Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 38
________________ [ आप कुछ भी कहो "नहीं, मैं अपनी व्यक्तिगत भक्ति का राजनैतिक लाभ नहीं उठाना चाहता।" "यह आपकी महानता है, पर आपके चाहने न चाहने से क्या होता है ? सौभाग्य का उदय हो तो लाभ मिलता ही है।" ३० "मैं नहीं चाहता कि भविष्य का इतिहास यह कहे कि भरत का जिनेन्द्रदर्शन भी राजनैतिक कार्य था । " "चाह आज तक किसी की पूरी नहीं हुई। आज का कण-कण आपके सौभाग्य की महिमा से गुंजायमान हो रहा है।" " भीड़ की मनोवृत्ति भी क्या गजब की होती है, प्रतिदिन दिन में तीनतीन बार भगवान की दिव्यध्वनि का लाभ लेनेवाले भाग्यशाली लोग भी अपने को अभागा और जीवन में अबतक एकाध बार ही लाभ लेनेवाले मुझ जैसे अभागे को भाग्यवान मान रहे हैं - इसे मैं क्या कहूँ ? - बदलिये इस विषय को इसकी चर्चामात्र मुझे आन्दोलित कर देती है, भगवान की वाणी का विरह और भी तीव्र हो जाता है । जब-जब जनता मुझे भाग्यशाली होने की बधाइयाँ देती है, तब-तब यह अभागा भरत उन्हें प्रसन्नता से स्वीकार भी नहीं कर पाता है- क्या इसी का नाम सद्भाग्य है ? नहीं, नहीं; कदापि नहीं। दुनिया कुछ भी कहे, पर भरत भाग्यवान नहीं, अभाग ही है।" सहज ज्ञाता-दृष्टा नहीं; देखो नहीं, देखना सहज होने दो; जानो नहीं, जानना सहज होने दो। रमो भी नहीं, जमों भी नहीं; रमना - जमना भी सहज होने दो। सब-कुछ सहज, जानना सहज, देखना सहज, जमना सहज, रमना सहज | कर्तृत्व के अहंकार से ही नहीं, विकल्प से भी रहित सहज ज्ञाता-दृष्टा बन जाओ । - सत्य की खोज : अध्याय ३३, पृष्ठ २०३

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