Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अखिल भारतवर्षीय प्रोसवाल महासम्मेलन प्रथम अधिवेशन-अजमेर रिपोर्ट प्रकाशक राय साहब कृष्णलालजी बाफणा बी, ए, मन्त्री-ओसवाल महासम्मेलन, अजमेर संवत १६६० ] [ ई० सन् १९३३ . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRINTED BY M. ROY. at the Viswabinode Press, 48, Indian Mirror Street, Calcutta. & Published by Rai Saheb K. L. Bapna B. A, Secretary, All-India Oswal Mahasammelan. AJMERE. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय प्रारम्भिक विवरण विज्ञप्तियों का सारांश डेपुटेशन का विवरण स्वागताध्यक्ष का चुनाव सभापति का पहले दिन की बैठक दूसरे तीसरे " " "" " " " सूची-पत्र आमन्त्रण धन्यवाद उपसंहार परिशिष्ट ( क ) स्वागताध्यक्ष का भाषण (ख) सभापति का भाषण (ग) विषय निर्धारिणी समिति के सदस्यों की तालिका 29 (घ) आय व्यय सहायकों की नामावली : : : : : : : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat : :: ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ : : : : : : : : : : : : : पृ० १ ४ 30 SOV ८ १० १२ २३ ३१ ३५ ३७ ४५ ६७ ७१ ७२ www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat श्री अखिल भारतवर्षीय घोसवाल महासम्मेलन सभापति, स्वागताध्यक्ष, सदस्यों और स्वयंसेवकगण Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 454545454545454545454545454545454545454545454545 अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन au USUSL645454545454545454545454545454545454545455 प्रथम अधिवेशन-अजमेर, सं० १एनए रिपोर्ट संगठन के इस युगमें प्रत्येक समाज के लिये यह आवश्यक हो गया है कि वह अपने भिन्न २ अंगों को एक सूत्र में बांध कर सामूहिक रूपसे अपने उत्थान के लिये प्रयत्न करे। केवल भिन्न २ समाजों को ही संगठन की आवश्यकता नहीं है परन्तु राजनतिक, धार्मिक तथा औद्योगिक क्षेत्र में भी संगठन एक प्रभावशाली शक्ति मानी जाती है और इसके सहारे ही लोग अपनी उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करने में समर्थ होते हैं। हमारे देशमें भी भिन्न २ समाज, व्यवसाय तथा विचार के मनुष्य पारस्परिक संगठन के द्वारा अपने को उन्नतिशील बनाने का प्रयत्न करते हैं। केवल संगठन पर ही हमारा यह देश संसार के प्रमुख राष्ट्रों की श्रेणी में अपना उचित स्थान प्राप्त करने का उद्योग कर रहा हैं। संगठन के द्वारा देश के उद्योग धंधों को भी सुधारने का प्रयत्न हो रहा है। इस दृष्टि से हमारा ओसवाल समाज ही पिछड़ा हुआ है। सामाजिक संगठन का कोई व्यवहारिक कार्यक्रम अथवा स्वरूप अपने सामने नहीं रहने के कारण हम अपने संगठन को स्वप्नवत् ही समझते थे। अन्य समाजों के संगठन तथा उनके द्वारा होनेवाली उन्नति की ओर तृष्णा भरो दृष्टि से देखने के सिवा हमारे लिये कोई दूसरा रास्ता नहीं था। अपनी निःस. हाय अवस्था पर मनही मन हम लजित होते थे और निकट भविष्य में इस दशा से छुटकारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] पानेका उपाय सोंच रहे थे। कोई भी व्यक्ति या समाज नहीं चाहता कि उन्नति की ओर अग्रसर होने की वह चेष्टा न करे । अवनति को दूर करने का प्रत्येक व्यक्ति हर समय विचार करता है । साधनों की प्रतिकूलता के कारण इच्छापूर्ति अथवा लक्ष्य प्राप्ति के लिये उसे भले ही अधिक दिनोंतक प्रतीक्षा करनी पड़े। ओसवाल समाजके सम्बन्ध में भी यही बात थी । यों तो हमलोग बहुत दिनों से सामाजिक संगठन का उपाय सोचा करते थे लेकिन दुर्भाग्यवश अथवा अपनी अकर्मण्यता के कारण हमको इस सम्बन्ध में व्यवहारिक रूप से कुछ करने का अवसर नहीं मिला था। फिर भी सामाजिक संगठन की आग मन ही मन सुलग रही थी और यह निश्चित सा था कि किसी न किसी समय यह अवश्य प्रज्ज्वलित होगी और इसके द्वारा सामाजिक बुराइयों, कमजोरियों और अभावों का सहज में ही यथाशीघ्र नाश हो सकेगा । इस स्थल पर यह कह देना भी आवश्यक है कि इधर कई वर्षों से भिन्न २ व्यक्तियों के द्वारा अपने सामाजिक संगठन का उद्योग हुआ था । भिन्न २ स्थानों में संस्थाओं तथा सम्मेलनों की उत्पत्ति होती थी, लेकिन कई कारणों से उनमें कोई भी अखिल भारतवर्षीय रूप न पा सका और न किसी का संचालन ही अधिक दिनों तक हो सका । इन संस्थाओं और सम्मेलनों के दीर्घजीवी नहीं होने के कई कारणों में से हम मुख्यतः दो कारणों का उल्लेख कर सकते हैं। पहला तो यह था कि उनमें सर्वव्यापी सामाजिक भाव न थे। किसी संस्था का जन्म धार्मिक आधार पर हुआ था तो किसी का जन्म समाज के किसी श्रेणी विशेष को लेकर। इसलिये इन्हें पूर्ण सहयोग अथवा सहानुभूति नहीं मिल सकी। दूसरा कारण यह था कि इनका सम्बन्ध किसी प्रान्त विशेष अथवा स्थान विशेष से था अतः इन्हें अखिल भारतवर्षीय महत्व प्राप्त न हो सका । पिछले अनुभवों से लाभ उठाना समाज के लिये आवश्यक था । इसके साथ ही समाज के मनस्वी व्यक्ति यह अनुभव कर रहे थे कि किसी व्यापक उद्योग तथा संगठन के बिना समाज की बिगड़ी हुई दशा को सुधारना कठिन है लेकिन अखिल भारतवर्षीय उद्योग के लिये कोई अग्रसर नहीं हो रहा था । एक देश व्यापी संगठन के उद्योग का बोझ अपने सिर पर लेकर कोई भी समाज को विवशता के कष्ट से मुक्त करने का साहस नहीं करता था। इस समय अचानक कुछ लोगों का विचार व्यवहारिक रूप धारण करने लगा । प्रारंभ में यह न सोचा गया था कि जिस प्रकार एक छोटे से वट वीज के द्वारा विशाल वटवृक्ष की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार चंद उत्साही लोगों के पारस्परिक परामर्श के फलस्वरूप एक अखिल भारतवर्षीय संस्था की उत्पत्ति हो सकेगी परन्तु इस अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन की उत्पत्ति ऐसे ही हुई । घटना यह हुई कि गत जाड़े के दिनों में आगरा निवासी बाबू दयालचंदजी जौहरी अजमेर पधारे। राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा, बाबू दयालचन्दजो जौहरी तथा बाबू अक्षयसिंहजी डांगी के बीच समाज की वर्त्तमान अवस्था पर बातें हुई। इसी परामर्श ने धीरे २ गम्भीर रूप धारण किया और एक अखिल भारतवर्षीय सम्मेलन करने की तरंग मनमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 瀑 www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३ ] उठी । इसी के फलस्वरूप अजमेर के कई अन्य उत्साही सज्जनों से भी बातें हुई और बुलेटिन प्रकाशित करना स्थिर हुआ। वह बुलेटिन ( नं० १) भिन्न २ प्रान्तों तथा नगरों के प्रमुख व्यक्तियों तथा उत्साही कार्यकर्त्ताओं के पास भेजी गई और सम्मेलन के सम्बन्ध में उन महानुभावों की सम्मति मांगी गई । समाज के सौभाग्यवश सम्मेलन के सम्बन्ध में कई स्थानों से आशावद्ध क सम्मतियां आई । इसले अजमेर के कार्यकर्त्ताओं का उत्साह और भी बढ़ा और निकट भविष्य में ही वे सम्मेलन का अधिवेशन करने का विचार करने लगे । उत्साह तो बढा, सम्मेलन करने की उत्कट अभिलाषा लोगों के हृदय में उठो परंतु इसे व्यवहारिक रूप कैसे दिया जाय यह प्रसंग उपस्थित हुआ । यहि उत्साहपूर्ण सम्मतियों के साथ २ सहायता के भी वचन मिलते तो दूसरी बात होतो और मार्ग में किसी प्रकार को प्रबल बाधा दिखलायी नहीं देती । लेकिन ऐसी बात न थी । सहायता के लिये कोई सामने उपस्थित न था । ऐसो दशा में केवल निजी बल पर इस महान् कार्य का दायित्व अपने सिर पर उठाने में गिने गिनाये स्थानीय कार्यकर्त्तागण आगा पीछा करते थे । परन्तु उत्लाह तथा समाज सेवा की भावना उनमें प्रबल थी। इसके साथही सम्मिलित स्वर से संस्था को आवश्यकता बतला कर समाज के Toranन्य व्यक्तियों ने उनके उत्साह को और भी बढा दिया था । उनलोगों के हृदय में यह भावना उठी कि जब समाज को सम्मेलन की आवश्यकता है तो बाधाओं के भय से आवश्यकता पूर्ति की ओर अग्रसर न होना कायरता होगी । समाज की विराट शक्ति में अटल विश्वास रखते हुए वे कार्यक्षेत्र की ओर अग्रसर हुए । सम्मेलन करने के प्रस्ताव को कार्यरूप में लाने के लिये अजमेर के कार्यकर्त्ता उत्सुक हो उठे और इस सम्बन्ध में विचार करने के लिये एक सभा करने का निश्चय हुआ । कुछ सज्जनों के हस्ताक्षर से एक सूचना छपत्रा कर बांटी गई और संवत् १६८६ चैत शुक्ल ४ (१० अप्रैल लि-१९३२ ई० ) के साढ़े सात बजे संध्या समय लाखनकोठड़ी में बाबू मूलचन्दजी बोहरा के सभापतित्व में एक सभा हुई। इस सभा में बुलेटिन नं० १ तथा उस पर आई हुई सम्मतियां पढ़कर सुनाई गई । इसके साथ इस विषय पर भी विचार हुआ कि सम्मेलन करने का आयोजन किया जाय या नहीं और यदि करना आवश्यक हो तो कहां और कब होना चाहिये । प्रस्तावित सभा के नामकरण के सम्बन्ध में भी परामर्श हुआ और दीर्घकाल तक वाद विवाद होता रहा । पश्चात् यह स्थिर हुआ कि सम्मेलन का आयोजन किया जाय तथा इसका प्रथम अधिवेशन अजमेर में ही हो। कार्त्तिक कृष्ण १,२,३ तदनुसार ताः १५-१६-१७ अक्टूबर सन् १६३२ को बैठक का दिन स्थिर किया गया और दूसरे ही दिन रात्रि को स्वागत समिति का संगठन करने के लिये एक सभा बुलाने का निश्चय करके सभा विसर्जित हुई । इसके अनुसार चैत्र शुक्ल ५ ताः ११ अप्रैल १९३२ ई० को बाबू मूलचंदजी बोहरा के सभापतित्व में फिर एक सभा हुई। उसमें स्वागत समिति के पदाधिकारियों का चुनाव हुआ और स्वागत समिति सम्बन्धी कुछ नियमादि बनाये गये ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ ] निम्नलिखित सजन स्वागत समिति के पदाधिकारी चुने गये : बाबू सुगनचंदजी नाहर-उप-सभापति बाबू अक्षयसिंहजो डांगी-मंत्रो बाबू धनकरणजी चोरडिया-उप-मंत्री सेठ सोभागमलजी मेहता-कोषाध्यक्ष कार्यकारिणी समिति के सदस्य :- .. राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा बाबू मूलचंदजी बोहरा बाबू माणकचंदजी बांठिया षाबू हरीचंदजी धाडीवाल बाबू हमीरमलजी लूणिया उपरोक्त निर्वाचन के साथ २ कार्यकारिणी समिति को यह अधिकार भी दिया गया कि आवश्यकतानुसार वह अपने सदस्यों की संख्या वृद्धि कर सकती है। इसके अनुसार कुछ दिनों के बाद सेठ रामलालजी लूणिया तथा बाबू दयालचंद जो जौहरी कार्यकारिणी के सदस्य बनाये गये। पदाधिकारियों के चुनाव के बाद खांगत समिति ने उत्साह-पूर्वक अपना काय आरम्भ किया। जनता में सम्मेलन के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने के लिये कई विज्ञप्तियां प्रकाशित की गई और उनका लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। इनका सारांश इस प्रकार है : विज्ञप्ति नं०१ में स्वागत समिति की उत्पत्ति तथा सम्मेलन सम्बन्धी बुलेटिन नं०१ के विषय में आई हुई प्रमुख सम्मतियों का संक्षिप्त विवरण है। विज्ञप्तिनं०२ में स्वागत समिति द्वारा निर्धारित सम्मेलन तथा स्वागत समिति सम्बन्धी नियमावली है तथा उसके द्वारा जनता से सभापति के चुनाव के सम्बन्ध में सम्मति मांगी गई है। विज्ञप्ति नं०३ में स्वागत समिति के द्वारा भिन्न २ स्थानों में प्रचारार्थ और प्रतिनिधि (डेलीगेट) बनाने के लिये जानेवाले डेपुटेशनों का उल्लेख है तथा जनता के सामने कई आवश्यकीय सामाजिक विषयों के प्रश्न रखे गये हैं। विज्ञप्ति २०४ में समाज के सामने सम्मेलन में विचारार्थ कुछ आवश्यकीय विषयों का उल्लेख है और उस पर जनता का मतामत आह्वान किया गया है। विज्ञप्ति नं०५ में स्वयंसेवकों के लिये अपील की गई है तथा उनके कर्त्तव्य के सम्बन्ध में कुछ बातें हैं। ता० ३०-४-३२ को पांचो विज्ञप्तियां प्रकाशित कर दी गई। कार्यकर्ताओं में से राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा विशेष उत्साह के साथ सम्मेलन की सफलता के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिये प्रयत्न करने लगे। आपने ताः ५-६-३२ से १५-१-३२ तक मंत्रीजी को सम्बोधन करके बुलेटिन नं०२।३।४ प्रकाशित की। इन सबों में समाज की उन्नति के लिये कई प्रकार को स्कीम तथा अन्यान्य विषयों की आलोचना थी। इधर कायकर्ताओं की ओर से भारत के भिन्न २ स्थानों में अषाढ़ वदि १ ता० १६.६३२ से निमंत्रणपत्र भेजा जाने लगा। इसके बाद से ही कार्यक्रम बढ़ता गया । अपने समाज का गोशवारा, डाइरेकरी तैयार करने के लिये फार्म बना कर सब प्रान्तों में भेजे गये। इसके अतिरिक्त मंत्री की ओर से स्वयंसेवकों के नियम, उनके प्रवेश के लिये प्रार्थना-पत्र आदि भी आवश्यकतानुसार प्रकाशित होते रहे। उपरोक्त विज्ञप्तियां, बुलेटिन आदि साहित्य डाक द्वारा मुख्य २ नगरों और शहरों में प्रचारार्थ भेजे गये। सुयोग्य उत्साही मंत्री बाबू अक्षयसिंहजी डांगी ने अंग्रेजी भाषा में 'The Future of the Oswal Community' नामक एक सारगर्भित लेख ताः २-७-३२ को प्रकाशित किया। ___इन सब साहित्यों से लोकमत पुष्ट करके सदस्य और प्रतिनिधि बना कर जिसमें समाज के लोग सम्मेलन के अवसर पर अच्छी संख्या में उपस्थित होकर उसकी कार्यवाही में भाग लें, इसको व्यवस्था के लिये डेपुटेशन की पाटियां स्थान २ में, विशेष कर जहां ओसवालों की अच्छी बस्तो है भेजने का निश्चय किया गया। डेपुटेशन के दौरे में जिन २ महाशयों ने भाग लिया था उनके कार्यक्रम का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :(१) बाबू सम्पतराजजी धाड़ीवाल और बाबू रतनचंदजी पारख । आपलोग देहली, पंजाब और बीकानेर प्रान्त में गये और २०० मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ३७१) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : देहली, पटियाला, नाभा, मालेरकोटला, अम्बाला, लुधियाना, होशियारपुर, जालंधर, झंडियाला गुरु, अमृतसर, नारोवाल, पसरुर, सियालकोट, जम्मू, झोलम, रावलपिंडी, गुजरानवाला, लाहौरपट्टी, कसूर, फरीदकोट, जीरा, रोहतास, जगरामा, बीकानेर, सरदार सहर, चूरु, रतनगढ़, गंगा शहर और लाडनू ।। (२) राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा और बाबू उगमचंदजी मेहता आपलोग सी० आई०, सी०, पी०, गुजरात और काठियावाड़ गये, २०० मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ६२०) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : किशनगढ़, जयपुर, जोधपुर, कोटा, रतलाम, पूना, बम्बई, इन्दौर, खंडवा, भुसावल, जलगांव, जामनेर, मनमाड़, नासिक, इगतपुरी, अहमदनगर, औरंगाबाद, जालना, परमणो, अकोला, अमरावती, चान्दा, श्योध, मालबच्चो, नागपुर, बेतूल, होसंगाबाद, भोपाल, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेंक, झालावाड़, सवादी, माधोपुर, जावरा, बड़ोदा, भडोच, सूरत, अहमदाबाद, केम्बे, भावनगर, वेरावल, जूनागढ़, पोरबन्दर, राजगढ़, जामनगर पालनपुर, सिरोही और एरिनपुर, । (३) बाबू होरालालजी वकील आप मारवाड़ में दौरा करके ३०० मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु. ७०५) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : सोजत, वगडो. आनुवा, राएन, फालना, वाली, समदडी, सांडेराव, शिवरनपुर, खिवानदी, वगेरा, पाली, सादड़ो, आहोर, जालोर, बालोतरा, पचभदड़ा, बाड़मेर, वांदनवाडा, कुमरकोट, नागोर, कुचेरा, पूरवा, मेडता, कुचामन रोड और शिवगंज । (४) बाबू अक्षयसिंहजी डांगी, वकील और बाबू लाभचंदजी चोरड़िया आपलोग ५० मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ३६०) चंदा संग्रह किया तथा निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : शाहपुरा, आगरा, सिमला, लश्कर, सिप्रो और कलकत्ता। (५) बाबू हीरालालजी चोरडिया आप २० मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ३४) चंदा संग्रह किया ओर निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : कानपुर, बनारस और मिरजापुर। (६) बाबू चांदमलजी चोरडिया, वकील आप अजीमगंजमें प्रचार किया वा सम्मेलनके सहायतार्थ रु०४०) संग्रह किया। (७) बाबू मनोहरसिंहजी मेहता आप ५७ मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ८८) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : ____ बानराड़ा, चणाव, बरेल, गुलाबपुरा, भीलवाड़ा, माडलगढ, बेगू, माडल, वितोड़, डूंगरपुर और भेसोलगढ । (८) बाबू सरदारसिंहजी पानगडिया और बाबू रतनचंदजी पारख आपलोग ४० मेम्बर बनाया और सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ७५) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : टीटगढ, भीम, देवगढ, काकरोली, नाथद्वारा और उदयपुर। (E) बाब सरदारमलजी सेठिया और बाबू जसकरणजी कोठारी आपलोग १०० मेम्बर बनाया और सम्मेलन के सहायतार्थ रु० २३७) चंदा संग्रह किया तथा निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] किशनगढ़, हरमाडा, अराई, सरवार भीनाय, तिपारी, भुवांरा, तिलोनिया भुवानी और गोदाना । (१०) बाबू प्रेमचंदजी सोलंखी आप २४ मेम्भर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ३६) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : घारेराव, देसूरी. राणी, कोट, सेवाडी, सांडेराव और विजोवा । . (११) बाबू उगमचंदजी मेहता आप २४ मेम्बर