Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 44
________________ परिवर्तन (१) "पशु की अपेक्षा यदि इस मनुष्य को कुछ सुविधाएँ प्राप्त हैं, तो असुविधाएँ भी कम नहीं। यदि पशु को पैतृक सम्पत्ति प्राप्त करने की सुविधा नहीं है, तो साथ ही वह परम्पराओं की गुलामी से भी मुक्त है। " पर इस सभ्य कहलाने वाले मानव जगत को यदि उत्तराधिकार में सम्पत्ति मिलती है तो साथ में परम्परागत रूढ़ियों की गुलामी भी विरासत में प्राप्त होती है। जब मैंने उत्तराधिकार में प्राप्त परम्परागत सम्पत्ति को ही ठुकरा दिया है, उससे कोई लगाव नहीं रखा; तो फिर इन सम्प्रदायगत बेड़ियों में कब तक जकड़ा रहूँगा? परमसत्य की उपलब्धि के साथ ही इन्हें तोड़ फेंकना चाहिये था, पर साथियों का राग भी कितना विचित्र होता है कि मुझे अभी तक इनमें जकड़े हुए है! सम्प्रदाय में रहकर सम्प्रदाय के साथियों को सत्य समझाना सरल होने पर भी उनमें क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना सम्भव नहीं है। पक्ष का व्यामोह भी कितना जटिल होता है ! यह मार्ग सही नहीं है - यह स्वीकार करके भी इसे छोड़ने की कल्पना भी लोगों को आंदोलित कर देती है। बाड़े का बन्धन असा प्रतीत होने पर भी बाड़े की सीमा का उल्लंघन करने की कल्पना भी सामान्यजनों को कँपा देती है। ___ झुंड के साथ परिवर्तन की कल्पना में इतने दिन व्यर्थ ही गँवा दिये । सत्य के आराधक क्रान्तिकारियों को सिंहवृत्ति ही शोभती है। साथियों की कल्पना उसके शौर्य को प्रतिबन्धित करती है।

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