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आचा०
॥२३३॥
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पणाथीज छे जेमके माटीनो पींड ( गोळो स्थास कोश कुशूल पर्यायो ( माटीनो घडो बनावतां चाक उपर जुदा जुदा आकारो बने छे ते) रुपवाली माटी छे. एटले माटीथी आकारो जुदा नथी, तेज प्रमाणे रुपी द्रव्यपण स्कंध देश प्रदेश परमाणु भेदोवालुं छे तेना गुणो रुप विगेरे छे ते अभेदपणे रहेलाछे अर्थात् एमां भेदवडे प्राप्ति थती नथी जेमरूप पदार्थथी जुदुं पढे तेवो संभव नथी. जेम पोतानो आत्मा पोताना ज्ञानगुणथी जुदो पडे ते अशक्य छे तेम बीजाओमां पण समज.
तेज प्रमाणे सचित्त एवं जीवद्रव्य उपयोग लक्षणवाळु छे एटले उपयोग राखे. तोज जीवने वस्तुनुं के पोतानुं मान रहे छे ते आपणा आत्माथी जुदा ज्ञान विगेरे गुण नथी. कोइ जुदा माने तो जीवने अचेतनापणानो प्रसंग आवे.
वादीनी शंका ते प्रमाणे मानतां तो तेना संबंधथी जीवने अजीव पणुं थशे. ?
आचार्यनो उत्तर—तमारुं वचन गुरुनी सेवा कर्या विनानुं छे, कारण के जेने पोतानामां शक्ति नथी तेने बीजानी करेली केवी | रीते थाय ? दाखला तरीके सेंकडो दीवानो संबंध थाय तो पण आंधळो रुप जोवाने शक्तिवान न थाय. एज प्रमाणे मिश्र द्रव्यमां पण गुण साथै एकपणानी योजना पोतानी बुद्धिए करी लेवी.
आ प्रमाणे द्रव्य अने गुण तेने एकान्तथी एक पणे स्वीकारे छते शिष्य कहे छे. शुं बन्ने ने बीलकुल भेद नथी ?
उत्तर - तेवो एकांत अभेद नथी, कारणके जो सर्वथा अभेद मानीए तो एकज इंद्रिय वडे बीजा गुणोनुं पण उपलब्धि ( प्राप्ति ) थइ जाय अने बीजी इंद्रिओ नकामी थाय. जेमके केरीनुं रूप जोवामां चक्षु काम लागे' अने तेना साथे एकपणुं मानीए तो गुण
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सूत्रम् ॥२३३॥