Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 66
________________ ५८ [ आप कुछ भी कहो (8) उसने सारे बाजार में उस लाल को दिखाया, पर उनकी आशा के अनुरूप कीमत उसकी कोई भी नहीं लगा रहा था; अतः माँ और बेटे ने मिलकर यह निर्णय लिया कि इसे यहाँ न बेचकर बम्बई में बेचा जाये तो ठीक रहेगा। वहीं इसकी समुचित कीमत प्राप्त हो सकेगी। (५) जब वह बम्बई के जवेरी बाजार में पहुँचा और एक-दो पैढ़ियों पर लाल दिखाया तो सभी ने लगभग वही कीमत लगाई जो जयपुर में मिल रही थी । वेरी बाजार के रंग-ढंग से अपरिचित युवक चेतनलाल का अनाड़ीपन छिपा नहीं रह सका। कुछ दलाल तो उसके पीछे आरम्भ से ही लग गये थे । वह उनसे भी पीछा नहीं छुड़ा पा रहा था कि कुछ गलत तत्त्व भी पीछे लग गये । अपने चारों ओर घिरे लोगों की सन्देहास्पद गतिविधियों से वह सतर्क होने के साथ-साथ चिंतित भी हो उठा । 'हीरालाल पन्नालाल' नामक प्राचीनतम पैढ़ी के मालिक सेठ श्री माणिकचंदजी जवेरी भी यह सब कुछ देख रहे थे । उन्होंने तत्काल एक मुनीम की भेजकर उसे अपनी पैढ़ी पर बुलाया । जब उसने उन्हें लाल दिखाने का प्रयत्न किया तो वे सहज स्नेह से बोले "बैठो, शान्ति से बैठो। 'लाल' भी देखेंगे। पहले जलपान करो। जवाहरात का व्यापार खड़े-खड़े नहीं होता । " उन्होंने अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार से सहज ही उसका मन जीत लिया। पर उसे तो अपना लाल बेचकर घर जाने की जल्दी थी; अतः उसने जलपान करके फिर 'लाल' दिखाया। सेठजी ने लाल हाथ में लिया, उस पर एक निगाह डाली और उससे पूछने लगे - "कहाँ से आये हो?" 44 "जयपुर से" " किसके बेटे हो, तुम्हारी फर्म का क्या नाम है ? " -

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