बनाया और सम्मेलन के सहायतार्थ रु० ४०) चंदा संग्रह किया जयपुर मैं 'प्रचार किया । तथा व्यावर और ( १२ ) बाबू किशनलालजी पटवा आप १६ मेम्बर बनाया और सम्मेलन के सहायतार्थ रु०४६) चंदा संग्रह किया तथा भरतपुर और अलवर में प्रचार का कार्य किया । (१३) बाबू मिलापचंदजी मेहता और बाबू शान्तिलालजी आपलोग २६ मेम्बर बनाया तथा सम्मेलन के सहायतार्थ रु०५२) चंदा संग्रह किया और निम्नलिखित स्थानों में प्रचार किया : बाडमेर, हाला, करांची, और जैसलमेर । ( १४ ) बाबू धनकरणजो चोरड़िया और बाबू उमरावमलजी लूणिया ने निम्नलिखित स्थानों में प्रचार का कार्य किया : नीमच, सितारा, सोलापुर, कोलापुर, बैलगाव, धाडवार, बंगलोर, मद्रास, हैदराबाद, डेकान, कामठी, सिवोनी, नरसिंगपुर, दमोह, झांसी और दतिया । तत्पश्चात् मंत्रीजी ने ता० ६-६-३२ को विज्ञप्ति नं० ६ प्रकाशित किया। इसमें स्वागत समिति के द्वारा भिन्न २ स्थानों में भेजे हुए डेपुटेशनों का उल्लेख तथा सम्मेलन के अधिवेशन की तैयारी की चर्चा है आगे चल कर अधिवेशन को पूर्ण सफलता के लिये सुयोग्य स्वागताध्यक्ष और सभापति के चुनाव के विषय में मुष्टिमेय कार्यकर्त्ताओं को विशेष कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्वागताध्यक्ष का पद ग्रहण करने के लिये स्थानीय सज्जनों से बारंबार आग्रह किया गया लेकिन वे लोग इस भार को उठाने के लिये तैयार न हुए। इस उत्तरदायित्वपूर्ण भार को उठाने के लिये आसपास के भी कोई सज्जन तैयार न थे । सौभाग्यवश अपने समाज के प्रसिद्ध कार्यकर्त्ता जामनेर निवासी सेंठ राजमलजी ललवाणी साहेब से प्रार्थना की गई और उन्होंने सहृदयतापूर्वक इस भार को स्वीकार किया । इतना ही नहीं, आपने इस कार्य में विशेष उत्साह दिखलाया और आर्थिक सहायता देने का भी वचन दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस प्रकार से सम्मेलन के कार्य में प्रोत्साहन बढता गया। पत्र पत्रिकाओं द्वारा समाज के सब प्रान्त के लोग इस महान् कार्य की आवश्यकता अनुभव करते हुए अच्छी दिलचस्पी दिखाने लगे। अब केवल सभापति के स्थान को सुशोभित करने के लिये एक अनुभवी योग्य सजन के चुनाव की चिन्ता रहो। अपने समाज के कई प्रतिष्ठित पुरुषों से यह बीड़ा उठाने के लिये साग्रह निवेदन किया गया, लेकिन सफलता नहीं हुई। कोई भी यह भार ग्रहण करने के लिये तैयार नहीं हुए। बाब परणचंदजी नाहर समाज के एक प्रख्यात वयोवृद्ध विद्वान हैं। इनके नेतृत्व में सम्मेलन का कार्य करने के लिये कई स्थानों से सम्मतियां भी आई थीं और निवेदन करने पर आपने भी शारीरिक अशक्यता के कारण क्षमा मांगी। इस प्रकार से सब प्रयत्न निष्फल होते हुए देखकर बाबू दयालचंदजी साहेब ने पुनः श्रीमान् नाहरजी साहेब पर हो साग्रह दबाव डाला। अस्वस्थ रहने पर भी आपने समाज की सेवा को एक प्रधान कर्त्तव्य समझ कर अन्त में सभापति का इस दायित्वपूर्ण पद को ग्रहण करने की स्वीकृति भेजी। इस समाचार से सम्मेलन के कार्यकर्ताओं में काफी संतोष और उत्साह फैला। पश्चात् ताः २६-६-३२ को स्वागतकारिणी समिति की बैठक में सर्वसम्मति से श्रीमान् नाहरजी सभापति चुने गये। इस चुनाव का बिजली सा असर पड़ा। दूसरे दिन ताः २७-६-३२ को मंत्री की ओर से विज्ञप्ति नं. ७ प्रकाशित हुई। इसमें स्वागताध्यक्ष और सभापति के चुनाव को घोषणा के साथ स्वागत समिति के भिन्न भिन्न विभागों के मंत्रियों तथा पदाधिकारियों का उल्लं ख है। __ सम्मेलन की तारीख ज्यों २ नजदोक पहुंचती गई त्यों २ लोगों में उमंग बढता गया। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने पर भो भोमान् नाहरजी ने रातदिन अनवरत परिश्रम कर अपना महत्वपूर्ण भाषण प्रस्तुत किया। किस कार्यक्रम का सहारा लेने पर सम्मेलन का कार्य सुचारु रूप से संचालित हो सकेगा, इस विषय की ओर उनका विशेष ध्यान था। यह बात उनके ध्यान में थी कि प्रथम अधिवेशन होने के कारण इस वार के अधिवेशन को ही पथप्रदर्शक का काम करना पड़ेगा। सामाजिक सुधारों के सम्बन्ध में जो रेखा निर्धारित होगी तथा जिस रीति नीति का सहारा लिया जायगा उसीके अनुसार भविष्य में कार्य होगा। आप जैसे विद्वान् और बहुदशी हैं, वैसेही गंम्भीर तथा कर्मठ भी। आप अपने प्रान्त के कई धार्मिक और सामाजिक उलझनों को सुलझाने में सफलता प्राप्त कर चुके थे। आप सुविख्यात इतिहासवेत्ता हैं। लगभग दो वर्ष पहले कलकत्ता के 'ओसवाल नवयुवक समिति' ने एक अभिनंदन पत्र देकर आपको सम्मानित किया था। आपके चुनाव से सारे समाज में तथा विशेष कर अजमेर को जनता में यथेष्ट सहानुभूति उत्पन्न हो गई । कार्यकुशल राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा ने अतुल परिश्रम से सम्मेलन के लिये पुलिस मैदान में एक विशाल पंडाल बनवाने का काम आरम्भ कर दिया । ___ अधिवेशन का कार्य ताः १५-१०-३२ से शुरू होने का निश्चय हो चुका था। इसकारण यह निश्चय किया गया कि सभापतिजी कलकत्ते से १२-१०-३२ को रवाना होकर ताः १४-१०-३२ को अजमेर पहुंचेंगे और इस प्रकार एक दिन विश्राम कर सभा की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्यवाही में भाग लेंगे। दुर्भाग्यवश ताः ६-१०-३२ को सभापतिजो की पुत्रवधू के देहान्त होने का समाचार मिला । परन्तु इसकी कोई परवाह न कर वे अपने कर्त्तव्य-पालन पर अटल रहे लेकिन यहीं पर ही सभापति महोदय को अग्नि-परीक्षा को इतिश्री नहीं हुई। तीसरे ही दिन तार से समाचार मिला कि वे स्वयं इनफ्लुन्जा रोग से ग्रसित हो गये हैं और उनका अजमेर के लिये प्रस्थान करना कठिन है। इधर सम्मेलन में भाग लेनेवाले सजन तथा स्वयंसेवक बाहर से पधारने लगे थे। ऐसो दशा में स्वागत समिति तथा उपसमिति के कार्यकर्तागण बड़ी असमंजस में पड़े। अब प्रश्न यह उठा कि या तो सम्मेलन का अधिवेशन कुछ दिनों के लिये स्थगित कर दिया जाय या उसके संचालन का कोई और प्रबन्ध किया जाय। लेकिन प्रथम अधिवेशन में ही इस तरह किसी भी प्रकार से काम चलाना संतोषप्रद नहीं जंचा। अन्त में यह निश्चय हुआ कि सम्मेलन को स्थगित रखना किसी भी प्रकार उचित नहीं होगा। ऐसा करने से लोग अकारण ही नाना प्रकार को कल्पना करने लगेंगे। इस कारण सभापतिजी के पास इस आशय का तार भेजा जाय कि बाहर से प्रतिनिधियों का आना प्रारम्भ हो गया है। इस कारण अधिवेशन को स्थगित रखना संभव नहीं है। आप अपने सुपुत्र अथवा और किसी योग्य सज्जन के साथ अपना भाषण भेजकर कार्यारम्भ होने दें और दो एक दिनों में स्वस्थ्य होने पर आप स्वयं पधारें। लेकिन यहां तो सभापतिजो के हृदय में समाज-सेवा और कर्त्तव्य पालन की प्रबल लहर उठ रहो थी। तार पाते ही आपने निश्चय कर लिया कि किसी भी हालत में अब नहीं रुकेंगे और बोमार रहते हुए भी ताः १३-१०-३२ को लम्बो सफर के लिये कमर कस कर अजमेर के लिये पंजाब मेल से रवाना हो गये। साथ में उनके पुत्र बाबू विजयसिंहजी नाहर बी० ए०, बिहार-निवासी उनके दौहित्र बाबू इन्द्रचन्दजो सुचंती बी० ए० एल० एल० बी० एडवोकेट हाईकोर्ट तथा आगरा-निवासी देशभक्त बाबू चांदमलजी जौहरी बो० ए० एल० एल० बो० वकील हाईकोर्ट थे। रास्ते में कानपुर, आगरा तथा किशनगढ़ के भाइयों ने अपने अपने स्टेशनों पर अच्छी संख्या में उपस्थित होकर पुष्पवृष्टि के द्वारा सभापतिजी का प्रेमपूर्ण स्वागत किया। ताः १५ अक्टूबर को प्रातः साढ़े सात बजे के समय अजमेर स्टेशन पर गाड़ो जा लगो। स्वागत के लिये वहां पहले से ही बहुसंख्यक लोग उपस्थित थे। उन में कुछ विशेष नाम इस प्रकार है : सेठ कानमलजी लोढा, सेठ रामलालजी लूणिया, बाबू गुलाबचन्दजी ढड्डा एम० ए०, सेठ हीराचन्दजी सुचतो, सेठ फूलचन्दजी झावक, बाबू पूरणचन्दजी सामसुखा, बाबू कुन्ननमलजी फिरोदिया वकील, सेठ इन्द्रमलजी लूणिया, बाबू दयालचन्दजी जौहरी, सेठ सोभागमलजो मेहता, बाबू अमरचन्दजी कोचर, सेठ सुगनचन्दजी धामन गाम वाले, स्वागताध्यक्ष सेठ राजमलजी ललवाणी, राय साहेब कृष्णलालजी वाफणा, बाबू सुगनचंदजी नाहर तथा बाबू अक्षयसिंहजी डांगी-मन्त्री सम्मेलन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० ] ट्रेन के पहुंचते ही पुष्पवर्षा और भगवान महावीर की जय', 'ओसवाल जाति की जय' इत्यादि उच्चध्वनि से नभोमंडल गूंज उठा। जिस समय सभापतिजो स्टेशन के प्लेटफार्म पर उतरे उस समय उनको ज्वर था तो भी वे प्रसन्न-मुख थे। उनको तथा उनके साथ के सजनों को फूलों के हार पहिनाये गये। सबने जुलूस निकालने का आग्रह किया परन्तु आपने इसकी स्वीकृति नहीं दो। पश्चात् स्टेशन के मैदान में सभापतिजी ने स्वयंसेवकों तथा विद्यालय के छात्रों का निरीक्षण किया। उन लोगों ने भी सभापतिजी का सम्मानसूचक स्वागत किया। इसके बाद चार घोड़ों की सवारी में बैठकर सभापतिजी 'ब्लू केसल' बंगले में पधारे। बाहर से आये हुए प्रतिनिधि, दर्शक आदि अन्यान्य सजनों के ठहराने की और भोजनादि की कई स्थानों में योग्य व्यवस्था की गई थी। राय साहेब कृष्णलालजो बाफणा साहेब की देखरेख में पंडाल भी बहुत चित्ताकर्षक तैयार हुआ था। उसके मुख्य द्वार से प्रवेश करते समय दाहिनी ओर एन्क्वे री आफिस और बांई ओर टिकट घर बना हुआ था। दूसरे द्वार से प्रवेश करने पर बांई ओर दर्शक, प्रतिनिधि और निमन्त्रित लोगों को गैलरियां क्रमशः बनो हुई थो। दाहिनी ओर दर्शक, प्रतिनिधि और महिलाओं के लिये स्थान था। बोचमें वक्ताओं के लिये प्लैटफार्म बना हुआ था। सभापतिजी के लिये सोने चांदी के काम की कुसी मंच के बीच में सुशोभित थी और उसके दोनों तरफ दो और चांदी की कुर्सियां सजी हुई थी। पंडाल के बाहर दर्शकों के विश्राम के लिये तथा खाने पीने की सुविधा के लिये बड़े २ कैम्प और डेरे लगे हुए थे और दुकानें भी थीं। पंडाल के भीतर और बाहर का दृश्य सुन्दर था। ___पंडाल के बाहर प्रदर्शनी भी सजाई गयी थी। इसमें राजपुताना में उत्पन्न होनेवाले खनिज वानस्पतिक आदि प्राकृतिक पदार्थ तथा खेतों में पैदा होनेवाले नाना प्रकार के द्रव्य और यहां को कारीगरो के नमूने रखे हुए थे। इनके अतिरिक्त प्रदर्शनी में, बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा सुगमता से प्राप्त करने के साधन एकत्रित किये गये थे। इन विषयों के विशेषज्ञ श्रीयुत् बाबू चतुर्भुजजी गैलोत, डी० डो० आर०, एम० एल० एस. आदि तथा श्रीयुत बाबू नारायण प्रसादजी मैठ, बी० एस० सो० इन वस्तुओं को बड़ी खूबी से समझाते थे और दर्शक लोग भी उन्हें बड़ी दिलचस्पो के साथ देखते थे। पहिले दिन की बैठक कार्यक्रम के अनुसार प्रथम दिवस के अधिवेशन का कार्य दिन १ बजे से आरम्भ हुआ। पंडाल में प्रतिनिधि, दर्शक, मेहमान तथा महिलाओं की उपस्थिति अच्छी संख्या में थी। मंच पर बैठे हुए विशिष्ट लोगों में सभापतिजो के परिचित दिवान बहादुर हरविलासजो सारदा एम० एल० ए० तथा महामहोपाध्याय राय बहादुर पं० गौरीशंकर ओझाजी के नाम विशेष उल्लेखनीय है। बालकोंके मङ्गल गान के पश्चात् स्वागताध्यक्ष सेठ राजमलजी ललवाणी ने अपना मधुर भाषण ( परिशिष्ठ-क) पढ़ा। आपका भाषण छोटा था परन्तु रोचक और समयानुकूल था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११ ] इस के पश्चात् राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा ने सभापति के चुनाव का प्रस्ताव इन शब्दों में किया: संसार के सब जातियों में, सब प्राणियों में एक सरपरस्त होता है जो उन्हें रक्षा करता है और रास्ता बतलाता है। मक्खियों में जैसे Queen Bee, हाथियों में अगुला हाथो, बन्दरों में टोले का सरदार, इसो तरह सब जन समूहों में एक न एक सरदार की आवश्यकता रहती है। बिना मुखिया के समाज संगठित नहीं होता लेकिन समाज के मुखिया में ये गुण होने चाहिये कि वह विद्वान् हो, अनुभवो हो, साहसी हो, कर्तव्यपरायण हो तथा कर्मशील वा शुद्ध आचरणवाला हो। धनवान वा सत्तावान की जरूरत नहीं क्योंकि धन विद्वान् वा सत्तावालों के सामने कोई वकत नहीं रखता। मामूली राज्य कर्मचारी एक बड़े साहुकार को उठा बिठा सकता है। जिसने बारूद की बन्दूक निकालो वा मेगजीन बनानेवाला अपने शस्त्र से कोटाधिपति का दिल हिला सकता है। विद्या के एक चमत्कार से करोड़ों रुपये की सम्पत्ति हो सकती है। Ford को बनानेवाला एडीसन उसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। जो गुण मुखिया में होना चाहिये वह सब हमारे मनोनीत प्रमुख साहेब बाबू पूरणचंदजी नाहर में विद्यमान है। विद्या में आप एम० ए०, बी० एल० हैं, आप का अनुभव आप की रचित किताबोंसे प्रख्यात है। आपकी विद्वता आपके ऐतिहासिक अनुसन्धान तथा आप के कई युनीवर्सिटियों के मेम्बर होने से प्रकट है; कर्त्तव्यपरायणता वा जाति-प्रेम आपका इसी से सिद्ध है कि अपने घर में दूसरे लड़के की बहू की मृत्यु होने पर जिसको पांच दिन ही हुए हैं वा स्वयं इनफ्लुञ्जा बुखार में मबतिला रहते हए जिससे आपका स्वास्थ्य बिलकल हिलने डलने के लायक भी नहीं है, आप वचन को पालते हुए जाति सेवा के निमित्त कलकत्ते से बड़े लम्बे सफर में सब तरह के कष्ट सहकर यहां पधारे हैं, इसलिये हमारा सौभाग्य है कि श्रीमान बाबू पूरणचंदजी नाहर से प्रार्थना करें कि वे इस सम्मेलन के प्रधान पद को ग्रहण कर सम्मेलन के कार्य का संचालन करें। सुप्रसिद्ध घाबू गुलाबचंदजो ढड्डा ने सभापतिजी के दिव्य जीवन पर अधिक प्रकाश डाला और सुयोग्य शब्दों में राय साहेब के प्रस्ताव का अनुमोदन किया। पश्चात् आगरा-निवासी बाबू दयालचंदजी जौहरी तथा सिकन्दराबाद वाले बाबू जवाहरलालजी ने सभापतिजी की योग्यता और जीवनपर और भी प्रकाश डालते हुए प्रस्ताव का समर्थन किया। इसके पश्चात् करतलध्वनि के साथ बाबू पूरणचन्दजी नाहर ने सभापति का आसन ग्रहण किया। रीयांवाले सेठ प्यारेलालजी की कन्या श्रीमती माणकबाई ने कुकुम से सभापतिजी को तिलक करके हार पहनाया और ओसवाल बालकों की मंडली ने सुन्दर भजन गाया। तद्पश्चात् सभापति महोदय ने प्रार्थना के बाद भाषण आरम्भ कर के, सर्दी और ज्वर के प्रकोप से कंठस्वर रुद्ध रहने के कारण अपने सुयोग्य दौहित्र बाबू इंद्रचंदजी सुचंती को अपना भाषण पढ़कर सुनाने का आदेश दिया और बाबू इंद्रचंदजो ने सभापतिजी का प्रभावशाली भाषण स्पष्ट और प्रभावपूर्ण रूप से पढ़ा। आप के विद्वता पूर्ण भाषण का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२ ] श्रोताओं पर बड़ा ही सुन्दर प्रभाव पड़ा। उस समय पंडाल स्त्री पुरुषों से खचाखच भरा हुआ था। सम्पूर्ण भाषण परिशिष्ट-ख में प्रकाशित किया गया है। भाषण समाप्त होनेपर विषय निर्धारिणी समिति का चुनाव हुआ। जो २ सजन चुने गये उनकी तालिका परिशिष्ट-ग में दी गई है तदन्तर प्रथम दिन की मध्याह्न बैठक का कार्य समाप्त हुआ। उसी दिन रात्रि को साढ़े सात बजे ब्ल्यू कैशल में विषय निर्धारिणी समिति (Subject Committee) की बैठक हुई। सभापतिजो के अस्वस्थ्य रहने के कारण उनके स्थान पर बाबू पूरणचंदजी सामसुखा ने बड़ी योग्यता के साथ काम चलाया। दूसरे दिन प्रातः काल तथा रात्रि को और तीसरे दिन सबेरे उसी स्थान में कार्यक्रमानुसार विषय निर्धारिणी समिति की सभायें होती रहीं और सामसुखाजी उपस्थित रहकर सब काम करते थे। बैठकों में कई प्रस्तावों पर खूब वाद विवाद होता रहा और कुछ परिवर्तन के साथ कई प्रस्ताव सम्मेलन में उपस्थित करने के लिये सर्वसम्मति से स्वीकृत हुए और कुछ प्रस्ताव बहुमत से पास हुए। दूसरे दिन की बैठक द्वितीय दिवस १ बजे से अधिवेशन का कार्य आरम्भ हुआ। पहले मंत्री बाबू अक्षयसिंहजी डांगी ने सम्मेलन से सहानुभूति रखने वाले आचार्य, मुनिराज तथा प्रतिष्ठित सजनों के बाहर से आये हुए तार आदि का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार पढ़ कर सुनाया :(१) आचार्य महाराज श्रीवल्लभविजयजी-मुः सादड़ी ___ "ओसवाल वंशीय समग्र जनता का संगठन और उनका भला किस प्रकार हो सकता है विचार किया जावे, इतना ही नहीं उसका प्रचार भी किया जावे, निर्धारित किया है अतीव हर्ष का विषय है। इसके लिये सबसे पहले संगठन-संघ आपस में मिलने की जरूरत है। जब आप सब सरदारों का शुद्धान्तःकरणपूर्वक संगठन हो जायगा तो फिर आप जिस किसी भी कार्य को करना चाहेंगे बहुत ही जल्दी कर सकेंगे। शासनदेवता आपके हर एक कार्य में सहायता देवें और आप को सम्मेलन में सफलता प्राप्त होवे यही हमारी भावना है।" (२) आवार्य महाराज श्रीजिनचारित्रसूरिजी-मुः बीकानेर ___ "आपलोगों की बड़ी भारी सफलता वा ऐक्यता के लिये ईश्वर से प्रार्थना करता हूं।" (३) मुनि महाराज श्रीचुन्नीलालजी-मुः व्यावर "समयानुसार ओसवाल जाति को सुधार करना चाहिये और संगठन पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३ ] विशेष ध्यान देना चाहिये। आपस की फूट इसकी अवनति का मुख्य कारण है। सम्मेलन को पूर्ण सफलता मिले।" . (४) मुनि महाराज श्रीहिमांशुविजयजी (अनेकान्ती)-मुः उज्जैन "ओसवाल जाति को परस्पर सम्बन्ध करने में प्रान्त, देश का भेद बाधक नहीं होना चाहिये। श्रोओसवाल सम्मेलन सम्पूर्ण सफलता प्राप्त करे, यह मैं हृदय से चाहता हूं।” (५) राय बहादुर सिरेमलजी बाफणा, एम० ए०, एल० एल० बी०, सी० आई० ई० प्रधान मंत्री-रियासत इन्दोर ___ "मुझे बड़ा खेद है कि कई अनिवार्य कारणों के सबब मैं नहीं आ सकता। सम्मेलन की सफलता हृदय से चाहता हूं।" (६) डा० भंवरलालजी बरड़िया, सिविल सर्जन-लखनऊ ___“छुट्टी नहीं मिल सकने के कारण आ नहीं सकता। मैं सम्मेलन की पूर्ण सफलता चाहता हूं।" (७) श्रीमान् कन्हैयालालजी भंडारी, मैनेजिंग डाइरेक्टर, 'भंडारी मिल्स्'-- इन्दोर “मैंने सम्मेलन में आने का पूर्ण निश्चय कर लिया था परन्तु आज ही एक ऐसा काम उपस्थित हो गया है कि जिसके कारण मेरी इच्छा के विरुद्ध मुझे यहां रुकना पड़ा है। मैं सम्मेलन को पूर्ण सफलता चाहता हूं।" (८) सेठ रघुनाथमलजी, बैङ्कर-मुः हैदराबाद (डेक्कान ) “बीमारी के कारण सम्मेलन के अधिवेशन पर नहीं आ सकता जिसके लिये खेद है। मैं सम्मेलन की हर प्रकार से सफलता चाहता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि जो प्रस्ताव पास किये जावें उनको व्यवहारिक रूप भी दिया जावे। ओसवाल समाज के सहायतार्थ ओसवाल बैङ्क कायम करने के लिये मेरा अनुरोध है । ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि सम्मेलन को पूरी सफलता मिले।" (६) सेठ अचलसिंहजी (जेलसे)-मुः आगरा (बाबू दयालचन्दजी जौहरो द्वारा प्राप्त) “मैं ओसवाल समाज में संगठन, प्रेम और सुधार की निहायत ज़रूरत समझता हूं और अगर अवकाश मिला तो सेवा करने को तैयार हूं।" (१०) श्रीमतो भगवती देवी, धर्मपत्नी सेठ अवलसिंहजी-मुः आगरा “बीमार होने के कारण नहीं आ सकती इसका खेद है। सम्मेलन की सफलता चाहता हूं। कृपया परदा, स्त्री-शिक्षा तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग आदि विषयों पर प्रस्ताव पास करियेगा।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १४ ] (११) श्रीमान् राजेन्द्रसिंहजी सिंघी-मुः कलकत्ता ___ "खेद है कि मैं नहीं आ सकता । सम्मेलन की हृदय से सफलता चाहता हूं।" (१२) श्रीमान् बालचंदजी श्रीश्रीमाल-मुः रतलाम "ओसवाल जाति में वाल रसम रिवाज़ों का पलटा करना, अन्धाधुन्ध बादशाही खर्च के स्थान पर देश कालानुसार सुलभ रिवाज़ों रसमों का प्रचार करना इत्यादि कार्यों को व्यवस्थित और संगीन रूप से करने के लिये संगठन बल को उन्नत बनाने की आवश्यकता है।" (१३) सेठ मंगलचंदजी झावक - मुः मद्रास "हमको आप के कार्य से पूर्ण सहानुभूति है और श्रीवीतराग भगवान से आपकी सफलता की प्रार्थना करते हैं।" (१४) सेठ विजयराजजी--मुः मद्रास __“उपस्थित होने से लाचार हूं। सम्मेलन की हृदय से सफलता चाहता हूं।" (१५) श्रीयुत सेसमलजी-मुः इगतपुरी "खेद है माता बीमार हैं। परदा, मृत्युभोज के खिलाफ़ मैं अपील करता हूं। सम्मेलन की सम्पूर्ण सफलता चाहता हूं।" । (१६) सेठ रतनचंदजी गोलेछा -- मुः जबलपुर __"मैं हृदय से सम्मेलन की सफलता चाहता हूं। गुरुदेव निर्विघ्नतापूर्वक समाप्त करें। सम्मेलन के प्रत्येक महानुभाव से मेरा निवेदन है कि सम्मेलन को सफल बनाकर समाज में संगठन, ऐक्यता, शिक्षा, धार्मिक उन्नति और कुरोतियों के निवारण का प्रस्ताव पास कर इन को कार्य रूप में परिणत होने की योजना करें।" (१७) श्रीयुत सज्जनसिंहजी सिंघवी-मुः गोवरधन "बीमार होने के कारण सम्मिलित नहीं हो सकता जिस के लिये खेद है। सम्मेलन की हृदय से सफलता चाहता हूं।" (१८) सेठ रिधराजजी धाड़ीवाल-मुः लश्कर (ग्वालियर ) ___ "बहुत दिनों से अस्वस्थ्य रहने के कारण आने से मजबूरी है। सम्मेलन के साथ मुझे पूर्ण सहानुभूति है और उसकी बढ़ोतरी के लिये मैं हर तरह से कोशिश करने के लिये तैयार हूं। मैं सुधारों के विषय में अपने विचार भो भेज रहा हूं।" (१६) सेठ चुन्नीलालजी मनोहरलालजी गोठो-मुः नासिक सिटी ___“खेद है आ नहीं सकते। सम्मेलन की सफलता चाहते हैं। जाति सुव्यवस्थित हो, ऐसे सुधारों की आयोजना की जावे। सब सम्प्रदायों की ऐक्यता बहुत जरूरी समझी जावे।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १५ ] (२०) सेठ पुखराजजी कोचर-मुः हिंगनघाट "सम्मिलित नहीं हो सकता। आशा है आपलोग समाज सुधार के कार्य में सफल होंगे।" (२१) सेठ छोटमलजी सुराना-मुः हिंगनघाट ____ "कर्मवश उपस्थित नहीं हो सकता। आप के समाज सुधार के लिये प्रयत्न पूर्ण सफल हो।" (२२) सेठ केसरोमलजी ललवाणो, मंत्री, 'श्वेताम्बर कान्फरेन्स'-मुः पूना। ___ “खेद है उपस्थित नहीं हो सकता। हर प्रकार से सम्मेलन की सफलता चाहता हूं।" ( २३ ) सेठ कोरसी विजपाल-मुः रंगून (बर्मा) "महासम्मेलन को पूर्ण सफलता चाहता हूं।" (२४) श्रीयुत मंत्रो, 'श्रीओसवाल मंडल'-मुः मंदसोर “सम्मेलन की हर प्रकार से सफलता चाहता हूं।" (२५) श्रीयुत मंत्रो, 'ओसवाल युवक मंडल'–मुः नैरोबी ( अफ्रिका ) ____ "सम्मेलन की हृदय से पूर्ण सफलता चाहते हैं और आशा है यह सम्मेलन ओसवालों को उन्नति का साधन होगा। बालविवाह, वृद्धविवाह, मृतक भोज और कन्याविक्रय के विरुद्ध प्रस्ताव पास होने चाहिये। विधवा विवाह भी समर्थन करना चित होगा।” . इसके पश्चात् सम्मेलन का कार्य आरम्भ हआ। पहला प्रस्ताव यह महासम्मेलन अहिंसा व्रत के व्रती वर्तमान युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष महात्मा गांधी को हार्दिक बधाई देता है और हर्ष प्रकट करता है कि जिस महान् उद्देश्य को लेकर उन्होंने कठिन अनशन व्रत को धारण किया था वह सफल हो गया और उनका जीवन संकट टल गया है। यह प्रस्ताव सभापति की ओर से रखा गया और इस पर जैन समाज के प्रतिष्ठित विद्वान् पंडित सुखलालजी ने अपने गम्भीर भाषण से अच्छा विवेचन किया जिसका सारांश यह था कि अछूत कहलानेवाले लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने से हिन्दू धर्म दूसरों की दृष्टि में कितना गिर गया है और हिन्दुओं की आपस की शक्ति कितनी निर्बल हो गयी है। किसी भी धर्म में अपने भाई को अछत समझने की आज्ञा नहीं है और इस अस्पृश्यता रूपी भयंकर लांछन को दूर करने के लिये अनशन व्रत को धारण कर महात्माजी ने हिन्दू संसार का बड़ा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १६ ] भारी उपकार किया है। उन्होंने उपयुक्त शब्दों में उपस्थित जनता को आदेश दिया कि भविष्य में अछूत कहलानेवाले भाइयों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें जिससे महात्माजी का उद्देश्य सफलीभूत हो और देश का कल्याण हो। उन्होंने समझाया कि जैन धर्म के अन्दर तो अछूतपन है ही नहीं ओर ओसवाल जाति जिनमें अधिकतर जैनी हैं उनका परम कर्तव्य है कि वे अछूतोद्धार के देशव्यापी आन्दोलन में अपना क्रियात्मक सहयोग प्रदान करें जिससे महात्माजी को अपना व्रत पुनः न आरम्भ करना पड़े। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। दूसरा प्रस्ताव यह महासम्मेलन मृत्यु सम्बन्धी किसी भी प्रकार के जीमनवार को नितान्त अनावश्यक, हानिकर, समाज पर भारस्वरूप तथा जैन सिद्धान्तों के प्रतिकूल समझता है और समाज से अनुरोध करता है कि इस प्रकार के जीमनवारों को शीघ्र उठा दें और मौकान आदि अवसरों पर मिलणी, जुहारी, पगे लगाई इत्यादि लेन देन के दस्तूर तुरत बन्द कर दें। यह प्रस्ताव बाबू पूनमचंदजी नाहटा भुसावलवालों ने रखा और बतलाया कि ओसवाल समाज में प्रचलित मृत्यु सम्बन्धी जीमनवार समाज पर कलरूप है। यह केवल धर्म विरुद्ध ही नहीं है परन्तु आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी इतना निकम्मा और हानिकारक है कि उनकी बुराइयां बताने के लिये कोई भी उपयुक्त शब्द नहीं है। ऐसे घातक रिवाजों के कारण गरीब बालक बालिकायें जीविका तथा शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और बेचारी विधवायें खर्च के लिये दूसरों का मुंह देखती हुई घोर दुःख का अनुभव करती है। आश्चर्य तो यह है कि आदमी घर से जाता है, आमदनी का सिलसिला दृढ़ता है और तरत ही दावत की तैयारी होती है। गांवों में तो यहां तक ज्यादती:होती है कि जायदाद, जेवर बेच कर भी क्रिया की रस्म अदा की जाती है। समाज को ऐसे २ अमानुषिक रिवाज़ों को तुरत बन्द करना चाहिये और यह भी ध्यान रखना चाहिये कि ऐसे अवसर पर मौकान आये हुए रिस्तेदारों को मिलणी, जुहारी, पगे लगाई इत्यादि लेन देन के दस्तूर भी बन्द करें क्योंकि यह अवसर ढाढ़स बंधाने के लिये होता है, आमदनी करने के लिये नहीं। प्रस्ताव को अनुमोदन करते हुए वकील बाबू कुन्ननमलजो फिरोदिया, अहमदनगरवालों ने कहा कि समाज का जितना पैसा नुकते आदि निउपजाऊ कामों में खर्च हो जाता है वह यदि बालबच्चों की परवरिश और शिक्षा में ख़चे हो तो समाज का कल्याण हो सकता है। क्या ऐसे नाजुक समय में जब कि संसार भर में आर्थिक संकट छाया हुआ है, हमारा गिरा हुआ समाज अपने आप को न संभालेगा और मरने के उपलक्ष में दावतें खाना बन्द न करेगा? नुकता के लिये न धर्म में हो आदेश है, न साधारण विदेक ही तकाज़ा करता है। जब किसी के घर का आदमो मरे तो समाज का तथा उसके सम्बन्धियों का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १७ ] यह कर्तव्य है कि किसी तरह भी उसकी पूर्ति करे और सब मिल कर उसके खानदान की धन जन से सहायता कर उसका वियोग भुला दे। इसके विपरीत हमारे समाज के बड़े बुढ़े उसका घर खाली कराकर सदा के लिये ही उसकी पत्नी, बालबच्चों को मोहताज़ और दुःखी करने का महा पाप अपने सिर लेते हैं। किसी धनी व्यक्ति को पैसा खर्च करने में आपत्ति न हो तो इसके यह माने नहीं कि गरीब आदमियों को भी पिस जाना पड़े। मृत्यु सम्बन्धी जोमनवार जैसे कु-रिवाज़ तथा मौकान के अवसर पर आये हुए सम्बन्धियों को मिलणी, जुहारी, पगे लगाई इत्यादि लेन देन के दस्तूर सर्वरूप से बन्द करने के लिये समाज को कटिबद्ध हो जाना चाहिये अन्यथा समाज के लोगों की स्थिति बड़ी भयंकर हो जायगी। प्रस्ताव को.बाबू राजमलजी ललवाणी ने समर्थन किया और मृत्यु सम्बन्धी जीमनवारों की बुराइयां बतलाते हुए कहा कि मृत्यु भोज के कारण हमारे समाज की स्थिति डावांडोल हो गयी है। देश के कई भागों में इस प्रथा ने इतना जोर जमाया है कि लोग इसके लिये अपनो पैतृक सम्पत्ति से हाथ धो बैठने को तैयार हो जाते हैं। हमारे देश में अधिकांश लोगों की आर्थिक परिस्थति कैसी खराब है, यह बतलाने की आवश्यकता नहीं। इससे आप सहज ही में समझ सकते हैं कि इसके फलस्वरूप हमारे कई भाई भारो कर्ज के बोझ से लद कर शोघ्र ही मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं, कई बाजार में अपनीशा ख खो बैठते हैं और कई अपने को बड़ी दुखमय स्थिति में पाते हैं। इस कुप्रथा को उठाने के लिये उन्होंने जोर दिया। बाबू नथमलजी चोरड़िया ने समर्थन करते हुए कहा कि कैसे २ धनिक एक २ नुकते में पचास २ हजार रुपया खर्च कर देते हैं और अपने गरीब स्वजातीय भाइयों के सामने बुरा उदाहरण रखते हैं। ऐसी अमानुषिक प्रथा को एकदम जड़ से उखाड़ कर अलग कर देना चाहिये। बाबू सुगनचन्दजी नाहर ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि उपस्थित सजनों में से कई लोगों के दिल में ये भावनायें उठती होंगी कि जब ये रिवाज़ कई वर्षों से चले आते हैं तो क्या हमारे पूर्वज ऐसे निर्बुद्धि थे कि उनको इन प्रथाओं के अवगुण दिखाई नहीं देते थे? और उन्होंने इनको क्यों सामाजिक रूप दिया। उन्हों ने बतलाया कि हमारे पूर्वजों का समय इस समय से बिलकुल भिन्न था और उस समय की जरूरतों को भई दृष्टि रखते हुए उन्होंने इन रिवाज़ों को कायम किया। पुराने जमाने में न रेल थी न तार और न आजकल ऐसी दूसरी सुविधायें। लोगों को एक जगहसे दूसरी जगह जाने में तथा दूसरे नगरों के लोगों के कुशल समाचार मंगाने में बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती थी, खजातीयपन का भाव भी उन दिनों जोर पर था जिससे विवाह तथा बुड्डों के मरने पर मौसर ऐसे अवसर आसपास की विरादरी को इकट्ठा करने और परिचय करने के हेतु चल पड़े। ऐसे अवसरों पर मिलने से उनके लड़के लड़कियों के सम्बन्ध जोड़ लिये जाते थे और आपत्ति के समय एक दूसरे की सहायता सम्मिलित रूप में करने का प्रबन्ध कर सकते थे। उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४] जमाने में खाद्य पदार्थ इतने सस्ते थे कि लोगों का जीमन कराना भारस्वरूप नहीं होता या। अब समय बिल्कुल बदल गया है। पहले से बिपरीत कारण उपस्थित हैं बल्कि सर्व कारण ऐसे उत्पन्न हो गये हैं जो बतलाते हैं कि इन रिवाजों का न रहना ही समाज के लिये हितकर हैं और इन्ही रिवाजों के विद्यमान रहने के कारण समाज दिनोंदिन अवनति की ओर जा रहा है। हमें भी अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने प्रचलित रिवाजों की बदलनी चाहिये। समय की गति से बिपरीत चलने वाला मनुष्य या समाज नहीं ठहर सकता और हमारा भी इसी में कल्याण है कि समय को पहचान कर हम तुरत उसके अनुसार काम करने लगे। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। . तीसरा प्रस्ताव देश तथा समाज की वर्तमान आर्थिक स्थिति को दृष्टि में रखते हुएं यह सम्मेलन अनुरोध करता है कि सम्बन्धं और विवाह आदि प्रसंगों परं जी खर्च किया जाता है उस में कमी की जाय और इस उद्देश्य से निम्नलिखित बांतों पर विशेष ध्यान दिया जाय : (क) गाजे बाजे आदि आडम्बर में कमी की जाय । (ख) वेश्यानत्यं, थियेटर आदि, आतिशबाजी, फुलवाडी, दांत का चूड़ा आदि एकदम बन्द किया जाय । (ग) बरातियों की संख्या घटाई जाय । (घ) जीमनवारों में खर्च कम किया जाय । (च) नावां, त्याग आदि में अधिक खर्च न करना, इस उद्देश्य से प्रत्येक स्थान के समीज को यह उचित है कि उपरोक्त तथा इसी प्रकार के अन्य निरर्थक खर्ची पर नियंत्रण करे। (छ) मिलणी, जुहारी, पहरावणी, पैर धुलाई इत्यादि अवसरों पर जो रुपया कपड़ा आदि दिया जाता है, उसे कम किया जाय । (ज) सगाई के बाद कन्या के लिये जो जेवर पड़ले के पहले भेजा जाता है वह न भेजा जावे। यह प्रस्ताव वयोवृद्ध समाज सेवी बाबू गुलाबचन्दजी ढड्डा एम० ए० ने रखते हुऐ कहा कि कई अच्छी २ गृहस्तियां अपने लड़के लड़कियों की शादियों में अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करने के कारण किंगड़ गई है। आजकल जब कि लोगों के रोजगार कम हो में हैं तो यह बहुत जरूरी है कि उनके खर्चे में भी कमी हो जावे। उन्होंने बतलाया कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १६ ] विवाह के कई खर्चे, जो कि प्रस्ताव में बताये गये हैं, अनावश्यक, निरर्थक और भद्दे हैं, उनको बन्द करने में केवल रुपया ही नहीं बचता है वरन् विवाह की शोभा बढ़ती है। इन अनावश्यक खर्चों के कारण ही आजकल लोगों को विवाह में कर्जदार होना पड़ता है और विवाह का जो वास्तविक आनन्द है उससे बञ्चित रहना पड़ता है। बड़ी २ बरातें तथा उनकी मिजवानी में बहुत धन व्यर्थ खर्च किया जाता है जिसका नतीजा यह होता है कि हमारे समाज में कन्याओं का जन्म होबा भार रूप समझा जाता है। स्थानीय लोग मिलकर नियम बना लें और ऐसे फजूल खर्चों को हमेशा के लिये मिटा दें तो समाज का बहुत कल्याण हो सकता है। उन्होंने बतलाया कि ऐसे शिक्षित समप में यदि कोई सजन विवाह में वेश्या नृत्य कराकर अपने परिवार और बालबचों पर बुरे प्रभाव डालें और धन का दुरुपयोग करें तो इस से बढकर क्या मूर्खता हो सकती हैं। इस प्रस्ताव में बताये हुए बहुत से फजूल खर्चों के कारण ही अपने बच्चों की शिक्षा के लिये यथोचित व्यय नहीं कर सकते और उसके फलस्वरूप हमें अपने जीवनक्रम को नीचे गिराना पड़ता है। अब समय आगया है कि हमलोग चेते और ऐसे फजूल खर्च को तुरत बन्द करें। बाबू नथमलजी चोरड़िया ने इस प्रस्ताव को अनुमोदन करते हुए कहा कि धनी लोगों का ही इस में खास दोष है क्योंकि उनके पास खर्च करने के लिये पैसा है इसलिये थे समाज के दूसरे लोगों की परवाह नहीं करते। वे लोग मद्रास सक स्पेशल ले जाने और हजारों आदमियों को दावतें देने में ही अपनी कीर्ति समझते हैं। क्या ही अच्छा हो यदि ये धनी लोग अपने धन का सदुपयोग करना सीखें और पैसे को इस तरह बरबाद न कर उसे ऐसे कार्यों में लगावे जिससे समाजका कल्याण हो। बाबू समरथमलजी सिंघो वकील सिरोही ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि दूसरे २ देशों के धनी लोग अपने धनको ऐसे २ कामों में लगाते हैं जिससे सर्वसाधारण का हित होता है। वे लोग कालेज, स्कूल, छात्रवृत्ति आदि फण्ड कायम करते हैं और सिवाय अपने दोस्तों के दावत देने के किसी तरह के कार्य अथवा शादी के मौके पर अपने धन का आडम्बर नहीं करते। भारत के और २ समाजों में और विशेष कर ओसवालों में ऐसे धनी न भी होते हुए विवाहों में हजारों लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। वह खर्च इस रूप में किया जाता है जिसका कोई भावजा नहीं होता और इन फजूलखर्ची के रिवाजों से गरीब लोग मर मिटते हैं। हैसियत से ज्यादा कर्ज लेकर खर्च कर डालते हैं और फिर जन्म भर तक चुकाते हैं। