Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 82
________________ [ आप कुछ भी कहो उसके इस व्यवहार को देखकर उसका पति और सन्दूक में बन्द पंडितराज दोनों ही स्तम्भित हो गये । ७४ पण्डितराज को दिन में ही तारे नजर आने लगे। उन्हें इसमें किसी गहरे षड्यन्त्र की गन्ध आने लगी। नारी चरित्र का यह पक्ष तो आज तक उनकी कल्पना में भी न आया था। वे सोच रहे थे कि समय और परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगती। कहाँ तो वे अभी कुछ समय पहले ही कल्पनालोक में विचरण कर रहे थे और पलभर में ही इस नरक में कैद हो गये। अभी-अभी एक समय पहिले तो उन्हें यह चिन्ता सता रही थी कि न मालूम इस सन्दूक के कारागृह से कब छूटँगा ? छूटूंगा भी या इसी में सड़ जाऊँगा; पर चाबियों के गुच्छे के गिरने एवं 'खोलकर देख लो' - शब्दों को सुनकर तत्काल निकलने की सम्भावना नजर आने लगी, पर यह छुटकारा बन्धन से भी भयानक लग रहा था। क्षण भर पहिले तो वे बाहर निकलने को व्याकुल थे, अब बाहर निकलने से घबड़ाने लगे । तिरिया चरित्तर के इस साक्षात् दर्शन ने उन्हें ऊँटों पर लदे 'तिरियाचरित्तर' की स्मृति भी गायब कर दी थी। उन्होंने इस बात की कल्पना भी न की थी कि ' तिरिया चरित्तर' के लेखक, स्त्रीचरित्र के विशेषज्ञ विद्वान् को तिरिया चरित्तर के साक्षात् दर्शन इस रूप में होंगे । 1 यद्यपि उसके पति को उसकी बात पर विश्वास नहीं आ रहा था; तथापि शंकालु पुरुषमन डगमगा रहा था । कहीं सचमुच ही कोई जार इस सन्दूक में बन्द न हो - यह विकल्प प्रतिक्षण प्रबल होता जा रहा था । शंकालु हृदय ने जब बुद्धि पर काबू पाया तो उसे इस निर्णय पर पहुँचने में देर न लगी कि न होगा तो न सही, पर देख लेने में क्या हानि है ? अपने निर्णय को कार्यरूप देने के लिए ज्यों ही वह चाबी उठाने को झुका; त्यों ही उसकी पत्नी पल्लू को मुँह में दबाती हुई ठहाका मारकर हँस पड़ी। उसके इस ठहाके का व्यंग समझते उसे देर न लगी और वह चाबी - के गुच्छे से उसीप्रकार दूर हट गया, जिसप्रकार बालक विषधर को देखकर दूर हट जाता है ।

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