Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

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Page 16
________________ (xiv) श्रृंखला को जोड़ने के लिए आधुनिक युग के हिन्दी-जैन-साहित्य पर कार्य करने की प्रेरणा दी। इस प्रेरणा को दृष्टि में रखकर मैंने प्रयत्न प्रारम्भ किया, किन्तु शोध-पथ में अनेकानेक कठिनाइयाँ आती रहीं। कभी-कभी तो गृहस्थी की अनेक झंझटों, समस्याओं, विविध स्थलों पर स्थित जैन-भंडारों में जा-जाकर देखने-टटोलने और उपलब्ध रचनाओं को प्राप्त करने की कठिनाइयों से घबराकर कार्य छोड़ देने की मनोवृत्ति भी बन गई, किन्तु श्रद्धेय गुरुवर द्वारा प्रदत्त धैर्य व सान्त्वना से मैं किसी प्रकार यह कार्य कर पाई हूँ। यह शोध-कार्य एक विशेष काल-खण्ड को लेकर किया गया है। किसी निश्चित कालखण्ड को लेकर यदि साहित्य का अध्ययन किया जाए तो विषय में गहराई तथा वांछित व्यवस्था आ जाती है। 18वीं शती तक के हिन्दी-जैन साहित्य का अनुशीलन हो चुका है, अतः उसी परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए शोधार्थिनी ने एक सौ बीस वर्ष (1850 से 1970 ई. तक) के काल खण्ड के हिन्दी-जैन साहित्य को अपने शोध का विषय चुना है। इस कार्य में लेखिका की मर्यादाएं भी रही हैं। आधुनिक साहित्य विशाल परिमाण में है, तथा विविध भण्डारों, प्रकाशनों व विद्वानों से निरन्तर संपर्क स्थापित करने पर भी सम्पूर्ण प्रकाशित साहित्य प्राप्त करने का दावा करना बेईमानी होगी। ईस्वी 1970 के बाद भी हिन्दी जैन साहित्य विशाल परिमाण में उपलब्ध होता है, विशेषकर भगवान महावीर की 2500वीं निर्वाण तिथि के उपलक्ष्य में (सन् 1976 में) अधिकाधिक साहित्य प्रकाशित हुआ है। इसमें डा० छैलबिहारी गुप्त रचित 'तीर्थंकर महावीर', (महाकाव्य), वीरेन्द्र जैन रचित श्रेष्ठ उपन्यास 'अनुत्तर योगी' (तीन खण्डों में) तथा आ० नेमिचन्द्र शास्त्री लिखित 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' (तीन खण्डों में) शीर्षक ग्रन्थ विशेष उल्लेखनीय है। इनके अतिरिक्त अनेक जीवनियां, कथा-साहित्य, निबंध-साहित्य, मुक्तक रचनाएं, खण्ड काव्य आदि उपलब्ध होते हैं। हिन्दी-जैन साहित्य को मूल्यांकित करके प्रकाश में लाने का कार्य प्रारंभ हुआ है तथा इसके महत्त्व को स्वीकारने की जागृति पैदा हुई है, वह स्तुत्य है। इस दिशा में सर्वप्रथम हिन्दी-साहित्य के विद्वान साहित्यकार पं. नाथूराम 'प्रेमी' ने अथक परिश्रम व निष्ठा से जैन साहित्य और साहित्यकारों को प्रकाश में लाने का भगीरथ प्रयास किया है। पंडितजी ने 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' में आदिकाल एवं मध्यकाल के हिन्दी जैन कवियों के वंश-गोत्र, परिवार, रचना व परिस्थितियों के विषय में ऐतिहासिक तथा साहित्यिक दृष्टिकोण से अत्यन्त खोजपूर्ण लेख प्रकाशित किये हैं। आधुनिक युग के साहित्य के सम्बन्ध में

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