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं कि इस प्रकार किये गये कर्य के कारण नौजवानों की असामयिक मृत्यु हुई है फिर भी खेद है कि समाज नहीं चेतता। उन्होंने बतलाया कि समय को देखते हुए कई भाइयों ने इन खौँ पर नियन्त्रण करने के लिये नियम बना लिया है। अब उपिस्थत सज्जनों का यह कर्तव्य है कि इस प्रस्ताव को पास कर इस के पालन करने में कटिबद्ध हो जाय। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २० ] .चौथा प्रस्ताव यह सम्मेलन कन्या विक्रय और साथ ही साथ समाज में बढ़ते हुए घर विक्रय को घृणाकी दृष्टि से देखता है। - इस सम्मेलन के विचार में डोरे, टीके इत्यादि का रिवाज़ तथा नेग नुकतों का ठहरना बहुत घृणास्पद है। यह सम्मेलन नवयुवकों और कन्याओं से विशेष अनुरोध करता है कि वे अपने आप को किसी भी हालत में इस लेन देन के बदले न बिकने दें और जहां ऐसा लेन देन हो उस विवाह के वरपक्ष वा कन्यापक्ष के किसी भी काम काज में सम्मिलित न हों। - यह प्रस्ताव आगरा-निवासी बाबू चन्दमलजी वकील ने रखते हुए कहा कि कन्या विक्रय और समाज में बढ़ता हुआ वर विक्रय ओसवालों को अधोगति का कारण है। अपने बच्चे बञ्चीयों को बेचने से ज्यादा घृणास्पद कार्य और कौन सा हो सकता है। उन्होंने बतलाया कि समाज के बहुत से लोग कन्या-विक्रय को बुरी दृष्टि से देखते हैं और यथाशक्ति उसका विरोध करते हैं परन्तु वे हो लड़कों को सगाई में टीका ठहराने और लेने में कुछ संकोच नहीं करते वरन् उस को आदर सूचक समझते हैं इसका नतीजा यह होता है कि लड़कों के मातापिता लड़की के गुण, अवगुण, कला कौशल पर ध्यान नहीं देते और केवल पैसे के लालच में पडकर शादी कर लेते हैं जिस से अनमेल और गुण कर्म विरुद्ध विवाह होते हैं और दाम्पत्य-जोवन क्लेशमय हो जाता है। माता पिताओं को कन्या यें इतनी भार रूप हो जातो है कि उनका जन्म आपत्ति रूप समझते हैं। नवयुवकों और कन्याओं को आदेश करते हुए उन्होंने कहा कि वे लोग अपने आप को इस तरह न बिकने दें और जहां ऐसा अमानुषिक लेन देन हो उस विवाह के वरपक्ष वा कन्यापक्ष के किसी भी काम काज में सम्मिलित न होवें। बाबू किशनलालजी पटवा कुकड़ेश्वर वालोंने कहा कि कन्या विक्रय ही ने वृद्धविवाह को बढ़ा रखा है। कुछ काम-विलासी धनवान बुड्ढे मूर्ख माता पिताओं को प्रलोभन देकर उनकी युवती कन्या को जो किसी नवयुवक के साथ व्याही जानी चाहिये थी, हर लेते हैं। ये लोग सचमुच समाज के कौवे हैं जिन्हें दूसरों की चीज लेने में संकोच तक भी नहीं होता। मूर्ख मा बाप बेचारी कन्या को एक व्यापार की वस्तु समझते हैं और बुड्ढे की उम्र का ख्याल न कर उस पर ऊंची से ऊंची बोलो लगाते हैं नतीजा यह होता है कि योग्य किन्तु धनहीन स्वजातीय भाई विना स्त्री के रहते हैं और ऐसी भाग्यहीन कन्याओं को भो वैधव्य भोगने की बारी आती है। अपने समाज की संख्या धटने का भी यह कारण है क्योंकि प्रथम तो ऐसे बुड्ढों के सन्तान ही नहीं होती और अगर हुई भी तो अल्प-आयुवाली होती है। समज का इस में बहुत दोष है क्योंकि ऐसे बुड्डों के हाथ युवती कन्या के बिकने के विरुद्ध वह आवाज़ नहीं उठाता है। मूर्ख माता पिता बेचारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २१ ] समाज के पञ्चों को तथा दूसरे लोगों को लड्डू खिलाने के लिये धनके अभाव से निर्दोष बालाओं को बेच कर कलङ्कका टीका लगाते हैं। बर विक्रय के भी बहुत से दोष उन्होंने समझाया और प्रस्ताव का अनुमोदन किया। बाबू नाथमलजी चोरड़िया ने कहा कि धनवान लोग बुड्डे निकम्मे होते हुए भी अपनी वासना-तृप्ति के लिये युवतो कन्या से विवाह कर लेते हैं इसके कारण निर्धन भाइयों के सुयोग्य लड़कों को विना शादो किये रह जाना पड़ता है जिससे बुड्डों के साथ व्याही हुई ऐसी युवतीयां तथा ऐसे अविवाहित युवक दुराचार में फंस जाते हैं और इससे समाज का पतन होता है। समाज को चाहिये कि जानवरों को तरह अब लड़कियों को न बिकने दे। उन्होंने बर विक्रय को भी पूरो निन्दा की और इस प्रस्तावका समर्थन किया। बाबू इन्दरचन्दजी बाफणा सीतामऊवालों ने भी इन्हीं शब्दों में प्रस्ताव का समर्थन किया। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। पांचवां प्रस्ताव यह सम्मेलन अनुरोध करता है कि स्त्रियों की शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक उन्नति में पर्दा एक बड़ी रुकावट है, अतः इस हानिकारक प्रथा को समाज से यथाशक्य हटा दिया जाय। जिन सजनों ने इस प्रथा को दूर कर दिया है, यह सम्मेलन उनका अभिनन्दन करता है। यह प्रस्ताव रखते हुए श्रीमती सिद्धकंवर बाई ने कहा कि लाज शर्म स्त्रियों का भूषण है परन्तु परदे का रिवाज जो ओसवाल समाज में प्रचलित हैं, बहुत निन्दनीय है। दया, शील, उदारता, सन्तोष आदि गुणों की तरह लज्जा भी एक चित्त की वृत्ति है जो बाहर भीतर सब स्थानों में रात दिन हो सकती है। केवल सात योदी के भीतर बन्द रह कर या बड़ा सा घघट काढ कर कोई लजावती नहीं हो सकती। सञ्ची लजा के लिये वित्त को शुद्धि की आवश्यकता है। आज कल के परदे के ढकोसले ने समाज की स्त्रियों को बहुत गिरा दिया है। जो स्त्रियां जेठ, ससुर और पतिसे परदा. करती है वे नाई, माली, कुभार, परोहित, पुजारो तथा संडमुसंड फकीरों से परदा नहीं करने में संकोच नहीं समझ ती। स्त्रियों को ऐसा परदा उठादेना चाहिये जिससे उनको स्वास्थ्य-रक्षा में कठिनाई हो तथा उनके घरके लोगों की सेवा में फर्क आता हो। परदा ऐसा होना चाहिये जिससे कि वे दुष्टों से बची रहें। आज कल के बेढंगे परदे के कारण स्त्रियां बाहर नहीं निकलतीं और इस कारण वे विद्यादि उत्तम गुणोंसे वंचित रह जाती है। बाल बच्चों के पालन पोषण तथा उनकी प्रारम्भिक शिक्षा का भार मुख्यतया स्त्रियों पर ही होता है, इसलिये उनमें अविद्या के कारण सन्तानके शिक्षण में बड़ा अन्तर हो जाता है जिससे वे अपने धरके सहायक न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २२ ] होकर बाधक होते हैं। पुरुषों से अपील करते हुए कि स्त्रियों को उचित खतंत्रता देवें, उन्होंने स्त्रियोंकी तरफ संकेत करते हुए कहा कि प्यारी बहनों! आप भी तो परमात्मा की घनाई हुई हैं, आपमें भी भलाई बुराई सोचने समझने की बुद्धि है। यदि पुरुष ध्यान नहीं दें तो आप सबही मिलकर स्वयं परदा तोड़ने के शुभ कार्य को हाथ में ले, ऐसे कार्य में ईश्वर सहायता करेगा और मैं सेवा करने के लिये तैयार हूं। बाबू इन्द्रचंदजी सुचंती ऐडवोकेट-पटना ने इस प्रस्तावका अनुमोदन करते हुए कहा कि परदा आधुनिक भारतकी सबसे बुरो प्रथा है। जितनी जल्दी हो सके हमें इसे उठा देने की कोशिश करनी चाहिये। भारतका उज्ज्वल स्त्रित्व जो सभी कालमें गौरवान्वित था इसी के कारण अपनी आभा खो रहा है। जिधर आंख उठावें उधर आपको दीख पड़ेगा कि जो बालिका बाल्यकाल में बड़ी प्रतिभाशालिनी, स्वतंत्ररूप से विचरण करने वाली एवं उज्ज्वल दीख पड़ती थी वही अपनी सारी प्रसन्नता, आभा तथा उत्साह खो कर एक शर्मीलो भार्या बन बैठती है। उसे बाह्य जगत् का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता और उसके जीवनका आदर्श और उद्देश्य बिलकुल संकीर्ण हो जाता है। इस दुखदाई प्रथा के विरुद्ध महात्मा गांधी ने भी कई बार अपने विचार प्रकाशित किये हैं। उनका स्पष्ट कथन हैं कि परदे की प्रथा अत्यन्त अमानुषिक. हानिकर और समय की गति के विरुद्ध है। इस सम्बन्ध में बनारस के प्रसिद्ध विद्वान् बाबू भगवानदासजी के कथन को भी नहीं भूलना चाहिये। आप लिखते है कि जैसे २ तुम परदा कम करो, तुम्हें अपना कपड़ा मोटा करना चाहिये। परदे के कारण हमारे पहिनावे में जो फर्क हो गया है जिस के कारण स्त्रियां बारिक और भवकेदार ड्रेस पहनती है उस में भी बहुत शोघ्र परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इस विषय में हमें महात्माजो के आदेशों के अनुसार कार्य करके भारत की रमणियों को फिर से सती सीता एवं दमयन्ती के समान आदर्श बना देना चाहिये। बाबू कुन्ननमलजी फिरोदिया वकील अहमदनगर ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए परदे से पैदा हुई हानियां जैसे स्त्रियों में कम शिक्षा होना, स्वास्थ्य को खो देना, कायरता और हतोत्साहित होना इत्यादि बतलाई और उपस्थित जनता को खूब समझाकर कहा कि यदि तुम अपने बहनों को सिंहनो बनाना चाहते हो तो परदा तोड़ दो। परदा प्रकृति के विरुद्ध है और स्त्रियां स्वयं भी परदा नहीं चाहती है। उन्होंने स्त्रियों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि यहां पर परदे का प्रबन्ध रहते हुए भी कई स्त्रियां परदे के बाहर आकर बैठी हैं और जो परदे में बैठी हुई हैं उनने भी परदे की चान्दनी नीचे गिरादो है। यदि कोई परदा पसन्द करतो तो एक और वान्दनी अपनी अपनी ओर से लगा लेती। एक परदे का प्रस्ताव अनुभबी महिलाने रखा है इससे भी स्वयं सिद्ध है कि स्त्रियों के विचार परदे के विषय में कैसे हैं। परदा न रखने वाली गुजरात की स्त्रियां बड़ी विवक्षण बुद्धि की होती है और हर प्रकार से पति की मदद करने में समर्थ होती हैंदूसरी स्त्रियों की तरह लाचार नहीं होतीं। समाज के प्रतिनिधि सजनों से मैं प्रार्थना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २३ ] करता हूं कि वे इस कुप्रथा को हटा कर स्त्रियों का शारिरिक, आत्मिक और मानसिक विकाश होने दें। बाबू जवाहरलालजी लोढ़ा सम्पादक 'श्वेताम्बर जैन' आगरा ने इन शब्दों में इसका समर्थन करते हुए कहा कि हमारे भोले भाइयोंको समझ पर आपलोगों को बिचार करना चाहिये कि वे कहीं २ तो औरतों को इतना ढांक कर निकालते हैं मानो कोई बड़ा पार्सेल एक स्थान से दूसरे स्थान को जा रहा हो और वे ही स्त्रियां माई, धोबी, कहार, मनिहारों के आगे मुह उघाड़े महीन वस्त्र पहने हुए निःसंकोच डोलती फीरती हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि जिनके पैरों की अङ्गलियां कोई घरवाला वा रिस्ते दार नहीं देख सकता है, वही स्त्रियां मुसलमान चूड़ीवालों से निःसंकोच चूड़ियां पहनती है। जो हाथ पति के हाथ में दिया था वह मनिहार के हाथ में देकर चूड़ियां पहन लेती है। कहीं २ तो दिन में घरसे बाहर नहीं होती और रात में निकलती हैं। कहीं लम्बी घूघट निकालती हैं परन्तु पेट ढकने का तनीक भी ध्यान नहीं रखती। परदे के कारण सैकड़ों स्त्रिया तपेदिक को शिकार बन गई हैं, कई गुण्डों के हाथों सताई जाने पर भी कुछ न कर सकीं इत्यादि परदे की खुराइयां बतलाते हुए कहा कि अपनी प्राचीन प्रथा के अनुसार वर्ताव करना चाहिये पहिले मातायें यह बेढंगे परदे नहीं करती थीं; उनकी आंखों में शर्म थी, वह ढोंग करना पसन्द नहीं करती थीं। कहीं अपने किसी देवी देवतों की मूर्तियों के चित्र पर परदा देखा है ? परदा तो मुसलमान शासकों के समय से चला है। अब समय बदल गया है, परदे की आवश्यकता नहीं है इसलिये आप लोगों से प्रार्थना है कि अपने देवियों को परदे रूपी कुप्रथा से हटाकर खतन्त्र बनाइये। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। इसके पश्चात् दूसरे दिन की बैठक का कार्य समाप्त हुआ और सभा विसर्जित हुई। संध्या को यथासमय विषय निर्धारिणी समिति की बैठक हुई और अधिक रात्रि तक काम चलता रहा। उसी प्रकार प्रातःकाल में भी समिति की चौथी बैठक बैठी। प्रस्तावों के कार्य समाप्त होने पर सभापतिजी ने सम्मेलन का कार्य भविष्य में सुन्दर रूप से चलाने के लिये फंड की आवश्यकता बताई और सम्मेलन की बैठक में फंड के लिये अपील करने का प्रस्ताव उपस्थित किया ग तीसरे दीन की बैठक बग प्रस्ताव इस सम्मेलन के विवार में १८ वर्ष से कम उम्र के लड़के तथा २४ वर्ष से कम उम्र की कन्या का विवाह तथा ४० वर्ष से ऊपर की वृद्धविवाह और एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह समान के लिये बहत ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४ ] हानिकारक है, इसलिये अनुरोध करता है कि ऐसे विवाह बन्द किये जाय और जहां ऐसा विवाह हो, उस विवाह के बर पक्ष तथा कन्या पक्ष दोनों के उस विवाह सम्बन्धी किसी भी काम काज में सम्मिलित न हों। आगरा-निवासी बाबू रामचन्द्रजी लुंकड़ ने यह प्रस्ताव रखा और भाषण देते हुए कहा कि बृटिश राज्य में शारदा एकृ जारी होने से प्रस्ताव का पहिला भाग तो सब सजनों को मालूम ही है। देशी राज्यों में जहां यह कानून नहीं है वहां भी ओसवाल भाइयों को इसके अनुसार ही अपने लड़के लड़कियों कि शादी करनी चाहिये। वालविवाह के भयङ्कर परिणाम को कौन नहीं जानता। वाल्य अवस्था ब्रह्मचर्य पालन करने का है। इस काल में बालक बालिकाओं को ब्रह्मचर्य व्रत धारण करते हुए विद्योपार्जन करना चाहिये जिससे कि वे अपने भविष्य को उज्ज्वल और कार्य कुशल बना सकें। शारदा एक की मर्यादा तो कम से कम है। दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में ब्रह्मचर्य का महत्व आजकल लोग भूल गये हैं और इस कारण ही परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। इस प्रस्ताव द्वारा हम ओसवाल समाज को चैतन्य करते हैं कि वह ब्रह्मचर्य को महत्ता को समझें और कोई भी स्त्री पुरुष बालविवाह करा कर अपनी सन्तान के घातक न बने। _ आज कल अपने समाजमें विधवाओं को बढ़ती हुई संख्या को जो हम लोग देखते हैं उसका मूल कारण बालविवाह तथा उतना ही भयंकर वृद्ध विवाह है। ४० वर्ष की उम्र में जब पुद्गल शिथिल हो जाते हैं तो किसी को यह हक नहीं है कि अपने स्वार्थ साधन के लिये वह किसी कन्या का जीवन नष्ट करे। दिन प्रति दिन हम अनुभव से देखते हैं कि बाल विवाह और वृद्ध विवाह ही हमारी गरीब घालाओं के वैधव्य का कारण है। मैं समाज से पूर्ण रूपसे अनुरोध करता हूं कि वह इस प्रस्ताव को स्वीकृत कर कार्यरूप में परिणत करे इस से अवश्यमेव हमारी सन्तान वीर, बुद्धिमान, सुदृढ़, साहसी होगी और जीवन संग्राम में कार्य कुशलता का परिचय देगी। एक स्त्री के होते हुए दूसरी शादी करना धर्म विरुद्ध तथा क्लेशमय है अतः यह प्रथा बन्द होनी चाहिये।। दुर्ग ( सी० पी० ) निवासी बाबू हंसराजजी देशलहरा ने प्रस्ताव पर प्रकाश डालते हुए इसका अनुमोदन किया। पश्चात् कुकडेश्वर-निवासी बाबू किशनलालजी पटवा ने इस प्रस्ताव को समर्थन करते हुए कहा कि पुराने समय में माता पिता अपनी सन्तान को तरुण अवस्था तक ब्रह्मवयं पालन करा कर विद्या अध्ययन कराते थे परन्तु आज कल यह अभिलाषा रहती है कि लडके की शादी होकर कब घरमें जल्दी बह आवे। शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक शक्ति क्षीण होने के अतिरिक्त लडके अपने वैवाहिक जिम्मेवारियों को भी नहीं समझ सकते और रोटी कमाने के काबिल न रहने के कारण उनका दाम्पत्य जीवन हमेशा के लिये कष्टमय हो जाता है। एक पत्नी रहते हुए दूसरा विवाह करना सर्वथा अनुचित समाज ने बताया सचमुच ही ऐसा करना स्त्री वर्ग की ओर भारी अन्याय करना है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चात् वाकू गुलाबचन्दजी ढड्डा ने इस प्रस्ताबमें इस प्रकार सांसोधन पेश किया कि.४०.वर्ष की आयुकी जगह ४५ को आयुः हो और यदि स्त्री कन्याःया पागल हो तो उसमे रहते हुफ दूसरी स्त्रो के साथ भी शादी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अभी समाज में ४० वर्ष से ज्यादे उम्र को शादियां बहुत होती हैं इस लिये यदि ४० वर्षकी आयु रखी जायगो तो प्रस्तावके अमल में आने में कई बाधायें उपस्थित होंगी। प्रारम्भिक कार्य के लिये यदि ४५ की उम्र रखी जाय तो अच्छा है। एक स्त्री के रहते हुए दूसरो से सादो नहीं करने की रुकावट केवल इसलिये को गई है. जिसमें निरर्थक कोई दो शादियां न करे और पहिली स्त्री का जोवन क्लशमय न हों जाय। बन्ध्या अथवा पागल होने को हालत में दूसरी शादी यदि की जाय तो हर्ज नहीं क्योंकि विवाह का मुख्य उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति है। इस संशोधन को आगरा-निवासी बाबू वान्दमलजी कील ने समर्थन किया, परन्तु उपस्थित जनता ने इस संशोधन पर अप्रसन्नता प्रकट की। पश्चात् जयपुर-निवासी बाबू सिद्धराजजो ढड्डा ने जोरदार शब्दों में संशोधन का विरोध करते हुए कहा कि नवयुवक तो इस को भी नापसन्द करते हैं कि ४० वर्ष की आयवाले परुष १५ वर्ष की कन्यासे विवाह करे। यदि. ४० की आयवाले, कोई शादो करें तो उनके लिये विधवा से विवाह करना उचित हैं। विवाह के लिये ४५ वर्ष उम्र निर्णय करना वृद्धविवाह.की संख्या बढाना है। उन्होंने कहा कि यदि किसी स्त्री का पति सन्तानोत्पत्ति योग्य न हो अथवा पागल होत क्या उसे दसरे पति को आज्ञा दी जाती है? जब दी नहीं जाती तो पुरुषों को भी एक स्त्री को विद्यमानता.में किसी भी हालत में दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं है। यह संशोधन. स्त्रो-जाति के पक्ष में बिलकुल अन्याय-युक्त है, अत: इसे अखोकार करना चाहिये। इसके पश्चात् बाबू गुलाबचन्दजी ढड्ढा ने मुसकराते हुए संशोधन को वापस लिया। मूल प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। सातवां प्रस्ताव समाज के उत्थान के लिये शिक्षा प्रचार को अनिवार्य आवश्यकता को अनुभव करते हुए यह महा सम्मेलनः स्थिर करता है कि आवश्यकतानुसार जगह २ विद्यालय, पुस्तकालय, छात्रवृत्तियां, छात्र विकास तथा व्यायामशाला अति संस्थायें स्थापित की जांय तथा बालक और बालिकाओं के पढ़ने का यथोचित प्रबन्ध किया जाय। