Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 49
________________ परिवर्तन ] अत्यन्त दृढ़ शब्दों में स्वामीजी ने कहा "ऐसा कोई रास्ता है ही नहीं, मान्यता छूट जाने पर अपरिमित काल तक मुँहपट्टी का बने रहना संभव ही नहीं है। वस्तुस्वरूप ही ऐसा है। इसमें कोई क्या कर सकता है? मुझसे अब यह छल नहीं हो सकेगा । जिसे मैं अन्तर से ठीक नहीं मानता, सच नहीं जानता; उसका भार अब मुझसे नहीं ढोया जा सकता। मुझसे ही क्या, किसी भी ज्ञानी से यह सब कुछ सम्भव नहीं है । " , उनके दृढ़ निश्चय को जानकर छठवाँ बोला "चाहे जो हो, हमको तो अपना सम्प्रदाय सँभालना ही होगा ।" - उपेक्षा भाव से स्वामीजी कहने लगे "हाँ, हाँ; जाइये। आप अपना सम्प्रदाय सँभालिये और हमें अपना आत्मा सँभालने दीजिये । " उनके अटल निश्चय एवं निर्भय उपेक्षा से उद्विग्न सभी एक साथ बोले - " 'क्या आपका यह निश्चय अडिग है ? " स्वामीजी के मुँह से सहज ही स्फुटित हुआ - अडिग, अडिग; अडिग " । " ४१ युगपुरुष उसे कहते हैं जो युग को एक दिशा दे, भ्रमित युग को सन्मार्ग दिखाये; मात्र दिखाये ही नहीं, एक वैचारिक क्रान्ति उत्पन्न करके जगत को उस पर विचार करने के लिए बाध्य कर दे। यदि वह क्रान्ति आध्यात्मिक हो और अहिंसक उपायों द्वारा सम्पन्न की गई हो तो उसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। कानजीस्वामी एक ऐसे युगपुरुष हैं, जिन्होंने अपने जीवन में तो परिवर्तन किया ही; साथ ही जैन जगत में भी आध्यात्मिक क्रान्ति उत्पन्न कर दी और बाह्य क्रियाकाण्ड में उलझे हुए समाज को भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित शाश्वत शान्ति की प्राप्ति का सन्मार्ग दिखाया। उन्होंने सोते हुए समाज को मात्र जगाया ही नहीं; वरन् उसे मानव-जीवन की सफलता एवं सार्थकता पर विचार करने के लिए झकझोर कर सचेत कर दिया एवं अपनी पूर्वाग्रहग्रस्त मान्यताओं पर एक बार पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर दिया है। - युगपुरुष, श्री कानजी स्वामी : पृष्ठ ९७

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