Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ [ आप कुछ भी कहो होना होगा, होता रहेगा। हम तो इससे भिन्न ज्ञान के घनपिण्ड आनन्द के कन्द चेतनतत्त्व हैं, सो उसमें ही मग्न हैं । " १० "यह सब तो ठीक है, अध्यात्म की बातें हैं; पर आपको इसके लिए भी कुछ करना चाहिए - यही हमारा नम्र निवेदन है ।" "हम इसका क्या कर सकते हैं ?" 46 'आप क्या नहीं कर सकते हैं? आप कुवादियों का मद मर्दन करने वाले वादिराज हैं । आपकी वाणी में वह शक्ति है कि जो उसमें प्रस्फुटित हो जावे, वह होकर ही रहता है। इसका परिचय इस जगत को कई बार प्राप्त हो चुका है । आपके शब्द ही मंत्र हैं, उनका जादू जैसा प्रभाव हम कई बार देख चुके हैं। यदि आप चाहे तो यह कुष्ठ एक समय भी नहीं रह सकता । " " बहुत भ्रम में हो श्रेष्ठीराज ! ऐसा कुछ भी नहीं है। किसी का चाहा कुछ भी नहीं होता । उसी भव में मोक्ष जाने वाले सनतकुमार चक्रवर्ती को भी मुनि अवस्था में सात सौ वर्ष तक यह कुष्ठ व्याधि रही थी, तो हमारी क्या बात है ? दूसरे, इसने क्या बिगाड़ा है हमारा, जो हम इसका अभाव चाहने लगें । हमने कुछ चाहने के लिए घर नहीं छोड़ा है, चाहना छोड़ने के लिये ही हम दिगम्बर हुए हैं। हमें इन विकल्पों में न उलझाओ । शास्त्रों में ठीक ही कहा है कि गृहस्थों की अधिक संगति ठीक नहीं। वे व्यर्थ की बातों में ही उलझाते हैं, उनसे अन्तर की प्रेरणा मिलना तो सम्भव है नहीं । " " 'आप अपने लिए न सही, पर हमारे लिए तो दुःख देखा नहीं जाता, दिगम्बरत्व का यह अपमान कुछ " ... करो । हमसे यह वे अपनी बात पूरी ही न कर पाये थे कि वादिराज बोले "कोई किसी के लिए कुछ नहीं कर सकता । पर इसमें दिगम्बरत्व के अपमान की बात कहाँ से आ गई? दिगम्बर धर्म आत्मा का धर्म है, शरीर -

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112