Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 37
________________ २९ अभागा भरत ] " भरत अपना कर्त्तव्य पहिचानता है। कर्त्तव्य की ठोकर बुद्धि ही बर्दाश्त कर सकती है, हृदय नहीं ।" " चक्रवर्ती की आंखों में आँसू शोभा नहीं देते। " "माँ के सामने भी ?" " बात माँ की नहीं, राजमाता की है।" (३) जनभावना जानने के लिए सम्राट भरत के गुप्तचर सम्पूर्ण आर्यावर्त्त में निरन्तर सक्रिय थे । जहाँ भी सेना का पड़ाव होता, रात्रि में गुप्तचरों से प्राप्त सूचनाओं पर उच्चस्तरीय मन्त्रणा चला करती थी । गुप्तचर विभाग के अध्यक्ष ने आज का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा - "जो कार्य वर्षों के घमासान युद्धों से सम्भव न हो सका, वह कल की घटना से सम्पन्न हो गया। आज सारा आर्यावर्त्त सम्राट भरत के भाग्य की सराहना कर रहा है, उनके सौभाग्य से अभिभूत है । " "कल ऐसा क्या घटा ?" 48 'आप अर्द्धरात्रि में भगवान ऋषभदेव के दर्शन करने जो पधारे थे । उस अवसर पर आपके निमित्त से भगवान की दिव्यध्वनि भी असमय में प्रसारित हुई थी । " "इससे राजनीति का क्या लेना-देना ? यह तो मेरी व्यक्तिगत रुचि का कार्य है।" "राजनीति अपना रस सब जगह से ग्रहण करती है। देश की अखंडता के लिए मात्र जमीन ही जीतना जरूरी नहीं होता, जनता का दिल भी जीतना होता है। धर्मप्राण जनता धार्मिक सद्भाग्य से ही समर्पित होती है - सम्राट को यह नहीं भूलना चाहिए ।"

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