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६ ] भूसावल वाले बाबू पूनमचन्दजी नाहटा ने इस प्रस्ताव को रखते हुए अपने भाषण में कहा कि किसी भी देश और जाति की उन्नति उसके लड़के लड़कियों की शिक्षा पर निर्भर है। आज हमारे समाज का पूर्ण लक्ष्य ओसवाल जातिको उन्नत करने का है और यह तभी हो सकता है जब कि प्रत्येक ओसवाल बालक और बालिका पढ़ लिख कर तैयार हो। देखिये! जापान थोड़े ही वर्ष पहिले बहुत पिछड़ा हुआ था और अब वह शिक्षित होनेके कारण ही इतनी उन्नति की है। उन्होंने कहा कि शिक्षा से केवल लिखना पढ़ना ही मेरा अभिप्राय नहीं है-यह शब्द बहुत व्यापक है। शारीरिक बल बढ़ाना आदि भी शिक्षा ही है। दुर्भाग्यवश हमारी जाति में शारीरिक उन्नति के साधन तथा विद्याध्ययन के स्कूल, कालेज एवं कला कौशल की शिक्षा प्राप्त करने के लिये कारखाने बहुत ही कम हैं और यही कारण है कि हम अपने आपको आजकल ऐसी गिरी दशा में पाते हैं। अब समाज को जागृत होकर अपने बच्चों को शिक्षाको अपने हाथ में लेकर देशकालानुसार आगे बढ़ना चाहिये। प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए फलोदी-निवासी बाबू फूलचन्दजी झावके ने कहा कि विद्या, दान, हरिध्यान और कृपाण, इन चार गुणों से हर जाति का गौरव जाना जाता है। अपने ओसवाल समाज में सर्वगुणसम्पन्न पुरुष हो गये हैं। कृपाण का चमत्कार देखना हो तो गुजरात के दण्डनायक आभू और विमलशाह मन्त्री आदिका वर्णन पढ़िये। हरिध्यान में श्रीस्थूलिभद्रजी, गजसुकुमालजी, महाराजा कुमारपालजी अदिके जीवन को सामने रखिये। दान में वीरवर भामाशाह, वस्तुपाल और तेजपाल प्रसिद्ध हैं। विद्या में तो कहना ही क्या, एक से एक बढ़े चढ़े हो गये हैं। श्री समय सुन्दरजी कृत 'अष्टलक्षो' (एक पद के आठलाख अर्थ) और श्री हेमचन्द्राचार्य कृत 'द्विसंधान' पढ़िये, इस में एक रूप में तो प्राकृत सूत्र सिद्ध किये हैं उसी से श्लेषालंकार में अर्थात् दूसरे अर्थ में महाराजा कुमारपाल का जीवन चरित्र वर्णन कर दिया है। आपलोग प्राचीन इतिहास को पढिये और इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कीजिये। पश्चात् अजमेर वाले बाबू गजमलजी लोढ़ा ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए शिक्षा की परिभाषा की ओर बतलाया कि शिक्षा वही है जिससे मनुष्य की बुद्धि का विकाश हो और जिससे भला बुरा पहचानने का विवेक अधिक बढ़े। उन्होंने ओसवाल युनिवर्सिटी की योजना सामने रखी और कहा कि अगर प्रत्येक ओसवाल एक२ पैसा रोज दे तो साल भर में ६० लाख रुपये आ सकते हैं परन्तु शक्ति होते हुए भी इच्छा नहीं होती। और भी बताया कि सब उन्नतिशील देशों में शिक्षा पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है। उदाहरण स्वरूप भारत में ही मुसलमान लोग प्रायः गरीब रहते हुए भी अपनो कौम के बच्चों की तालीमी पर ज्यादा खर्च और परिश्रम करते हैं। अपना समाज इस ओर बहुत निरुत्साही दिखता हैं। ओसवालों की छोटी संस्थायें जैसे अजमेर का ओसवाल हाई स्कूल तथा दूसरे २ सामाजिक छात्रालय वा विद्यालय अच्छी दशा में नहीं है। भोसवालों के लिये क्या कठिन है कि इन संस्थाओं को चन्दे द्वारा आर्थिक सहायता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७ ] देकर आदर्श बनावे तथा युनिवर्सिटी कायम करे और बाल बच्चों की शिक्षा समाज में अनिवार्य कर दे क्योंकि शिक्षा ही सब उन्नति का मूल है, अतः समाज को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिये। __ धामन गांव वाले बाबू सुगनचन्दजी :लूणावत ने इसका समर्थन करते हुए , और आधुनिक शिक्षा की बुराइयां बताते हुए कहा कि प्रचलित शिक्षा प्रणाली को सुधारना चाहिये। खेद की बात है कि हमारे ओसवाल भाई स्वाभाविक तौर से कला कौशल को बुरा समझते हैं। जापान के बी० ए० पास किये हुए लोग हजामत बनाने के काम को बुरा नहीं समझते और अपने विद्या के विकाश से कुछ दिन तक नाई का काम कर फिर फोटोग्राफी का कार्य करने लगते हैं। पश्चात् खिलौने आदि बनाकर विदेशों से व्यापार सम्बन्धी लिखा पढ़ी करके आसानी से चार सौ, पांच सौ रुपया माहवार उपार्जन कर लेते हैं। हमारे ओसवाल बन्धु एक ही काम पर लगे रहते हैं और वह भी कला कौशल से पृथक काम पर। यह युग कला कौशल का है इस लिये इस पर विशेष ध्यान देना चाहिये। श्रीयुत स्वामी कृष्णचन्द्रजी अधिष्ठाता गुरुकुल पञ्चकूला, पंजाब वालों ने बालकों के सच्चरित्र बनाने पर ज्यादा जोर दिया और गुरुकुल के स्थापित करने का महत्व बतलाते हुए प्रस्ताव का समर्थन किया। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। आठवां प्रस्ताव इस महासम्मेलन के सम्मुख उपस्थित कर्तव्य और कार्यवाही का महत्व देखते हुए एक योग्य फण्ड की विशेष आवश्यकता है ताकी इसकी कार्यवाही स्थायी रूप से चलती रहे क्योंकि प्रान्तीय कार्य को स्मरण रखते हुए उसके लिये आवश्यकतानुसार आर्थिक सहायता प्रदान करना तथा कार्यकर्ताओं को सब प्रकार से मदद पहुंचाना जरूरी हैं। अतः यह सम्मेलन विशेष रूप से अनुरोध करता है कि सम्मेलन के प्रस्तावों को कार्य रूप में परिणत करने के लिये और कार्य की सफलता के लिये अपने समाज के भाईलोग इस फण्ड में यथाशक्ति सहायता प्रदान करें। . .. यह प्रस्ताव सभापतिजी की ओर से रखा गया और सम्मेलन के मन्त्री बाबू अक्षयसिंहजी डांगी ने इसे पढ़ कर सुनाया। पश्चात् बाबू गुलाबचन्दजी ढड्डा, बाबू दयालचन्दजी जौहरी तथा बाबू नथमलजी चोरड़िया ने जोरदार शब्दों में इसका अनुमोदन और समर्थन किया और अपने २ भाषणों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २८] धारा मर्मस्पर्शी अपील की। पंडाल में इसका अच्छा असर पड़ा और उपस्थित सानों सम्मेलनके कण्ड में सहायता देना प्रारम्माकिया तथा सब लोगों के पास खयंसेवक गण पहुंच कर अर्थ संग्रह करने लगे। वयोवृद्ध ढड्डाजी साहब तो इस अपील से इसने उत्साहित दिखाई पड़े कि आपने उसी समय अपने हाथ की अंगुठी निकाल कर फण्ड में भेंट 'कार दी। उनका यह दृष्टान्त अनुकरण करते हुए उपस्थित भाइयों में से कई उदार सजनों ने उसी तरह अपनी २ अंगूठियां सम्मेलन के फण्ड में अपेण की। ये गूठियां उसी समय भाषण-मञ्च पर निलाम की गई जो अच्छे दामों में बिकीं। समापतिजीकी ओर से अच्छी रकम दी जाने की घोषणा हुई। सहायता देने कामों से महदराबाद निवासी सैठ इन्दरमलजी, सिकन्दराबाद निवासी सेठ-जोरावस्मलजी मोतीलालजी, बैतूल (सी० पी०) निवासी सेष्ठ लक्ष्मीचन्दजी गोठी. आदिके नाम बालन्खमीय हैं। उपस्थित महिलाओं ने भी इस कार्य में पूर्ण सहायता देकर हाथ क्याया। जामनेर निवासी श्रीमती पाम कंवरजी ललवाणी, घामक निवासी श्रीमती भंवरकंवरजो लूणावत, नागपुर निवासी श्रीमतो मानकंवरजी चोरड़िया, सिकन्दराबाद निवासी श्रीमती मानकंवरजी और गुमानकुवाजी कोचर आदि ने अच्छी मदद दो। स्मो-प्रकार फण्ड के अपील में उपस्थित लोगों ने यथाशक्ति तन मन धन से सहायता दे कर इस कार्य में सहयोग दिया। मधमा प्रस्ताव यह सम्मेलन निम्नलिखित सजनों की एक प्रबन्ध कारिणी समिति नियत करता है जो इस सम्मेलन का कार्य आगामी अधिवेशन तक सुचारु रुप से चलावेगी और इस का बंधारण तैयार कर आगामी अधिवेशन में पेश करेगी। इस समिति को अधिकार होगा कि इन मेम्बरों के अतिरिक्त अन्य मेम्बर भी आवश्यकतानुसार जिस प्रान्त से चाहे शामिल कर सकेगी और आवश्यकतानुसार कार्यकारिणी समिति (वर्किङ्ग कमिटी) एवं एक चा सितोथिक उपसमितियां (सघ कमिटियां ) नियुक्त कर सकेगी। वर्किङ्ग कमिटी के मेम्बर सभापति महोदय के सुविधानुसार पदाधिकारियों के अतिरिक्त अन्य पांच सदस्य तक चुन सकेंगे वा सब कमिटियों में पदाधिकारियों के आंतरिक और दूसरे सदस्य तक चुने जा सकेंगे। सब कमिटियों को अधिकार रहेगा कि आवश्यकतानुसार अपने सदस्यों को संख्या में वृद्धि कर सकोगी। अभापति श्रीपूरणमंदजी माहर, कलकत्ता। उपन्समापति-सेठ पम्नमलजी ललवाणी, जामनेर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६ ] प्रधान मंत्री-राय साहेब कृष्णलालजी घाफणा, सलमेर । सहकारी मंत्री श्रीसुगमचंदजी माहर, अजमेरः।। मंत्री सभापति-श्रीविजय सिंहजी नाहर, कलकत्ता। कोषाध्यक्ष सेठ कानमलजी लोढा, अजमेर। श्री गुलाबचंदजी दड्डा, जयपुर। श्री फूलचंदजी झावक, फलोदो । " 'सिद्धराजजो ढड्डा , " दीपचन्दजी गोठी, बेतूल (सी० पी०) " कुन्दनमलजी फिरोदिया, अहमदनगर । " खेमचन्दजी सिंघी, धकील सिरोही। " बांधमलजी कोल, आगरा। " मानकचन्दजी बांठिया, अजमेर । " पुरणयंदजो सामसुखा, कलकत्ता। " अक्षयसिंहजी डांगी, वकील " " इंद्रचंदजी सुचंती ऐडवोकेट, विहार। " सरदारमलजी छाजेड़, शाहपुरा स्टेट'। " भैरूलालजी बंध, भूसावल । गोकलचंदजी नाहर, देहली। सुगनचंदजी लूनावत, धामनगांव । " गोपीचंदजी धाड़ीवाल, कलकत्ता। " नथमलजी चोरडिया, नीमच। जवाहरलालजी, सिकन्दराबाद, (यु०पी) " देवकरणजी मेहता, अजमेर । असराजजी अमूपमचंदजी, घाणेराव । " अचलमानी मन्दी, रतलाम। अलपत सिंहजी मेहता, उदयपुर । लाला टेकचंदजी, कंडियाला गुरु(पंजाब) आनंदरामजी सुरामा, देहली। श्री पूनमचंदजी रांका, मागपुर । प्रतापसिंहजी मधलखा, सीतामऊ। " राजमलजी डोसी, भोपाल। " निर्मलकुमारसिंहजी नवलखा, अजीमगंज। " कालीदासजीजसकरनजी जौहरी अहमदाबाद" कन्हैयालालजी भंडारी, इंदोर। छोगमलजी चोपड़ा, वकील, कलकत्ता। " केशरीमलजी गूगलिया, धामक। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीहत हुआ। दशवी प्रस्ताव देशकाल देखते हुए यह सम्मेलन हमारे समाज के वे अङ्ग जो हमारे समान आदर्श खानपान और आचार विचार रखते हुए भी कुछ समय से किसी कारणवश न्यारे २ भाग में दिखते हैं, उन्हें साथ मिला लेने तथा उनके साथ रोटी बेटी का व्यवहार खोल देने का अनुरोध करता है। यह प्रस्ताप नीमच निवासी बाबू नथमलजी चोरडिया ने रखा और अपने भाषण में प्रताकि शकाल को देखकर हमलोगों को अपने समाज के उन भाइयों को, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३० ] जो हमारे समान खानपान, आचार विचार, रीति- रस्म रखते हुए भी किसी कारणवश कुछ समय से विछुड़ गये हैं साथ मिला लेना चाहिये और उन के साथ बेटी व्यवहार खोल देना चाहिये। बाबू जवाहरलालजी लोढा, सम्पादक 'श्वेताम्बर जैन', आगरा ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया। इस पर सिरोहो वाले बाबू खेमचंदजी सिंघो वकील ने इस का विरोध किया। सिरोही-निवासी रायचन्दजी मोदी ने विरोध का अनुमोदन किया। पश्चात् भोट लिये जाने पर केवल चार विरोध के पक्ष में और सारा पंडाल मूल प्रस्ताव के पक्ष में होने के कारण बहुमत से प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। ____इस के बाद बाबू सिद्धराजजी ढड्डा ने अछूतोद्धार विषयक एक प्रस्ताव जो इस प्रकार था रखते हुए इसपर काफी प्रकाश डाला और विवेचन करते हुए कहा कि यह विषय समयानुकूल और बड़े महत्व का हैं। प्रस्ताव "यह सम्मेलन अछूतोद्धार के देशव्यापी आन्दोलन को ओर सहानुभूति दिखलाता हुआ अपना यह निश्चित मत प्रकट करता है कि प्रत्येक हरिजन को कुवें, नल, विश्रामगृह, स्कूल आदि सार्वजनिक स्थलों के उपयोग करने का अन्य मनुष्यों के समान हो अधिकार होना चाहिये।" जिस समय उक्त प्रस्ताव रखा गया उस समय अजमेर-निवासी कुछ लोग जो कि अछूतों के सम्बन्ध का कोई भी प्रस्ताव उपस्थित होने पर हो हल्ला करने के इरादे से आये हुए थे, शोरगुल मचाने लगे। उसी समय सिरीही-निवासी बाबू खेमचन्दजी सिंघी ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। इस से उनलोगों और उन के हिमायतियों की उच्छृखलता और भी बढ़ गई और अधिवेशन का कार्य चलना कठिन हो गया परन्तु स्वागत समिती के कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों ने बडे शान्तिसे स्थिति का सामना किया और बहदी सभापतिजी की चतुरता से शीघ्र ही शान्ति हो गई। सम्मेलन की सफलता और समाज के गौरव को हृदय से चाहते हुए प्रस्तावक बाबू सिद्धराजजी ढड्ढा ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया पश्चात् अधिवेशन का कार्य पुनः आरम्भ हुआ। ___ग्यारहवां प्रस्ताव ओसवाल समाज के अधिकांश लोगों के व्यापारी होनेके कारण उनकी उन्नति देश के उद्योग धन्धे पर अवलम्बित है। देशी उद्योग धन्धों को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३१ तरक्की देने के लिये यह सम्मेलन हादि अनुक वाला कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत तथा सामुहिक रूपमा कार्य में स्वदेशी वस्तु का ही प्रयोग करें। यह प्रस्ताव सभापतिजी की ओर से सेठ कानमलजी लोढ़ा अजमेर वालोंने पेश किया और सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। आमंत्रण इस प्रकार सम्मेलन के अधिवेशन का कार्य सफलतापूर्वक समाप्त होने पर अहमदनगर-निवासी श्री कुन्दनमलजी फिरोदिया ने आगामी वर्ष सम्मेलन को बम्बई प्रान्त में आमन्त्रण करने के लिये योग्य शब्दों में उपस्थित सजनों से निवेदन किया और स्वागताध्यक्ष श्रीराजमलजी ललवाणी ने इसका अनुमोदन किया। तदनन्तर बेतूल-निवासी श्रीयुत दीपचंदजी गोठो ने बरार प्रान्त के लिये सम्मेलन को निमंत्रण करते हुए कहा कि वह प्रदेश और २ प्रान्तों से बहुत पिछड़ा हुआ है, इस कारण अधिवेशन प्रथम सी० पी० बरार प्रान्त में होना ही अधिक लाभ दायक है। सभापतिजी और उपस्थित सज्जनों में अब यह समस्या उपस्थित हुई कि किस प्रान्त का निमन्त्रण प्रथम स्वीकार करना चाहिये। पश्चात् यह निश्चय हुआ कि बम्बई प्रान्त में सम्मेलन होने के उपरान्त दूसरे वर्ष सी० पी० बरार में होना उचित होगा। उपस्थित समस्त सजनों ने इस घोषणा का करतलध्वनि से स्वागत किया। धन्यवाद सम्मेलन की कार्यवाही के अन्त में सभापति से लेकर समस्त कार्यकर्ताओं और उपस्थित सजनों को धन्यवाद देने का कार्य आरम्भ हुआ। वयोवृद्ध श्रीगुलाबचन्दजी डड्ढा ने अपने गंभीर शब्दों में समस्त पदाधिकारियों के कार्यों की प्रशंसा की और कहा कि सम्मेलन की ओर से अद्यावधि जो साहित्य प्रकाशित हुए हैं उन सब विषयों में कुछ मतभेद रहने पर भी इस ओसवाल महासम्मेलन का कार्य थोड़े ही समय में बहुत अच्छे ढङ्ग से हुआ। इस कार्य में राय साहब कृष्णलालजी बाफणा का अतुल परिश्रम सर्वथा प्रसशंनीय है। सम्मेलन के कार्य में शक्ति संचारित करने में प्रोत्साहन देनेवाले एक और छिपे रुस्तम हैं और वह हैं आगरा-निवासी बाबू दयालचन्दजी जौहरो। हंसते २ उन्होंने कहा कि आप और राय साहब दोनों सजन एक पांव से लड़े हैं और ये लोग कहते हैं कि उन लोगों की इस कमी के कारण विशेष कार्य नहीं कर सके लेकिन मैं समझता हूं कि अगर समाज को ऐसे २ दो चार लङ्गड़े और मिल जायं तो इस का निश्चय ही कल्याण हो जाय। पश्चात् उन्होंने प्रतिनिधियों, स्वयंसेवकों तथा और २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३ ] सज्जनों को जो इतना कष्ट उठाकर सम्मेलन में सहयोग देने के लिये उपस्थित हुए हैं, पूर्ण रूप से धन्यवाद दिया । पश्चात् सम्मेलन के मंत्री बाबू अक्षयसिहजी डांगो ने कहा कि यह महान् कार्य जिस खूबी से सम्पन्न हुआ हैं इस का सर्व श्रेय प्रतिनिधियों तथा विशेष कर अजमेर के ओसवाल समाज का है। क्योंकि यदि इनमें से एक भी व्यक्ति के सहयोग की कमी रह जाती तो वह त्रुटि पूर्ति होनी कठिन हो जातो । ओसवालों में धनवान तथा विद्वान् महानुभावों ने भी इस पूरी सहायता और सहानुभूति दिखलाई तदर्थ उन्हें भी हार्दिक धन्यवाद है । अपना अमूल्य समय देकर जिन सज्जनों ने डेपुटेशनों में जाकर जाति-सेवा की तथा स्वयंसेवकों ने जिस तरह अपने कर्त्तव्य पालन का अपूर्व परिचय दिया इसके लिये सम्मेलन की ओर से मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं । इस के अतिरिक्त हिज हाइनेस महाराजा बहादुर किशनगढ़ तथा सेठ सोनीजी साहेब ने सम्मेलन को जिस तरह मदद पहुंचाई है इस के लिये उन लोगों को जितना धन्यवाद दिया जाय, थोड़ा है। विशेषकर किशनगढ़ दरवार ने मोटर, लारी सामियाना आदि वस्तुएं सहर्ष देनेकी जो उदारता दिखाई तथा सभापति महोदय की अस्वस्थता का समाचार पाकर उनकी शुश्रूषा के लिये अपने दरवारके डाकर साहब को भेज कर सहानुभूति प्रकट की इस लिये हमलोग उनके विशेष कृतज्ञ और आभारी हैं। समाज के समस्त सज्जनों ने जिस प्रकार अपूर्व त्यागरूप जलसे इस सम्मेलन के पौधे को सींचा है इस से आशा की जाती है कि निकट भविष्य में वह फल फूल से सुशोभित होकर ओसवाल जाति के संगठनका कार्य पूर्ण करेगा । उन्होंने यह भी कहा कि सभापति महाशय जिस शारीरिक अवस्था में कलकत्ते से खाने हुए वह प्रायः सब को मालुम है और विशेष जानने की बात यह है कि उन के वहां से