Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ [ आप कुछ भी कहो आचार्य अकंपन की गुरुतर गम्भीरता देख श्रुतसागर अन्दर से हिल गये । वे जिसे अपनी विजय समझ रहे थे, वह अकंपन को भी कंपा देने वाला अक्षम्य अपराध था - इसका अहसास उन्हें गहराई से हो रहा था । वे स्पष्ट अनुभव कर रहे थे कि आचार्य श्री का अन्तर प्रतिदिन की भाँति प्रायश्चित निश्चित करने में व्यस्त नहीं, अपितु संघ की सुरक्षा की करुणा में विगलित हो रहा है। प्रत्युत्पन्नमति श्रुतसागर को निर्णय पर पहुँचने में अधिक देर न लगी और वे आचार्य श्री के चरणों में नतमस्तक हो बोले १८ - " इस नादान के अविवेक का परिणाम संघ नहीं भोगेगा। मैं आज उसी स्थान पर रात्रि बिताऊँगा, जहाँ बलि आदि मंत्रियों से मेरा विवाद हुआ था. इसके लिए आचार्यश्री की आज्ञा चाहता हूँ ।" - "नहीं, यह सम्भव नहीं है। परिणाम की दृष्टि से यह अपराध कितना ही बड़ा क्यों न हो, पर इसमें तुम्हारा धर्मप्रेम ही कारण रहा है। दिगम्बरत्व के अपमान ने तुम्हें उद्वेलित कर दिया और फिर तुम्हें हमारी उस आज्ञा का पता

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