमब्भे २ अप्पेगे जाणुमब्भे २ अप्पेगे ऊरुमब्भे २ अप्पेगे कडिमब्भे २ अप्पेगे णाभिमब्भे २ अप्पेगे उदरमब्भे २ अप्पेगे पासमब्भे २ अप्पेगे पिट्टिमब्भे २ अप्पेगे उरमब्भे २ अप्पेगे हिययमब्भे २ अप्पेगे थणमब्भे २ अप्पेगे खंधमन्भे २ अप्पेगे बाहुमन्भे २ अप्पेगे हत्थमन्भे २ अप्पेगे अंगुलिमब्भे २ अप्पेगे णहमब्भे २ अप्पेगे गीवमन्भे २ अप्पेगे हणुमन्भे २ अप्पेगे हो?मन्भे २ अप्पेगे दंतमब्भे २ अप्पेगे जिब्भमब्भे २ अप्पेगे तालुमब्भे २ अप्पेगे गलमब्भे २ अप्पेगे गंडमब्भे २ अप्पेगे कण्णमब्भे २ अप्पेगे णासमन्भे २ अप्पेगे अच्छिमब्भे २ अप्पेगे भमुहमब्भे २ अप्पेगे णिडालमन्भे २ अप्पेगे सीसमन्भे २ अप्पेगे संपसारए अप्पेगे उद्दवए, इत्थं सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिपणाता भवंति (सू० १६)
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