Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 87
________________ तिरिया-चरित्तर ] " ठीक समझे हो तुम । बस, मैं आज आपको यही पाठ पढ़ाना चाहती थी । पण्डित न सही, पर छात्र तो समझदार निकले ही।" 44 'अब तो आप से दीक्षित होना चाहता हूँ ।" ७९ " ' दीक्षित होना चाहते हो तो दीक्षान्त भाषण भी ध्यान से सुनो। - सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति में पोथियों का भी अपना स्थान है, उनकी भी उपयोगिता है; पर वे ही सब कुछ नहीं हैं । हम शास्त्रों का अध्ययन करें ही नहीं - मैं यह नहीं कहना चाहती, पर यह बात अवश्य कहना चाहती हूँ कि सम्पूर्णत: उन पर ही निर्भर हो जाना उचित नहीं है। हमें अपने ज्ञान को वस्तुनिष्ठ बनाना चाहिए। किसी भी वस्तु के बारे में अन्तिम निर्णय पर पहुँचने. से पहले पोथियों में उसके बारे में क्या लिखा है - यह जानने के साथ-साथ उस वस्तु का अवलोकन भी आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है; अन्यथा हमें तत्सम्बन्धी सत्य का साक्षात्कार नहीं होगा । I आत्मा के सम्बन्ध में तो यह बात और भी अधिक महत्त्व रखती है । उसे . जानने के लिए तो हमें निम्नांकित चार सोपानों से गुजरना होगा : आत्मस्वरूप के प्रतिपादक शास्त्रों का अध्ययन, आत्मज्ञानी गुरुओं से उनके मर्म का श्रवण, विविध युक्तियों द्वारा समुचित परीक्षण एवं आत्मावलोकन अर्थात् आत्मानुभवन । इन चारों में आत्मानुभवन का सर्वाधिक महत्त्व है, उसके बिना शेष सब निरर्थक ही समझिये । - इसीलिए तो मैं कहती हूँ लिखने से पहले लखना, देखना, अनुभव करना अत्यन्त आवश्यक है ।" "बहुत ठीक, बहुत ठीक।" "ठीक है तो उठिए, स्नानादिक से निवृत्त होइये, भोजन कीजिए और अपना रास्ता लीजिये । " "नहीं, नहीं; अभी तो मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है।" "नहीं, यह कुछ नहीं हो सकता। समझदार को संकेत ही पर्याप्त होता. है । मुझे कोई विद्यालय नहीं चलाना है, अपनी गृहस्थी चलानी है।"

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