Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 72
________________ ६४ [ आप कुछ भी कहो "इतने अनुभवी मेरे पिता से यह गलती आखिर हुई कैसे?" "बुद्धि भी भवितव्य का अनुसरण करती है। जब खोटा समय आता है तो बड़े-बड़े बुद्धिमानों की बुद्धि पर भी पत्थर पड़ जाते हैं।जो तुम आज सोच रहे हो, उस दिन मैं भी तो इसी उलझन में उलझ गया था। लेकिन जो कुछ हुआ सो ठीक ही हुआ। तुम और तुम्हारी माँ इसी भ्रम में तो खड़े रहे। इसका सहारा न होता तो तुम्हारी माँ न जाने कब की टूट गई होती।" । "यह सब जानते हुए भी आपने अपने को अभागा और मेरे पिता को भाग्यवाला क्यों कहा था?'' "ठीक ही तो कहा था, उसे तो मैं आज भी सत्य मानता हूँ।" । "क्यों, कैसे?" "तुझ जैसा चेतनलाल जिसने पाया हो, वह मुझ जैसे सन्तानहीन से भाग्यवान ही है। तू चाहे तो मुझे भी भाग्यवान बना सकता है और अपना कर्जा भी उतार सकता है।" "में आपको क्या भाग्यवान बनाऊंगा, पर कजो अवश्य उतारना चाहता हूँ। कोई उपाय हो तो बताइये।" "उपाय तो है, पर बताऊँगा नहीं।" "क्यों?" "क्योंकि यदि तूने नहीं माना तो ?" "क्यों नहीं मानूँगा ?" "मानेगा तो वचन दे।" "दिया।" "मैं अपनी सारी सम्पत्ति देकर तुझे खरीदना चाहता हूँ, गोद लेना चाहता हूँ। तुझे अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनाना चाहता हूँ । जिस दिन से तुझे देखा; उसी दिन से मेरे मन में यही भावना निरन्तर प्रबल होती रही है। मानेगा मेरी बात?" "आपने कहा तो कभी नहीं।"

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