प्रस्थान के कुछ ही दिवस पहिले उन की पुत्रवधू का देहान्त हो गया था। ऐसी हालत में उन ने ज्वरग्रस्त होते हुए भी इतना दूर पधार ने का कष्ट लिया यह उन के कर्त्तव्य पालन और जाति प्रेम का प्रत्यक्ष दृष्टान्त है और समाज के कार्यकर्त्ताओं तथा नवयुवकों के लिये अनुकरणीय है । जिल पवित्र उद्देश्य को लेकर समाज सिरोमणि बाबू पूरणचन्दजी नाहर ने अपवे नेतृत्व में महासम्मेलन के प्रथम अधिवेशन का कार्य समाप्त किया है और जनता को जो मार्ग दिखलाया है उस से अपनी जाति शीघ्र ही उन्नति पथ पर अग्रसर होतो दिखाई पड़ेगी । अतः हम सब उन के पूर्ण आभारी हैं और आशा करते हैं कि उन का यह कार्य ओसवाल समाज के इतिहास में अमर रहेगा । अन्त में सभापतिजी के ओर का धन्यवाद उन का स्वर-भंग रहने के कारण बांबू इन्द्रचन्दजी सुबंती एडवोकेट ने पढ़ा जो इस प्रकार है : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat -: www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३३ ] "प्रतिनिधियों, बहनों और भाइयों! .. अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन का प्रथम अधिवेशन आप महानुभावों की सहायता से पूर्ण सफलता के साथ समाप्त हो गया है । आरम्भ में मुझे भय था कि मैं अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्वपूर्ण गुरुभार वहन करने में समर्थ हो सकूगा या नहीं, किन्तु आप सब बहनों और भाइयों ने आदिसे अन्त तक बहुत सहायता की और मुझे नाम मात्र का भी कष्ट नहीं होने दिया। अतः मुझे पूर्ण आशा होती है कि आपलोग ऐसे सेवाव्रती ओसवाल भाई अपने समाज को उन्नति शिखर पर पहुंचा देंगे। आपलोग समाज के हित को ध्यान में रख कर दूर दूर से यहां पधारे हैं। जिस उत्साह, धैर्य, शान्ति और प्रेम से आप ने इस सम्मेलन में भाग लिया है उस की सराहना नहीं हो सकती। एकमात्र जाति के मङ्गल की कामना से आप लोगों ने सब प्रकार का सुख त्याग कर आनन्द पूर्वक यहां सब कष्ट सहा। प्रतिनिधि भाइयों! आप को जो कुछ कष्ट हुआ है उसके लिये क्षमा चाहता हूं तथा हृदय से शतसः धन्यवाद देता है। स्थान २ पर मेरा स्वागत कर के आप भाइयों ने मेरे प्रति प्रगाढ स्नेह का जो परिचय दिया है इस से मैं गद गद हो रहा हूं। इस शुद्ध प्रेम का क्या धन्यवाद हो सकता हैं ? महासम्मेलन के संचालकों को सदा यह चिन्ता रही की मुझे लेशमात्र भी क्लेश न हो। मुझे तो कुछ करना ही न पड़ा। श्रीमान् बाबू अक्षयसिंहजी डांगी मन्त्री महोदय तथा राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा ने जिस त्याग और स्नेह से आत्म समर्पण कर मेरो सहायता की है इसके लिये मैं विशेष आभारी हैं। स्वागत-स के उपाध्यक्ष भाई सुगनचन्दजो नाहर, उतारा समिति के नायक श्रीयुत बाबू पन्नालालजी लोढ़ा ने जिस तत्परता, कुशलता और त्याग के साथ काम निबाहा है वह प्रशंसा के योग्य है। भोजन प्रबन्ध समिति के प्रमुख श्री भैरूलालजी हींगड़ ने हम सबों को सुस्वाद भोजन से तृप्त किया है। श्रीमान् सेठ रामलालजी ललवाणी, बाबू दयालचन्दजी जौहरी. सेठ सौभाग्यमलजी मेहता, श्रीमान् राममलजी लुणिया, श्रीयुत माणकवन्दजी बांठिया, श्रीमान् हरीवन्दजी धाड़ीवाल, श्रीयुत जवाहिरमलजो लुणिया, बाबू धनकरणजी चोरडिया आदि सजनों तथा स्वयंसेवकों को मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूं। आप लोगों ने अपनी सारी शक्ति लगा कर इस महासम्मेलन को सफल बनाया है। इन के अतिरिक्त श्रीमान् बाबू गुलाव चन्दजी ढड्डा, बाबू पूरणचन्दजी सामसुखा, सेठ कानमलजी लोढ़ा और सेठ फूलचंदजी भावक का भी विशेष आभार मानता हूं। . सजनों! हमें उन जाति हितैषी भाइयों को भी न भूलना चाहिये जो इच्छा रहते हुए भी कई कारण वश यहां नहीं पधार सके हैं लेकिन जिन्होंने अपने सहानुभूति सूचक पत्रों और तारों द्वारा हमें प्रोत्साहन दिया है कि वे लोग हमारे साथ हैं। अन्त में मैं आप सब लोगों का आभार मानता हूं और सर्व शक्तिमान परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि वह हमारी जाति का भविष्य उज्ज्वल बनायें और हम को बल दें कि हम इस कार्य में जी जान से लग जांय, ऐसा सम्मेलन होता रहे और दूर २ के भाइयों से मिलने का सुअवसर प्राप्त करते रहें।" 6 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३४ ] इस के बाद प्रबन्धकारिणी समिति की बैठक दूसरे दिन 'ब्ल्यु केशल' में दो बजे दिन को बुलाने की घोषणा की गई पश्चात् सभापतिजी ने सभा विसर्जन करने की आज्ञा दी। पश्चात् सन्ध्या समय पंडालमें अखिल भारतवर्षीय ओसवाल नवयुवक परिषद की बैठक श्रीमान् सेठ भैरूलालजी बम के सभापतित्व में हुई और कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास हुए और यह निश्चित हुआ की अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन में पास हुए प्रस्ताव नवयुवक गण कार्यरूप में परिणत करने का प्रयत्न करें तथा अस्पृश्यता निवारण के देशव्यापी अन्दोलन के प्रति क्रियात्मक सहयोग करने की प्रतिज्ञा करें। परिषद के मन्त्रीत्व पद का भार जयपुर निवासी श्रीयुत सिद्धराजजी ढड्डा ने अपने ऊपर लेना स्वीकार किया। परिषद की नियमावली आदि तैयार करने के लिये ११ सदस्यों की समिति नियुक्त की गई। दूसरे दिन सुबह को पंडाल में शिक्षा और व्यवसाय पर ८ से १२ बजे तक अहमदावाद वाले पं० सुखलालजी, बाबू नारायण प्रसादजी मैठ, बी० एस० सी, प्रिन्सपल टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल, जोधपुर, बाबू चतर्भुजजी गहलोत, डी० डी० आर०, एम० आर० ए० • एस०, एम० एल० एस० रिटायर्ड सुपरिटेन्डेन्ट, जोधपुर और साविक असिस्टेन्ट कंसरवेटर, ग्वालियर स्टेट आदि विशेषज्ञों के महत्वपूर्ण भाषण हुए। स्वागताध्यक्ष श्रीमान् सेठ राजमलजी ललवाणी ने भी कृषि सम्बन्धी अपने अनुभव से बहुत ही मनोरञ्जक व्याख्यान दिया। विशेषज्ञों के भाषण से संतुष्ट होकर सेठ इन्दरचंदजी लूणिया हैदरावाद-निवासो ने व्याख्यानों को छपवा कर जगह २ वितरणार्थ रु० १००) सहायता देने का वचन दिया। ये व्याख्यान प्रकाशित हो कर सम्मेलन के हेड आफिस से वितीर्ण किये गये हैं। किसी सजन को आवश्यकता हो तो वहां से मंगा सकते हैं। उसी दिन दो पहर १२ बजे पंडाल में ओसवाल महिला परिषद की बैठक हुई जिसमें स्त्रियों ने परदा उठाने, स्त्री शिक्षा प्रचार करने तथा स्वदेशी वस्तु व्यवहार करने का प्रस्ताव पास किया। पश्चात् दिन २ बजे 'ब्ल्यु केसल' में प्रबन्ध कारिणी समिति की बैठक हुई जिसमें सम्मेलन के आय व्यय का हिसाब सुनाया गया और आगामी वर्ष के लिये बजेट तथा सम्मेलनकी कार्यवाही के लिये कुछ नियम बनाये गये। पश्चात् सभापतिजो, स्वागताध्यक्ष, मन्त्री तथा अन्यान्य कार्यकर्ताओं एवं बाबू गुलाबचन्दजो ढडा आदि उपस्थित सज्जनों के फोटो लिये गये। उस दिन रात्रि को पंडाल में मैजिक लैन्टन के साथ विशेषज्ञों के व्याख्यान भी हुए। उसी रात्रि को सभापतिजी वहां से रवाने हुए। स्टेशन पर स्वयंसेवक गण तथा राय साहब कृष्णलालजी बाफणा, बाबू अक्षयसिंहजी डांगी, बाबू सुगनचंदजी नाहर, बाबू दयालचन्दजी जौहरी आदि उपस्थित थे। सभापतिजी अपने स्वभावसिद्ध नम्रता के साथ सबों को सत्कार करते हुए ट्रेन में सवार हो कर प्रस्थान किया। www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३५ ] उपसंहार जिस ओसवाल महासम्मेलन की चर्चा केबल चंद मित्रों की मंडली में चली थी वही यथासमय प्रारम्भ होकर सानंद समाप्त हो गया। किसी बात की चर्चा आसान होती है, लेकिन उसे कार्य रूप में परिणत करना बड़ा ही कठिन हो जाता है । समाज के अन्दर भिन्न २ प्रवृत्ति तथा विचारके मनुष्य पाये जाते हैं । ऐसी दशा में यह स्पष्ट है कि उन्हें एक प्लाटफार्म पर लाकर खड़ा करना बहुत ही कठिन कार्य है । ओसवाल महासम्मेलन के सम्बन्ध में भी यही बात थी । समाज बहुत दिनोंसे अनुभव कर रहा था । यथा समय सम्मेलन समाज का कर्त्तव्य है कि अपनी इस सृष्टि को वह फूलने फलने दे । सामाजिक संस्थाओं का जन्मदाता समाज ही होता है। किसी संस्था विशेष को जन्म देने के बाद समाज का कर्त्तव्य हो जाता है कि वह उस की वृद्धि तथा उन्नति की ओर पूरा २ ध्यान दे । जिस वृक्ष को उस ने लगाया है उसे पूर्ण रूप से सोंचता रहे जिस से उस की सुशीतल छाया तथा मधुर फल के उपभोग का अवसर मिले । संगठन के द्वारा ही हम अपने भविष्य को उज्ज्वल तथा गौरवपूर्ण बना सकते हैं। समाज के प्रत्येक बन्धु से नम्र निवेदन है कि वे तन मन धन से इस विराट उद्योग में सहयोग प्रदान करें तथा सम्मेलन के स्वीकृत प्रस्तावों को व्यवहारिक रूप में लाने के लिये यथासाध्य प्रयत्न करें। केबल आपकी सहायता के बल पर ही सम्मेलन की सफलता निर्भर है । अजमेर सं० १६८६ सन् १६३२ ई० इस की आवश्यकता भी हो गया । अब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat समाज का नम्र सेवक अक्षय सिंह डांगी मन्त्री स्वागतसमिति, प्रथम अधिवेशन श्रीअखिल भारतबर्षीय ओसवाल महासम्मेलन www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ राजमलजी ललवाणी स्वागताध्यक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-क स्वागताध्यक्ष का भाषण महिलाओ और सज्जनो ! पञ्च परमेष्ठी परमात्मा को मन, वचन, काया से नमस्कार कर के और उन्हीं की शरण लेकर मैं आज आप लोगों के सम्मुख उपस्थित हुआ हूँ । यह मेरे लिये बड़े ही सौभाग्य की बात है कि आप के स्वागत का सुवर्ण सुयोग मुझे प्राप्त हुआ है । शब्दों में शक्ति नहीं कि मैं अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर सकू। आप लोग दूर दूर स्थानों से नाना प्रकार के कष्टों को सह कर तीर्थयात्री की तरह, इस समाज-समारोह में सम्मिलित होने के लिये पधारे हैं, अतः आप का दर्शन ही कल्याणकर है । पर मुझे तो आप के स्वागत का भी सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। इस सौभाग्य पर मैं जितना भी गर्व करू, थोड़ा है । आज का दिन मेरे जीवन का एक गौरवपूर्ण भाग है । स्वागतसमिति की ओर से आप का स्वागत करते हुए आज मैं अपने को धन्य मान रहा हूँ । आज जिस स्थान पर आप का स्वागत करने के लिये मैं खड़ा हुआ है, वह ऐतिहासिक, प्राकृतिक तथा सामाजिक गौरव में अपनी समता नहीं रखता। भारत के प्राचीन इतिहास के साथ अजमेर शब्द सम्बन्धित है। इस नगर की उत्पत्ति के सम्बन्ध में नाना प्रकार की किम्बदन्तियां प्रचलित हैं। अनेक विद्वानों ने इस सम्बन्ध में गवेषणापूर्ण अनुसन्धान किया है। कर्नल टाड अजमेर नाम की उत्पत्ति की व्याख्या करते हुए एक स्थान पर लिखते हैं कि यह संस्कृत के 'अजय' और 'मेह' शब्द के संयोग से बना है । 'अजय' शब्द का अर्थ होता है नहीं जीत सकने लायक और 'मेर' का ये है पहाड़ी। यह स्थान इतना सुरक्षित था कि यह एक प्रकार से अजय समझा जाता था। इस . कारण. यह अजयमेरु ( अजमेर) कहा जाने लगा। उन्होंने ही एक दूसरी व्याख्या भी दी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३८ ] है। एक स्थान पर वे लिखते हैं कि "राजा विशालदेव के पूर्वज अजयपाल की बकरी के झुण्ड के आधार पर इस नगर का नाम अजमेर पड़ा। सर अलेकजेण्डर कनिंघम का कहना है कि “अजयपाल नामक राजा के नाम पर इस नगर का नामकरण अजमेर हुआ। इसी प्रकार अजमेर नाम की उत्पत्ति के सम्बन्ध में नाना प्रकार की बातें कही जाती हैं। इस नगर की प्राकृतिक छटा भी बड़ी निराली है। अभी तक चौहान राजाओं की विभूतियों के भग्नशेष दर्शकों के हृदय में स्फूर्ति पैदा करते हैं। इस नगर में देहली दरवाज़ा, आगरा दरवाज़ा, ऊसरी दरवाज़ा तथा मदार दरवाज़ा बहुत ही प्रसिद्ध हैं। अजमेर हिन्दू और मुसलमानों के लिये पड़ा ही पवित्र स्थान है। हिन्दुओं के तीर्थ स्थानों में पुष्कर तीर्थ को एक विशेष स्थान प्राप्त है और वह अजमेर के निकट ही है। ख्वाजा साहब का नाम मुसलमानों के लिये बड़ा ही पवित्र माना जाता है । जैनियो का भी अजमेर से बड़ा ही घनिष्ट सम्बन्ध है। हमारे प्रसिद्ध आचार्य श्री जिनदत्त सूरिजी का संवत् १२११ में यहां ही स्वर्गवास हुआ था। इन का स्तूप इस समय तक यहां विद्यमान है। ओसवाल समाज का तो इस नगर से बड़ा ही गौरवपूर्ण सम्बन्ध है। धार्मिकता के साथ २ यहां के ओसवालों ने वीरता का भी यथेष्ठ परिचय दिया हैं। एक नमूना देखिये-१७८७ ई० में मरहटों के हाथ से अजमेर को मुक्त करने के बाद मरवाड़ के महाराजा विजयसिंहजी ने धनराजजी सिंधवी नामक एक ओसवाल वीर को यहां का शासक बनाकर भेजा, लेकिन चार वर्ष के बाद ही मरहटों ने फिर मारवाड़ पर चढ़ाई की और मेड़ता तथा पाटन की लड़ाइयों में उनकी विजय हुई। उसी समय मरहटा सेनापति ने अजमेर पर धावा किया। वीरवर सिंघवी अपने मुट्ठी भर वीरों के साथ किले की रक्षा करता रहा और मरहटों को केवल दुर्ग पर घेरा डाले रह कर हो सन्तोष करना पड़ा। पाटन का पराजय के बाद महाराजा विजयसिंहजी ने वीरवर धनराज को आज्ञा दी कि वह किला शत्रुओं को सुपुर्द कर जोधपुर लौट आवे। सिंघवीजी के सामने बड़ी विकट समस्या उपस्थित हुई। एक ओर थी स्वामी की आज्ञा और दूसरी ओर था कायरता का कलङ्क। वीरवर धनराज ने हीरे की कणी खा ली। उस वीरकेसरी के अन्तिम शब्द ये थे-“जाकर महाराज से कहो कि उन की आज्ञा पालन का मेरे लिये केवल यही एक मार्ग था। मेरे मृत-शरीर के ऊपर से ही मरहटे अजमेर में प्रवेश कर सकते हैं।" . .. सजनों! मुझे गर्व हैं कि वीरवर सिंघवी की इस लीला-भूमि में आपका स्वागत करने के लिये मैं उपस्थित हुआ हूं। सम्मेलन का अधिवेशन बुलाने का अजमेर को एक विशेष अधिकार प्राप्त है और वह हैं इसका केन्द्रिय महत्व। यह नगर ऐसे स्थान पर बसा हुआ है, जहां हर प्रान्त के निवासी सुविधापूर्वक पधार सकते हैं। पञ्जाव, राजपूताना, युक्तप्रान्त तथा मध्यप्रान्त के भाइयों के समागम के लिये यह बड़ा ही सुविधापूर्ण स्थान है। यह बातें सोचकर ही सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन यहां करने की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३६ ] प्रबल भावना हम लोगों के हृदय में उत्पन्न हुई और अपनी कमजोरियों को कोई परवाह नं. कर आप लोगों को यहां निमन्त्रित करने का साहस हम लोगों ने किया। हमारा निमंत्रण स्वीकार कर आपने यहां पधारने की जो असीम कृपा दिखलायी है, उसके लिये आपको जितना धन्यवाद दिया जाय, थोड़ा है । सज्जनों! यह संगठन का युग है। कलियुग में संघशक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति बतलाई गयी है । हमारी आंखों के सामने ही अनेक समाज अपना संगठन कर उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। बहुत दिनों से ओसवाल समाज के भो अनेक उत्साही व्यक्ति समाजिक सम्मेलन करने की बात सोच रहे थे । यत्र तत्र इसके लिये उद्योग भी होता था । हम लोग भी समय पर इस सम्बन्ध में परामर्श कर लिया करते थे। कई वार सम्मेलन के अधिवेशन करने की भावना प्रबल हो जाती थी। सोचते थे कि और कोई लाभ हो या न हो, समाज के शुभचिन्तकों में हम लोगों का भी यही लाभ क्या कम हैं ? कहने का तात्पर्य यह है कि सम्मेलन करने के लिये प्रोत्साहित ही होते जाते थे । व्यवहारिक रूप देनेके लिये कटिबद्ध हो गये और उसीके कृतकृत्य हो रहे हैं । शुमार होने लगेगा । इस ज़माने में किसी न किसी प्रकार हम लोग अन्तमें हम लोग अपने विचार को फलं स्वरूप आपका दर्शन कर हम भिन्न भिन्न स्थानोंके भाइयों को हम लोगों ने अपने विचारों से सूचित किया और प्रसन्नता की बात है कि प्रायः सभी स्थानों से आशापूर्ण सम्मतियां आई। इन सम्मतियों से प्रोत्साहित होकर हम लोगों ने स्वागत समिति की रचना की और अधिवेशन की तैयारी. आरम्भ हो गई । संगठन के मंडल तथा मैं पहले ही निवेदन कर चुका हूं कि यह युग द्वारा ही यह शक्ति प्राप्त हो सकती है, लेकिन कुछ लोग ऐसे सम्मेलन आदि से बेतरह घबरा गये हैं । उन की घवराहट अनेक स्थानों पर देखा गया है कि कार्यकर्त्ताओं की कारण संस्थाओं के द्वारा लाभ के बदले हानि हुई है तथा संस्थाओं की उपयोगिता अस्वीकार नहीं की जा उपयोग पर निर्भर करता है। उदाहरण स्वरूप तलवार को ही लीजिये । तलवार के द्वारा संघशक्ति का है। भी हैं जो संघ, सर्वथा निराधार नहीं है । अकर्मण्यता तथा पारस्परिक द्वेष के । लेकिन इस आधार पर सम्मेलनों सकती है। किसी भी वस्तु का गुण मनुष्य शत्रुओं तथा हिंसक पशुओं से अपनी रक्षा करता है, लेकिन उसी तलवार के द्वारा वह आत्महत्या भी कर सकता है । शक्ति वही है, गुण वही है, परन्तु उपयोगिता में भिन्नता होने के कारण उस के गुण का रूप ही विकृत हो गया । जिस के द्वारा रक्षा होती थी उसी के द्वारा विनाश हुआ । संस्थाओं के सम्बन्ध में भो यही बात लागू है । सज्जनों! आरम्भ में ही मैं आप को बतला देना चाहता हूं कि आप को अपने सम्मेलन का अधिक से अधिक सदुपयोग करना चाहिये । यदि आप पूरी शक्ति तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] उत्साह के साथ इस की सफलता के लिये कटिबद्ध आप को सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकती है। जोरियों को दूर करने का साधन बनाना चाहिये । होंगे, तो संसार की कोई भी शक्ति इस सम्मेलन को हमें अपनी कम बन्धुओं ! आगे बढ़ने के पहिले मैं उस आक्षेप की चर्चा करना चाहता हूं जो सामाजिक संस्थाओं के ऊपर लगाये जाते हैं । कुछ लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय प्रवाह के इस युग में सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति होने से राष्ट्रीयता को धक्का लगता है । देश की स्थिति भिन्न २ दिशाओं में विभक्त हो जाने के कारण राष्ट्रीय प्रभाव शिथिल हो जाता है, लेकिन यदि गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाय तो सामाजिक संस्थाओं के कट्टर से कट्टर विरोधियों को भी यह मानना पड़ेगा कि उनकी धारणा पुष्ट आधार पर अवलम्बित नहीं है। सज्जनो ! सामाजिक संस्थाओं से राष्ट्रीयता को धक्का लगने की यदि कुछ भी सम्भावना रहती तो आज आप मुझे इस स्थान पर न पाकर सामाजिक संस्थाओं के विरोधियों की श्रेणी में पाते, लेकिन मैं तो देखता हूं कि ऐसी संस्थाओं से राष्ट्रीयता की धारा शिथिल होने के बदले और भी प्रबल होती है । जिस तरह भिन्न २ अङ्गों के द्वारा समूचे शरीर का निर्माण होता है, उसी तरह भिन्न २ समाजों के संयोग से राष्ट्र की सृष्टि होती है। अपने शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिये हमें भिन्न २ अङ्गों की स्वच्छता की ओर ध्यान देना पड़ता है और सदैव इस बात की चेष्टा में रहना पड़ता है कि कोई अङ्ग कमजोर अथवा खन न होने पावे। एक भी अंग के रुग्न होने पर सारा शरीर शक्तिहीन हो जाता है, यही बात राष्ट्र के सम्बन्ध में भी लागू है । 