Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ आप कुछ भी कहो ] का नहीं। शरीर के विकृत होने से दिगम्बर धर्म का अपमान कैसे हो सकता है।" ऋषिराज वादिराज बोले जा रहे थे, पर श्रेष्ठीराज कुछ नहीं सुन रहे थे; उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। वे अत्यन्त भावुक हो गये थे। जब ऋषिराज का ध्यान उनकी ओर गया तो वे बोले ११ - " तुम्हारी इस व्याकुलता का कारण अगम्य है । सब-कुछ साफ-साफ कहो - बात क्या है?" गद्गद स्वर में राज श्रेष्ठी कहने लगे - "कल राजसभा में जबकि दरबार खचाखच भरा था, दिगम्बर धर्म की हँसी उड़ाते हुए कुछ विरोधियों ने जब यह कहा कि दिगम्बर साधु कोढ़ी होते हैं, उनमें इतनी भी क्षमता नहीं कि अपने ही शरीर को स्वस्थ रख लें, तो वे दूसरों का क्या भला करेंगे ? दिगम्बरत्व का यह अपमान मुझसे न सहा गया और मैंने कहा कि - यह सफेद झूठ है, दिगम्बर साधु कोढ़ी नहीं होते । वे सब कुछ कर सकते हैं । उस समय जोश में मुझे कुछ होश न रहा और मैं यह सब कह गया। पर जब उन लोगों ने कहा कि हमने आज ही नगर में कोढ़ी दिगम्बर साधु देखे हैं तो मुझे आपका ध्यान आया, पर । 44 उन लोगों ने महाराजा साहब को बहुत उकसाया तो वे कहने लगे - हम स्वयं कल दिगम्बर मुनिराज के दर्शन करने चलेंगे।" शान्त गम्भीर ऋषिराज बोले 'श्रेष्ठीवर, इतना धर्मानुराग भी ठीक नहीं कि उसके आवेग में आप सत्य का भी ध्यान न रखें। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ भी भला-बुरा नहीं कर सकता - यह दिगम्बर धर्म का अपमान नहीं, सर्वोत्कृष्ट सम्मान है; क्योंकि वस्तुस्वरूप ही ऐसा है। यह जन-जन की ही नहीं, बल्कि कण-कण की स्वतंत्र सत्ता का महान उद्घोष है । ' }: -

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112