Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 70
________________ [ आप कुछ भी कहो "" 'अब लाल बेचने का समय आ गया है । हमारा लाल भी बिकवा दीजिये । " ६२ "भाई ! अब हम क्या बिकवायेंगे? अब तो तुम स्वयं बहुत होशियार हो गये हो । माँ से चाबी मगाँ लो और लाल निकालकर स्वयं बेचो । " अनुमति पाकर उसने तत्काल चाबी भेजने के लिए माँ को पत्र लिख दिया। आठ दिन के भीतर चाबी भी आ गई। सेठजी के कहने पर उसने स्वयं सील तोड़कर तिजोरी खोली और लाल निकाला तो उसे देखकर वह हक्काबक्का रह गया। वह तो काँच का टुकड़ा मात्र था। उसकी आँखों से झरझर आँसू झरने लगे। सेठजी की पैढ़ी समुद्र के किनारे ही थी। उसने उस लाल को एकदम समुद्र में फेंक दिया और फूट-फूटकर रोने लगा। सारी पैढ़ी में सन्नाटा छा गया। लोगों की समझ में कुछ नहीं आया। जब सेठजी ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए पूछा - "क्या हुआ?" तब वह जोर-जोर से कहने लगा " आपने मुझे धोखा दिया, झूठ बोला, कर्जे में डाल दिया । " उसकी यह बात सुनकर लोग आपस में अनेक प्रकार की बातें करने लगे । एक ने कहा - "सेठजी ने उस बिचारे का लाल बदल लिया है।" दूसरे ने कहा - " यह कैसे हो सकता है? उसने अपने हाथ से रखा था, ताला लगाया था, चाबी घर भेज दी थी, तिजोरी सील कर दी थी, फिर स्वयं खोली । " 46 तीसरा कहने लगा 'यह सब तो नाटक था; आज क्या नहीं हो सकता? तिजोरी बन्द की बन्द रहे और माल सब गायब हो जाये । " - - - चौथा बोला - " गायब कहाँ हुआ ?" पाँचवा बोला " बदल तो गया । बदलने और गायब होने में क्या अन्तर है?"

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