Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 104
________________ [ आप कुछ भी कहो परिवर्तन की स्मृति तरोताजा कर देती है। अभागा भरत' कहानी कौतुहल पैदा करती है कि चक्रवर्ती अभागा कैसे? डॉ. भारिल्ल की सभी कहानियाँ निष्कर्ष की उत्सुकता और रोचकता बनाये रखती हैं। कहानी के क्षेत्र में उनका यह अभिनव प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। * प्रोफेसर रतनलालजी दाधीच; महाराजा संस्कृत कॉलेज, जयपुर (राज.) कहानियों के माध्यम से डॉ. भारिल्ल ने जैन संस्कृति के गहन तत्वों को जन-साधारण तक सहजरूप से पहुँचाने का प्रशंसनीय कार्य किया है। इस अनुकरणीय प्रयास का कथाशिल्प सुन्दर एवं अभिव्यक्ति सरस है, जो पाठक को चिरकाल तक प्रभावित किए रह सकती है। * महामहिमोपाध्याय पं. नरेन्द्रकुमारजी शास्त्री; न्यायतीर्थ, सोलापुर (महा.) 'आप कुछ भी कहो' साद्यन्त पढ़ी। डॉ. भारिल्ल की वाणी जैसी मधुर व चित्ताकर्षक है; उसीप्रकार उनका लेखन भी हृदयस्पर्शी होता है। वे सिद्धान्त-प्रतिपादन के साथ कथालेखन में भी सिद्धहस्त हैं। ग्रन्थ में समागत सूक्तियाँ अत्यन्त बोधपूर्ण हैं । इसप्रकार के लेखन युवा लोगों को अत्यन्त लाभदायक रहेंगे। * पण्डित श्री रतनलालजी कटारिया; केकड़ी (राजस्थान) स्वच्छ छपाई, सुन्दर प्लास्टिक कवर, उत्तम कागज, मजबूत जिल्द, कलात्मक स्वरूप और इन सबसे बढ़कर बेमिसाल, लाजवाब प्रमेय, फिर भी मूल्य अत्यल्प – इतनी विशेषता अन्यत्र के किसी भी प्रकाशन में देखने में नहीं आई। कथा (घटना) थोड़ी विश्लेषण विशाल, फिर भी सभी कहानियाँ सुपरफाइन लगीं। तिरिया-चरित्तर' तो बहुत ही पसन्द आई, वह मुझे सुपरफाइन के साथ-साथ मसराइज्ड भी लगी। केलिको, फिनले कम्पनी के उच्चकोटि के पोतवाले कपड़ों की बनावट की तरह इसका शब्द-गुम्फन भी बड़ा ही दिव्य और अत्यन्त मनमोहक बन पड़ा है।

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