Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 45
________________ परिवर्तन ] ३७ ___ अनुयायी कभी साथ नहीं देते, उनका काम तो अनुसरण करना है। मैंने अनुयायियों को साथी समझ रखा था। इसी कारण इतने दिन अपने मन के विरुद्ध इनमें उलझा रहा। साथी तो कोई है ही नहीं; अनुयायियों का पता भी तब चलेगा, जब मैं अपनी राह पर एकाकी ही चल पडूंगा; जो सच्चे अनुयायी होंगे, वे आयेंगे ही। ... मोह के सूक्ष्म तन्तु में भी क्यों उलझना ? जिन्हें आना हो, आवें; न आना हो, न आवें; मुझे उनसे क्या ? मैं तो पर से भिन्न, निराला चेतन तत्त्व हूँ, मुझे पर से क्या? तो फिर आज मैं सबसे साफ-साफ कह ही देता हूँ। कहने की भी क्या आवश्यकता है ? फिर वही बातें होंगी कि कुछ दिन और रुक जाइये। फिर काल्पनिक कठिनाइयों का लम्बा-चौड़ा ब्यौरा - यह सब सुनते-सुनते थक गया हूँ। मनुष्य भव के अमूल्य क्षण यों ही उलझन में बीते जा रहे हैं। अब यह बोझा मुझसे न ढोया जाएगा। __ जब मुझे किसी का साथ चाहिए ही नहीं तो फिर किसी से कुछ कहने का प्रयोजन ही क्या रह जाता है ? कल महावीर जयन्ती (वि.सं. १९९१) का पावन अवसर है और सौभाग्य से यह भगवान पार्श्वनाथ का पावन चित्र भी उपलब्ध है ही। बस, इसके सामने कल इस मुँहपट्टी को फेंक दूंगा और अपने को दिगम्बर जिनधर्मानुयायी अव्रती श्रावक घोषित कर दूंगा। ___ यदि लोगों से मन की बात कहूँगा, तो पहले तो तैयार ही न होंगे; यदि हो भी गये तो परिवर्तन के लम्बे-चौड़े कार्यक्रम बनाने के चक्कर में रहेंगे। आत्मधर्म तो दर्शन की वस्तु है, उसे प्रदर्शन से क्या प्रयोजन ? यह स्थान भी तो मेरे इन विचारों के अनुकूल - एकदम सुनसान, शान्त, एकान्त है। लगता है परिवर्तन के पाँचों समवाय समुपस्थित हैं । भावना की उग्रता भी यह बता रही है कि काल पक गया है। द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव - सभी की अनुकूलता परिवर्तन के नियतक्रम को अभिव्यक्त कर रही है।"

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