Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ उच्छिष्ट भोजी ( १ ) यशस्वती माँ नन्दा आज आनन्दातिरेक में झूम रही थीं। क्यों न झूमतीं, आखिर उनका बेटा छह खण्ड पृथ्वी को जीतकर घर वापस आ रहा था । विश्वविजेता राजाधिराज चक्रवर्ती सम्राट भरत की जय के नारों से आकाश गूँज रहा था । यद्यपि अभी ससैन्य भरत ने अयोध्या में प्रवेश नहीं किया था; तथापि उनके जयघोषों की ध्वनि राजमहल की अट्टालिकाओं में स्पष्ट सुनाई दे रही थी। यद्यपि उनकी दिग्विजय की सफलता के समाचार समय-समय पर राजमाता को प्राप्त होते रहे थे, तथापि माँ का हृदय समाचारों से कब तृप्त हुआ है ? उसे तो सम्मिलन से ही सन्तोष होता है । बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओं के नमन के भार से भरित गुरुगम्भीर भरत ने जब राजमहल में प्रवेश किया तो स्वागत के लिए परिजनों से घिरी हुई राजमाता को मंगल कलश लिए सिंहद्वार पर उपस्थित पाया । भरत माँ के चरणों में पूर्णतः झुक ही न पाये थे कि राजमाता ने उन्हें आलिंगनबद्ध कर लिया; किन्तु दिग्विजयी सम्राट के भाल पर जो गर्व तथा व्यवहार में जो उत्साह एवं उत्तेजना देखी जानी चाहिए, राजमाता को भरत में वह कुछ दिखाई नहीं दिया; अपितु एक गहरे अवसाद तथा उत्तरदायित्व के भार से भरित गम्भीरता के दर्शन हुए। राजमाता का उत्साह कुछ ठंडा पड़ा, पर वे अपने को सँभालती हुई बोलीं- " भरत ! यह क्या है?"

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112