Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ उच्छिष्ट भोजी ] माँ यशस्वती नन्दा के बेटे वृषभसेन एवं सुनन्दा के बेटे बाहुबली के सौभाग्य एवं वैराग्य की टक्कर में यह अभागा उच्छिष्ट भोजी भरत कहीं ठहर सकेगा क्या ?" "बेटा..." "माँ, तेरे भरत का राग चाहे उसके वश की बात न हो; पर उसकी श्रद्धा, उसका ज्ञान - विवेक धोखा नहीं खा सकता। भले ही भरत इस चक्रवर्त्तित्व को छोड़ न सके, पर इसमें रहकर गर्व अनुभव नहीं कर सकता, इसमें रम नहीं सकता । चक्रवर्त्तित्व भरत का गौरव नहीं; मजबूरी है, मजबूरी" । विवेक और अविवेक का खेल जहाँ विवेक है, वहाँ आनंद है, निर्माण है और जहाँ अविवेक है, वहाँ कलह है, विनाश है। समय तो एक ही होता है; पर जिससमय अविवेकी निरन्तर षड्यन्त्रों में संलग्न रह बहुमूल्य नरभव को यों ही बरबाद कर रहे होते हैं; उसीसमय विवेकीजन अमूल्य मानव भव का एक-एक क्षण सत्य के अन्वेषण, रमण एवं प्रतिपादन द्वारा स्व - पर हित में संलग्न रह सार्थक व सफल करते रहते हैं । वे स्वयं तो आनन्दित रहते ही हैं, आसपास के वातावरण को भी आनन्दित कर देते हैं । इसप्रकार क्षेत्र और काल एक होने पर भी भावों की विभिन्नता आनन्द और क्लेश तथा निर्माण और विध्वंस का कारण बनती है यह सब विवेक और अविवेक का ही खेल है । सत्य की खोज, अध्याय ३३, पृष्ठ १९९ ३५ -

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