Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 97
________________ एक केतली गर्म पानी ] धमकियाँ तो बराबर मिल रही थीं, पर पानी नहीं; क्योंकि सभी की दृष्टि में मुझे पानी की नहीं, सुधारने की आवश्यकता थी। सभी के पास मुझे उपदेश देने के लिए पर्याप्त समय था, पर पानी देने के लिए नहीं; क्योंकि सभी को अपने-अपने काम करने थे, सभी काम वाले थे न ! ८९ (३) हारकर मैंने स्वयं पानी गर्म करने की ठानी। यद्यपि मैं पाँच वर्ष का ही था, पर यह बात नहीं कि मैं पानी गर्म नहीं कर सकता था । कर सकता था, अवश्य कर सकता था; पर किसी का थोड़ा-बहुत सहयोग मिल जाता तो । पर वहाँ तो असहयोग का ही नहीं, विरोध का वातावरण बन रहा था। अब मुझे सचमुच ही जिद सवार होने लगी थी। मुझे भी लगा था कि मैं जिद कर रहा हूँ। अब मैंने एकला-चल की मुद्रा बना ली थी। अत: बिना किसी के सहयोग के ही घड़े से केतली में पानी डालने लगा तो सारा घड़ा ही औंधा हो गया। घड़ा फूट भी सकता था; पर गनीमत रही कि फूटा नहीं। फिर भी चारों ओर से चिल्लाहट आरम्भ हो गई, कोहराम मच गया । ( ४ ) मैं विजयी मुद्रा में खड़ा हो गया । यद्यपि मैं कुछ भी बोल नहीं रहा था, पर अपनी मौन मुद्रा से ही कह रहा था कि लो देख लो अपने असहयोग का परिणाम | थोड़ी-बहुत समझ हो तो अब भी समझ जावो, अन्यथा और भी खतरनाक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं; पर वहाँ कौन समझता मेरी चेतावनी को; क्योंकि सब बड़े हो गये थे न; अपने को समझदार समझने लगे थे न; नासमझ तो अकेला मैं ही था, जिसे सही रास्ते पर लाना सबका, सबसे बड़ा धर्म बन गया था। एक ओर से आवाज आई "दे दो न एक केतली गर्म पानी उसे ?" लगता है किसी को या तो मुझ पर दया आ गई थी या फिर वह अधिक नुकसान की आशंका से आतंकित हो गया था? पर सभी ने एक स्वर से उसकी

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