'राष्ट्रीयता', 'राष्ट्रीयता' की चिल्लाहट में यदि हम सामाजिक सुधार की बात भूल जांय तो फल यह होगा कि हमारा राष्ट्रीय स्वरूप उस शरीर की तरह निकम्मा तथा रोगग्रस्त हो जायगा जिस के भिन्न २ अङ्ग रूम तथा शक्तिहीन है। अधिक विस्तार में न जा कर हम सामाजिक संस्थाओं के विरोधियों का ध्यान सामाजिक संगठन के इस पहलू की ओर आकर्षित करना चाहते हैं और हमारा विश्वास है कि यदि वे सहृदयता तथा निष्पक्षता पूर्वक इस प्रश्न पर विचार करगे तो वे भी इस निश्चय पर पहुंचेंगे कि सामाजिक संस्थाओं के द्वारा राष्ट्रीय प्रगति क्षीण होने के बदले और भी प्रबल होती हैं। सज्जनो ! अब मैं आप का ध्यान अपने समाज को वर्तमान परिस्थिति की ओर आकर्षित करना चाहता हूं । इस प्रश्न की जटिलता आज हमारे कलेजे को विदीर्ण कर रही है। जब मैं अपने समाज की वर्तमान परिस्थिति पर विचार करता हूं तो निराशा के काले बादल हमारी आंखों के सामने आ जाते हैं। आज हमारा सामाजिक शरीर कई रोगों से ग्रस्त है, अविद्या का भूत हमारे सिर पर सवार है, पारस्परिक संगठन तथा. एकता का अभाव हमारे शरीर को टुकड़े २ कर रहा है, व्यापार की कमी हमारे शरीर को शक्तिहीन बना रही है। इन प्रश्नो पर विशेष प्रकाश श्रीमान् सभापती महोदय तथा आप प्रतिनिधि सज्जन डालेंगे। मैं संक्षेप में अपना मत आप लोगों के सामने रखता हूं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४१ ] सब से पहिले हम लोगों को अपना ध्यान अविद्या की ओर आकर्षित करना वाहिये। जब तक हम अज्ञान से छुटकारा नहीं पाते, किसी प्रकार हमारा उत्थान नहीं हो सकता है। उन्नति की ओर अग्रसर होने की सब से पहली सीढ़ी विद्या-प्राप्ति ही है, अविद्या के कारण हमारे समाज को हर प्रकार से क्षतिग्रस्त होना पड़ रहा है। यह विद्या का ही फल है कि निर्धन धन नहीं पैदा कर सकते और धनी अपने धन का सदुपयोग नहीं कर सकते। बेचारे गरीबों को कोई व्यवसाय नहीं सूझता और धनियों को फिजलखी तथा अकर्मण्यता से छुटकारा नहीं मिलता। यह कितने खेद की बात है कि हमारे समाज का न कोई आदर्श पत्र है और न कोई कालेज। मैं आप से पूछना चाहता हूं कि क्या अपने समाज में धन जन को कमी है ? मेरा अनुमान ही नहीं दृढ़ विश्वास है कि भाप में से प्रत्येक आदमी स्वाभिमान-पूर्वक यही उत्तर देंगे कि हमारे समाज में न तो धन की कमी है और न जन की। फिर भी अविद्या के कारण इस समय हमारा सामूहिक रूप नहीं के बराबर है। समाचारपत्र के हो प्रश्नको लोजिये। सामाजिक पत्र के अभाव के कारण हम लोग अपनी उन्नति का कोई जोरदार आन्दोलन नहीं कर सकते हैं। अपने विवार को एक दूसरे तक पहुंचाना भी हम लोगों के लिये कठिन है। कई प्रान्तों में हमारे ओसवाल भाइयों ने गौरवपूर्ण कार्य किया है। यदि इतिहास के रूप में उन्हें लिपिबद्ध किया जाय तो उस से हमारे समाज का मुख उज्ज्वल हो सकता है, परन्तु यहां तो अविद्या का बोलबाला है। कौन लिखे और कौन लिखावे। कुछ दिनों तक यदि यही क्रम जारी रहा तो हमारा सारा ऐतिहासिक महत्व नष्ट हो जायगा और हम सदा के लिये अन्धकार के गहरे गर्त में गिर जायेंगे, अब भी समय है। दिनका भूला भटका यदि शाम को घर लौट आवे तो वह भूला हुआ नहीं कहलाता है। यह अविद्या का ही फल है कि हम लोग अपने साधनों का उपयोग नहीं कर पाते हैं। राजपुताने तथा अन्य स्थानों में कितने ही ओसवाल नवयुवक बेकार बैठे हैं। यदि निजी प्रान्त की प्राकृतिक विभूतियों का वे उपयोग करें तो अपने लिये बहुत बड़ा क्षेत्र तैयार कर सकते हैं। इस से न केवल उनकी निजी अथवा ओसवाल समाज की भलाई होगी, प्रमूचा देश सामूहिक रूप से उस से लाभान्वित हो सकेगा। नवोन साधनों का उपयोग करने से राजयुताने में भी वर्तमान ढङ्ग के उद्योग-धन्धों का निर्माण हो सकता है, लेकिन इस के लिये वैज्ञानिक ज्ञान को आवश्यकता है और अविद्या के रहते ऐसा होना किसी प्रकार सम्भव नहीं है। इस सम्बन्ध में समाज के धनी, मानी सजनों का भी बहुत कुछ कर्त्तव्य है। उन्हें चाहिये कि किसो संगठित उद्योग के द्वारा इस सामाजिक रोग को दूर करने को चेष्टा करें। मैं यह नहीं कहता कि हमारे समाज में पढ़े-लिखे लोगों का सर्वथा अभाव है। अवश्य हो हमारे समाज में अनेक ऐसे रत्न हैं, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता के द्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४२ ] समाज का मुख उज्ज्वल किया है। फिर भी वर्तमान दोषपूर्ण शिक्षाप्रणाली के कारण शिक्षितों का पूर्ण विकाश नहीं हो पाता है। हमारे नवयुवकों को चाहिये कि शिक्षा-प्राप्ति के समय अपने स्वास्थ्य की ओर वे पूरा २ ध्यान रखें। मानसिक विकाश के साथ साथ शारीरिक उन्नति करने पर ही वे अपनी चमक से समाज को आलोकित कर सकेंगे। . विद्याप्रचार के साथ साथ हम लोगों को पारस्परिक संगठन की ओर भो यथेष्ठ ध्यान देना चाहिये। हम इतनी बड़ी संख्या में यहां सम्मिलित हुए हैं, इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि हम में अब संगठित होने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई है। मैं आप से अनुरोध करता हूं कि आप इस प्रवृत्ति को स्थायित्व प्रदान करें। इन दिनों कुछ लोग सम्मेलनों तथा सभा सोसाइटियों को फैशन के रूप में देखते हैं। सामाजिक अथवा राजनैतिक समारोह समझ कर आमोद प्रमोद के लिये वे इन में चन्द घण्टों के लिये सम्मिलित हो जाते हैं। मैं आप से प्रार्थना करता हूं कि यदि अपने लिये नहीं तो भावी सन्तान के हित को सामने रख कर आप इस प्रबृत्ति को स्थायित्व प्रदान करें। यह एक लहर आई है, यदि आप चाहेंगे तो इस लहर के द्वारा अपनी बुराइयों को धो सकते हैं, कमजोरियों से मुक्ति पा सकते हैं। मेरा हृदय इस समय आशाओं से परिपूर्ण है। मेरी अन्तरात्मा में आवाज उठ रही है कि आप ऐसा चाहेंगे और अवश्य चाहेंगे। - सजनों! आओ, कटिबद्ध हो जाओ, इस वेदी पर ही प्रतिज्ञा कर लो कि अपनी बुराइयों से परित्राण पाये बिना हम चैन न लेंगे, सुख की नींद न सोयेंगे। सामाजिक संगठन को सफल बनाने के लिये हमें अपने क्षेत्र को विस्तृत बनाना होगा। जिन लोगों से हमारा खान पान है, उनसे यदि हम बेटी व्यवहार कर लें, तो ऐसा करने में किसी प्रकार को हानि दिखलाई नहीं देती। अनेक समाजों ने उदारता तथा सहृदयता पूर्वक सामाजिक क्षेत्र को विस्तुत किया है और इस से उन को यथेष्ठ लाभ भी हुआ है। हमारे समाज की व्यावसायिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। निज का न कोई बैंक है और न कापरेटिव सोसायटी। इस का परिणाम यह होता है कि सुसंगठित ढङ्ग से कोई औद्योगिक कार्य भी नहीं हो पाता है। सामाजिक कापरेटिव सोसायटी रहने पर समाज के होनहार छात्रों को इस शर्त पर उच्च शिक्षा के लिये कर्ज दान किया जा सकता था कि विद्या-प्राप्ति के बाद उपार्जन के द्वारा वे उसे अदा कर दें। ऐसा होने से समाज के होनहार युवकों को विकाश का सुन्दर अवसर मिल सकता है और अपनी. प्रतिभा से वे समाज का उन्नतिशील कार्य करने में समर्थ हो सकते हैं। . सज्जनों! अब मैं आपका अधिक समय लेना नहीं चाहता। आप विद्वान सभापति महोदय का भाषण सुनने के लिये उत्सुक होंगे। आप सभापति महोदय की ख्याति से परिचित है। आपको मालूम होगा कि इनके विद्वत्ता-पूर्ण ऐतिहासिक तथा पुरातत्व सम्बन्धी अनुसन्धानों के द्वारा आज न केवल जैन-समाज वरन समूचे देश का विद्वान-मण्डल गौरवान्वित हो रहा है। आपने जैन इतिहास के सम्बन्ध में अनेक बहुमूल्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान किये हैं और उन चमत्कारों को देश के सामने रक्खा है, जो सदियों से अन्धकार के पर्दे में छिपे हुए थे। आपका पुस्तकालय और प्राचीन भारतीय मूर्तियों, चित्रों तथा सिक्कों का संग्रहालय कलकत्ता नगरी का एक दर्शनीय स्थान है। आपका परिवार उच्च शिक्षित है। बंगाल-प्रान्त में जाकर बसने वाले ओसवालों में सबसे पहले उच्च शिक्षा आपने ही प्राप्त की। विश्व-विद्यालय छोड़ने के बाद भी कलकत्ता, ढाका आदि विश्व. विद्यालयों से परीक्षक के रूप में आप का सम्बन्ध रहा। आई०ए०, बो० ए० आदि के तो परीक्षक आप होते ही थे, कलकत्ता विश्व-विद्यालय की सुविख्यात प्रेम चन्द राय चन्द परीक्षा तक के भी आप परीक्षक थे। बनारस विश्व-विद्यालय में आप कई वर्षों तक श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के प्रतिनिधियों में से थे। ऐसे योग्य सभापतिको पाकर आज हम सचमुच अपने को अहोभाग्य समझते हैं। बन्धुओं! अब मैं आप से बिदा और क्षमा चाहता हूं। अपनी कमजोरियों से आदमी स्वतः परिचित रहता है। मैं भी अपनी त्रुटियों का जानकार हूं। मैं जानता हूं कि हमारी सेवा में बहुत कुछ त्रुटियां रह गई हैं। मुझे मालूम है कि हम आप के अनुकूल अपनी सेवा नहीं कर सके। सज्जनों! आप उदार हैं, आप का हृदय विशाल है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि हमारी त्रुटियों के लिये आप का उदार हृदय अवश्य ही हमें क्षमा प्रदान करेगा। स्वागत समिति के उत्साही कार्यकर्ताओं तथा सुयोग्य पदाधिकारियों ने जिस तत्परता के साथ काम किया है, उस के लिये उन्हें धन्यवाद देना भो मैं नहीं भूल सकता। यह उन के उद्योग का ही फल है कि थोड़े समय में ही, जैसा भी हो सका, हम लोग सम्मेलन की तैयारी पूरी करने में सफल हुए। हमारा निमन्त्रण स्वीकार कर निजी काम-धन्धों को छोड़ तथा अनेक कष्टों को सह कर आपने यहां पधारने की जो असोम कृपा को है, उस के लिये आप को एक बार फिर हृदय से धन्यवाद देता हुआ मैं अपने स्थान को ग्रहण करता हूं। अजमेर सं० १९८६, कार्तिक बदी १ सन् १९३२ ई० राजमल ललवाणी . स्वागताध्यक्ष, प्रथम अधिवेशन श्रीअखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाबू पूरणचंदजी नाहर सभापति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०............................................. परिशिष्ट-ख PARAMHARITATISTIANE सभापति का भाषण थरिहन्ते सरणं पवजामि, सिके सरणं पवजामि। .. साहू सरणं पवजामि, केवलिपपत्तं धम्म सरणं पवजामि॥ बन्धुओ और बहनो! संसार परिवर्तनशील है। संसार की प्रत्येक बात में, प्रत्येक वस्तु में सदा परिवर्तन होता है। भगवान महावीर ने भी कहा है "तेणं फालेणं देणं समवेग"। इतिहास का कोई भी युग ऐसा नहीं है, जिस में कोई न कोई परिवर्तन दुपा। वास्तव में यदि देखिये तो इतिहास इन्हीं परिवर्तनों का लेखबद्ध वृत्तान्त मात्र है। मगर वीर सम्बत् की इस पचीसवीं शताब्दी में मानव जीवन में जो परिवर्तन हुए है, गत्यात व्यापक हैं। मनुष्य ने जब से भाप और बिजली पर विजय प्राप्त की है. से जिस कार्य महीनों लगते थे, वह आज कुछ दिनों में ही हो जाता है। संसार में होने वाले परिवर्सों में भी बिजली की भांति तेजी घुस गई है। परिणाम स्वरूप माज सारे संसार -- पुथल मची है। मनुष्यों के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन में जमीन आसमान के परिवर्तन उपस्थित हो गये हैं। माज संसार का प्रत्येक जीवित देव और प्रत्येक जीवित जाति अपने को नवीन परिवर्तनों भौर नवोन परिस्थितियों के मक बनाये में व्यस्त हैं। परिवर्तन प्रकृति का अटूट नियम है। जो जातियां अपो जीवन को समय और परिस्थितियों के अनुकूल नहीं बनानी, वे मष्ट हो जाती है। बाब सारे प्राच्य देशों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४६ ] में जाप्रति की लहर दिखाई देती है। भारतवर्ष भी नवीन चेतना की स्फूर्ति से स्पन्दित हो रहा था। देश की प्रत्येक जाति और प्रत्येक सम्प्रदाय में यह चेतना दृष्टिगोचर हो रही है। इस विश्वजनीन चेतना, इस व्यापक जाग्रति से उदासीन रहना किसी भी जाति, सम्प्रदाय अथवा देश के लिये घातक है। ___सजनों! मैं खभाव से ही आशावादी (Optimist ) हूं। मगर मैं स्वीकार करूंगा कि जीवन के इस अन्तिम भाग में पिछले कुछ दिनों से अपने समाज को अवस्था देख कर मुझे निराशा होने लगी थी। देशके अन्य समाजों और अन्य जातियों को अपनाअपना संगठन करते देख.कर, जीवन को दौड़ में अग्रसर होते देखकर, कभी कभी अपने समाज के भविष्य के विषय में चिन्ता होने लगती थी। परन्तु आज की इस महासभा, आज के इस वृहत् बन्धु समुदाय को देख कर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि मेरी चिन्तायें निर्मूल थीं। हमारे समाज की चेतना शक्ति विलुप्त नहीं हुई है। समाज परिस्थितियों से बिलकुल बेखबर नहीं है। वरन् वह उनका सामना करने के लिये किसी अन्य समाज से पिछड़ा रहना नहीं चाहता। वह अन्य जातियों और सम्प्रदायों में, देश में तथा संसार में अपना उचित और सम्मानपूर्ण स्थान ग्रहण करने के लिये उद्यत है। हमारा समाज स्वभाव से ही धार्मिक वृत्ति का है। परन्तु बहुधा लोग धर्म और समाज के अन्तर को न पहचान कर, दोनों को एक ही मान लेते हैं । जिस से हम लोग अपने मार्ग से च्युत हो कर भटक जाते हैं। धर्म सत्य है, नित्य है, कल्याणकारी है। परन्तु उसका सम्बन्ध मनुष्य को आत्मा से है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने पूर्वजन्मार्जित कर्मानुसार पल, बुद्धि, आत्मविश्वास और धर्म को विभिन्न मात्रा में प्राप्त करता है। समाज इन्हीं व्यक्तियों के वाह्यसंगठन का नाम है। अपने नित्यप्रति के सांसारिक जीवन के निर्वाह के लिये मनुष्य एक समाज बन कर रहते हैं और सुविधा के लिये देश और काल की आवश्यकतानसार आचार-व्यवहार, रहन-सहन, खान-पान, विवाह-शादी, आदि बातों के सम्बन्ध में जो नियम बना लेते हैं, वही सामाजिक नियमों के नाम से परिचित है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इन नियमों का पालन करना पड़ता है। समय के परिवर्तन के साथसाथ कभी कभी ये नियम और रूढियां विकृत हो जाती हैं, उन की उपयोगिता में अन्तर पड़ जाता है। और वे उन्नति और विकाश के मार्ग में अड़चन डाल कर बाधा उत्पन्न करने लगती हैं । उस समय उन में नवीन परिस्थितियों और नवीन आवश्यकताओं के अनुसार हेर-फेर और परिवर्तन किये जाते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन सदा से होते आये हैं और होते रहेंगे, इस प्रकार के परिवर्तन से मुंह मोड़ना मृत्यु के मुख में जाना है। 'परिवत्तन या विनाश (Change or die) प्राकृति का नियम है। हमारे धर्म में वाह्य जगत को परिवर्तनशील माना गया है, अतः जो परिवर्तनशील है, उस के हेर-फेर से कुछ बनता बिगड़ता नहीं। धर्म और समाज का आधारभूत अन्तर न समझने के कारण हमारे धर्मप्राण भाइयों में यह भ्रमपूर्ण धारणा फैली है, कि सामाजिक बातों में हस्तक्षेप करना, धर्म पर कुठाराघात करना है। मैं अपने श्रद्धावान धार्मिक बन्धुओं से विनम्र प्रार्थना करूँगा कि वे इन वाय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४७ 1 नियमों के परिवर्तन से भयभीत न हों। जिस.प्रकार तरल जल अदृश्य वाष्प और कठोर हिम के बाहरी आकार-प्रकार में अत्यधिक अन्सर होने पर भी उनका आन्तरिक तत्त्व अर्थात् जल एक रहता है, इसी प्रकार बाहरी जीवन के नियम बदल जाने से हमारे आन्तरिक सत्य में किसी प्रकार का व्याघात नहीं पहुंचता । इस सभा ने अपने उद्देश्यों में केवल सामाजिक विषय रख कर सबके साम्प्रदायिक विवादों को दूर रखने की जो बुद्धिमानी की है, वह वास्तव में प्रशंसनीय है। बन्धुओ! हमारा धर्म सत्य और अहिंसा पर अवलम्बित है। इसलिये वह संसार में सब से अधिक समानता विश्वमैत्री और भ्रातृभाव का धर्म है। आधुनिक बड़े बड़े राजनैतिक विद्वानों के विचार की सीमा केवल मनुष्यों की समानता तक ही परिमित है, परन्तु हमारे धर्म में 'मित्तो मे सर्वभूयेसु'. यह समानता और मैत्रीभाव जीव मात्र के लिये है। ऊंच-नीच का विचार जैन-धर्म के बिलकुल ही प्रतिकूल है। हमारे यहां अष्ट मदों की गणना भयंकर पापों में हैं। इन अष्ट मदों से यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल ऊंच-नीच का विवार और कुल मद ही गर्हित नहीं है, वरन धनमद, ज्ञानमद आदि बातें भी वर्जित हैं, जिन से प्रकट है कि जैन धर्म साम्यवादी है। खतन्त्रता और धार्मिक उदारता की दृष्टि से भारत का कोई अन्य धर्म जैन धर्म की बराबरी नहीं कर सकता। सजनों! जैन साधनों की व्यावहारिक सफलता का सब से महान, सब से उज्ज्वल उदाहरण आज पृथ्वी के सब से श्रेष्ठ महापुरुष ने उपस्थित किया है, जिसे देख कर सारा संसार आश्चर्य से चकित स्तम्भित रह गया है। यह उदाहरण है सावरमती के संत महात्मा गांधी का नवीनतम अनशनव्रत। आप को यह बतलाने की आवश्यकता नहीं है कि महात्माजी का यह अनशन हमारे जैनसिद्धान्तों के सर्वथा अनुकूल है। इस प्रकार आज फिर एक बार महात्माजी ने आत्मशक्ति की महानता और जैनसिद्धान्तों की उत्कृष्टता की विजय-दुन्दुभी बजा दी है। सजनों! इस महासभा के प्रमुख पद.का भार आपने मुझे देकर मेरा सम्मान किया है, बँधे हुए ढर्रे के अनुसार मुझे आरम्भ में ही उसके लिये धन्यवाद देना चाहिये था, परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया, इस के लिये क्षमा चाहता हूं। आजकल डिक्टेटरशिप का युग है। संसार के अनेक देशों में डिक्टेटरों द्वारा शासन हो रहा है। भारत में भी. एक ओर कांग्रेस के डिक्टेटर दिखाई देते हैं और दूसरो ओर सरकार ने आर्डिनेन्स निकाल कर एक प्रकार से सरकार को डिक्टेटरशिप स्थापित कर रखा है। डिक्टेटर की आज्ञा का पालन करना हर एक का कर्तव्य है। परन्तु इन डिक्टेटरशिपों में सबसे विकट डिक्टेटर. शिप है साधारण जनता की। उस की आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता। हमारे यहां भी व परमेश्वर' कहलाते हैं। पनों की आज्ञा ईश्वरीय आज्ञा के समान कही गयी है। फिर यदि कहीं यह डिक्टेटरशिप प्रेम की हई तब तो उस की आज्ञाओं की कठोरता बहत अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि प्रेम के.बन्धन लौह शृंखलाओं से सहस्रों गुना अधिक दृढ़ होते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४] है। वे अटूट है। समाज के पञ्चों ने जब एक मत से प्रेमपूर्वक इस महान् पद का भार उठाने की मी आज्ञा दी तब मझे भी अपनी सविधा-असविधा का. अपने रून शरीर और अखस्थता का विचार न कर के पञ्चों को आज्ञा को शिरोधार्य करना पड़ा। मैं इस पद के योग्य हूं, या अयोग्य हूं, मुझ से इस गुरुसर पद का उत्तरदायित्व और कर्त्तव्य पूरा हो सकेगा या नहीं, यह निर्णय करना आप महानुभावों का काम था। मेरा काम तो केवल आज्ञापालन करना है। हाँ, मैं आप को यह विश्वास दिलाता हूं कि अपनी शक्ति और रुद्र बुद्धि के अनुसार आप की आज्ञाओं और अपने कर्तव्यों को पूरा करने का कायमनोवाक्य से प्रयत्न करूंगा। _ विद्या प्रचार के उद्देश्य को कार्य रूप में परिणत करना सम्मेलन का प्रथम कर्तव्य है । 'विद्यारत्न महाधनम्' 'किं किं न साधयति कल्पलतैवविद्या,' 'विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' मादि महापुरुषों के वाक्य आप सब सजन जानते हैं, अतः इस विषय पर अधिक व्याख्या की आवश्यकता नहीं। समाज का असली हित और जातीय उन्नति केवल ज्ञान वृद्धि से ही हो सकती है। जाति की उन्नति में अशिक्षा बड़ी घातक सिद्ध हो रही है। इस से भी हानिकारक बात यह है कि अशिक्षित व्यक्ति अपने हित और अहित के प्रति अंधा बन जाता है। वह बहुधा भले को बुरा और बुरे को भला समझने लगता है। आज यूरोप जो इतना सुसंगठित और ज्ञान-विज्ञान में उन्नत होकर सब प्रकार से सम्पन्न है, उसका सब से बड़ा कारण उस की सार्वजनिक शिक्षा ही है। इस के अभाव के कारण ही हमारे समाज में अगणित कुसंस्कार, पारस्परिक ईर्षा, द्वेष, घृणित कुरीतियाँ और कुत्सित विचारों ने घर कर लिया है। आप लोगों को मालूम ही है कि अन्य जातियों की अपेक्षा हमारी जातिमें शिक्षा का प्रचार बहुत कम है। अंग्रेजी विद्या में तो हम बहुत ही पिछड़े हुए हैं। इस में सन्देह नहीं कि हम शिक्षा में क्रमशः कुछ २ आगे बढ़ रहे हैं। परन्तु यदि हम कछुवे की चाल से चलेंगे तो अन्य जातियों की दौड़ में हम कितने पीछे रह जायेंगे यह कल्पना करने से ही हृदय काँप उठता है। हमारे समाज में उच्च शिक्षा प्राप्त डाक्टर, वकील, वैरिष्टर, प्रोफेसर और इञ्जीनियर आदि की संख्या बहुत ही अल्प है। समाज के लिये क्या यह कम लजा का विषय है ? हमारी जाति के लिये इस से अधिक खेद का विषय और क्या हो सकता है ? हमारी यह दुर्गति ओसवाल जाति की उस कुम्भकर्णी निद्रा का परिणय देती है, जो अभीतक टूटने का नाम नहीं लेती। सजनों! हम कबतक इस प्रकार कान में तेल डाले पड़े रहेंगे? अब संकट चरम सीमा तक पहुंच गया है। इस के लिये शीन ही पौर प्रश्न उद्योग होना चाहिये, जिस से हमारी इस घोर तामसी अविया रूप विटा का अन्त हो। अज्ञान के निविड़ अन्धकार में हमें अपनी उन्नति का रास्ता नहीं सूझ पड़ता। अन्धेरे में तो हित अहित और अहित अपना कल्याण मालूम देता है। नींद की इस ब्रड़ता में प्रायः बहुधा यह देखा जाता है कि सोया हुआ आदमी जमाने वाले को अपना शत्लु समझता है। परन्तु यह स्पष्ट है कि जगाने में यह विलम्ब, पह आलस्य ही मनुष्य का परम बैरी है। 'आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः' । मापने सारे भोलवाल समाज को जगाने के लिये ही आप सब महाशय आज यहां एकत्रित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुए हैं। जिस दिन हम इस गुणराशिनाशी दोष को अपने समाज से हटाने में समर्थ होंगे उसी दिन बड़ी से बड़ी बाधायें भी हमारी उन्नति को नहीं रोक सकेंगी। वर्तमान युग में शिक्षा के बिना कोई भी कार्य सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता। क्या व्यापार, क्या उद्योग-धन्धा, क्या धर्म और क्या कर्म, सब शिक्षा पर निर्भर है। इसलिये मैं जोर देकर आप से निवेदन करूंगा कि इस ओर आप प्रचंड परिश्रम करें। समान के कुछ वयोवृद्ध सजनों का विचार है कि आधुनिक शिक्षा, आचार और व्यवहार को निय देती है। कुछ अंश में यह आपत्ति सत्य भी हो सकती है, किन्तु इस में शिक्षा या विद्या का दोष नहीं है। इस में विशेष शिक्षा-प्रणाली का दोष है। इस दोष को दूर करना, शिक्षा को वास्तव में उपयोगी बनाना हमारा काम है। यदि हम अपने बालबच्चों को बचपन से ही इस प्रकार की शिक्षा दें जिन से उन में सदाचार की वृद्धि हो, उन का चरित्र दृढ़ हो, उन में स्वधर्म और अच्छाई बुराई को पहचानने की बुद्धि उत्पन्न हो, साथ ही वे समाज के प्रति, देश के प्रति और अपने प्रति अपने कर्तव्यों को समझ सकें तो वे आधुनिक शिक्षा की बुराइयों से ग्रसित होने नहीं पायेंगे। संसार में जितनी जातियां उन्नति के शिखर पर चढ़ी हैं, वे अपने नवशिशुओं को उचित शिक्षा देकर ही इस गौरवपूर्ण पद पर पहुंच सकी हैं। हम लोगों को भी अपने बालकों को आरम्भ से ही उपयुक्त शिक्षा देनी चाहिये। इस कार्य के लिये शहर शहर में, ग्राम ग्राम में छोटी ही क्यों न हो, पाठशालायें मदरसे आधिखोलने चाहिये। विद्यादान से बढ़ कर कोई भी दान नहीं है। मैं अपने उन सब भाइयों से जो इस योग्य हैं, जोरदार अपील करता हूँ कि अपने प्रांत में कम से कम एक विद्यालय जिस में उच्च शिक्षा का प्रबन्ध हो, खोलने में सहायता दें। ___ हमारी सन्तान हमारी जाति के आदर्श विद्वानों और नेताओं की देखरेख में धार्मिक और लौकिक दोनों प्रकार की शिक्षाएं प्राप्त कर सकें, इस के लिये एक केन्द्रीय शिक्षण संस्था होनी चाहिये। हमारी जातीय संस्था हो यह काम कर सकती है। जिस प्रकार 'क्षत्रिय कालेज,' 'कान्यकुब्ज कालेज' 'ऐङ्गलो-वैदिक कालेज' आदि विद्यालय अपनी अपनी जाति और धर्म की उन्नति के लिये स्थापित किये गये हैं वैसा ही एक उत्तम कालेज क्या हमारा समाज नहीं खोल सकता? यदि हमारे नेता सच्चे हृदय से इस काम में तत्पर हो जाय तो वे बात की बात में एक उच्च कोटि का आदर्श जातीय कालेज खडा कर सकते हैं। वर्तमान विकट समय को देखते हुए और अपनी जाति की उन्नति को ध्यान में रख कर मेरा तो उन से करवद्ध यह नम्र निवेदन है कि वे इस महत् कार्य की साधना में जुट जाय। बिना उच्च शिक्षा के कोई भी जाति कदापि उन्नति नहीं कर सकती। हमारे समाज के जो नवयुक्क उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें यह काम सम्भालना चाहिये। और हमारे धनियों को मुक्त हस्त हो कर इस सदनुष्ठान में दान करना चाहिये। इस कालेज में आर्यसभ्यता और संस्कृति के अनुसार नव्यतम ज्ञान का अध्यापन हो। इस कालेज के साथ हमारा जो जातीय स्कूल होगा वह सुकुमार बालकों को सच्चरित्र बनाने में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५० ] बहुत सहायता करेगा। स्कूल और कालेज में इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा कि छात्र सादे जीवन के साथ साथ उच्च विचारों को हृदय में स्थान दें। अपनी जाति के छात्रों को सच्चरित्र बनाने के लिये हमें उन सब कालेजों और विश्वविद्यालयों में अपने स्वतन्त्र बोर्डिङ्ग हाउस खोलने पड़ेंगे, जहां ओसवाल जाति के छात्र पढ़ते हों। जिस केन्द्र में १०, १५ छात्र भी पढ़ते हों वहां एक बोर्डिङ्ग हाउस की स्थापना की जा सकती है। इस से एक लाभ यह भी होगा कि उन में खर्च कम पड़ने से निर्धन छात्र भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होंगे। इन निर्धन छात्रों की पढ़ाई न रुके, इस का ख्याल करना पड़ेगा। बम्बई के 'महावीर विद्यालय' के नाम से आप लोग भली भांति परिचित होंगे, उस से बम्बई प्रांत के ही नहीं अन्यान्य प्रान्तों के उत्साही छात्रों को भी जो मदद मिलती है, वह किसी से छिपी नहीं है। मेरे क्षुद्र विवार में तो एक ऐसे फण्ड की नितान्त आवश्यकता है जिस से ये सब जातीय कार्य हो सके। उस फण्ड से कालेज, स्कूल, ग्रामों में पाठशाला, कन्याशाला, पुस्तकालय और उत्तीर्ण छात्र छात्रियों की सहायता और उत्साह निमित्त वृत्ति, पारितोषिक वितरण आदि कार्यों की व्यवस्था हो सकेगी। ऐसे महान कार्यों के लिये विशाल फण्ड की आवश्यकता है। वर्तमान परिस्थिति देखते हुए यदि ऐसा फण्ड एकत्रित होना सम्भव नहीं हो तो कम से कम अपने समाज के भाई लोग जहां जहां रहते हों वहां समय और साधन के अनुकूल फण्ड से इस प्रकार के कार्यों की व्यवस्था करें। पारसियों, यहूदियों तथा कुछ हिन्दू जातियों के ऐसे फण्ड हैं जो अपनी अपनी जातिकी महान सेवा कर रहे हैं। इस फण्ड से उन के अस्पताल, अनाथालय आदि भी खुले हुए हैं, निस्सहाय अबलाओं की सहायता की जाती हैं, अकिंचन छात्रों की पढ़ाई का खर्च उस से चलता है, तीब्र बुद्धिवाले योग्य छात्रों को उच्च शिक्षा के लिये प्रोत्साहन मिलता है। अनाथ विधवाओं को इधर उधर बहकने से बचाया जाता है और अन्य अनेक जातीय कार्यों में इस का सद्व्यय हो सकता है। . • अब समय ने बहुत पलटा खाया है। एक समय था जब केवल वैश्य ही व्यापार करते थे, लेकिन आज वर्णों का प्रतिबन्ध नहीं रहा। आज तो प्रत्येक व्यक्ति इसी चिन्ता में है कि किसी प्रकार धन कमाया जाय। इसलिये ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सभी वर्णवाले वही काम करते हैं, जिन में उन्हें अधिक से अधिक लाभ हो। यह कोई नहीं देखता कि यह काम अमुक वर्ण का है। कलकत्ते में ब्राह्मणों की जूतों की दुकानें, धोषीखाने आदि हैं। आज व्यापारिक प्रतियोगिता का क्षेत्र अत्यन्त विशाल हो गया है। ऐसी स्थिति में हमें भी होश सम्भालना चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५१ ] इसके अतिरिक्त एक बात और भी है । वर्त्तमान युग में व्यापार के तरीकों में भी महान क्रांतिकारी परिवर्तन हो गये हैं। अब तक व्यापार का अर्थ केवल उत्पादक और क्रेता के बीच का काम ( middle man's work ) ही था । अर्थात् अबतक किसान अनाज उत्पन्न करता था अथवा जुलाहे कपड़ा तैयार करते थे । व्यापारी का काम केवल यही था कि देश-विदेश के किसानों से उन की उपज अथवा जुलाहे और अन्य कारीगरों से उन का माल खरीद कर देश-विदेश के खरीदारों ( consumers ) तक पहुंचा देना । परन्तु अब आने जाने और माल पहुंचाने के साधनों की सुगमता हो जाने से इस बात की जोरों से कोशिश हो रही है कि स्वयं उत्पादक अपने माल को सीधा खरीदार के पास पहुंचा दे । इस का परिणाम यह है कि बीचवाले व्यक्तियों की संख्या दिन दिन घट रही है। अब तो मिलवाले अपना माल तैयार कर के सीधे डाक के द्वारा खरीदारको घर बैठे पहुंचा देते हैं। अब जमाना स्वयं उत्पादक बनने का है । अतः इस समय शिल्प और उद्योग-धन्धों के द्वारा ही कोई भी जाति समृद्धिशाली हो सकती है । इसलिये इस बात की बड़ी आवश्यकता है कि कालेजों में या अन्यत्र हमें ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये कि ओसवाल नवयुवक नाना कलाओं और उद्योग-धन्धों में प्रवीण बन कर उन के द्वारा अपनी आजीविका अर्जन करें। जिस हुनर से सत्यता के साथ अपनी जीविका चले उसे सीखना युवकों का कत्तव्य है । ओसवाल जाति व्यापार प्रधान है। भारत के व्यापार में उन का मुख्य स्थान था । उन के द्वारा देशी शिल्प, कला-कौशलादि की भी अपूर्व उन्नति हुई थी, पर महान लज्जा का विषय है कि आज वह बहुत पीछे चली गयी है । अवश्य ही कुछ उद्योग-धन्धे ऐसे हैं, जिन से हमारे धर्म को व्याघात पहुंचे। परन्तु ऐसे धन्धों की संख्या अधिक नहीं है और उन के बिना भी हमारा काम आसानी से चल सकता है । फिर भी ओसवाल समाज में जितना अधिक शिल्प का प्रचार होगा उतनी ज्यादा हमारी समृद्धि बढ़ेगी । “उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी” उद्योगी वीरों को ही लक्ष्मी वरण करती हैं। इस लिये अपने धर्म की रक्षा करते हुए हमें उद्योग-धन्धोंको अपनाना चाहिये । इस समय हमारी जाति में जो नवयुवक शिक्षा प्राप्त कर चुकते हैं वे भी कुछ तो शिक्षा के दोष से कुछ अन्य कारणों से बंगालियों की तरह नौकरियों के पीछे दौड़ने लगते हैं । प्राचीन समय में हम लोगों ने इस ओर कभी ध्यान न दिया था। वीरवर भामाशाह ने व्यापार वाणिज्य से अतुल सम्पत्ति पैदा कर महाराणा प्रताप को देश-रक्षा के कार्य में सहायता दी थी । अतः इस ओर भी मैं अपने भाइयों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित करता हूं । सज्जनो ! आधुनिक काल में सब से अधिक महत्व स्त्रो शिक्षा को दिया जा रहा है और यह उचित ही है। माताओं की गोद में ही समाज पल कर बड़ा होता है । हमारे महापुरुष माताओं की गोद में ही पल कर बड़े हुए हैं। वे ही किसी कुटुम्ब को बनाती या बिगाड़ती हैं । खेद का विषय है कि हमारे समाज में स्त्री-शिक्षा का सब से कम प्रचार है । अशिक्षिता माताओं की सन्तान कैसी होगी ? इस का निर्णय मैं आप पर ही छोड़ता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हूं। स्कूल में तो लड़के थोड़ी देर रहते हैं, लेकिन सदाचार, सच्चरित्रता आदि गुण उन में माता से ही आते हैं। अशिक्षिता माता न तो गृहस्थी का ही उचित प्रबन्ध कर सकेगी और न उसे अपने बालबच्चों को ठीक रास्ते पर लाने का ही ढग आवेगा। संसार के सब उन्नत देशों में शिक्षिता महिलायें ही राष्ट्र और जातियों का निर्माण कर रही हैं। भारतवर्ष में पढ़ी लिखी स्त्रियां हो देशोन्नति की गति को अग्रसर कर रही हैं। वर्तमान राष्ट्रीय आन्दोलन ने हमें दिखा दिया है कि नारी जाति शिक्षा पाने पर क्या कर सकती है। अब समय आ गया है, जब हमारे समाज को भी अपनी बहिनों और माताओं की शिक्षा का बीडा उठाना पडेगा। क्योंकि सब जातियों की उन्नति की नीव नारी-शिक्षा पर ही अवलम्बित है। स्री-शिक्षा पर बहुत कुछ साहित्य लिखे जा चुके हैं, जिस के दोहराने की जरूरत नहीं। परन्त अपने समाज के विषय में यह कहना पडेगा कि इस ओर अभी तक भारत के किसी प्रांत में या किसी भी नगर में हमारा समाज उचित प्रबन्ध करते दिखाई नहीं पड़ता। कलकत्ता नगरी के "ओसवाल नवयुक समिति के उत्साही सदस्यों के परिश्रम से कहां एक ओसवाल महिला सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन की समानेत्री श्रीमती हीरा कुमारी, व्याकरण सांत्यतीर्थ ने जो भाषण दिया था, वह बड़े महत्वका था। उस में उन्हों ने अपने समाज की स्त्रियों के मुण और दोषों के साथ साथ शिक्षा के विषय में आवश्यकीय सब बातें बताई थीं। परन्तु इन सब व्यवस्थाओं के लिये फण्ड की विशेष मावश्यकता रहती है। जब तक ऐसे ऐसे सम्मेलनों से तथा संगठित शक्ति से प्रस्ताव कार्य रूप में परिणत नहीं किये जायगे तब तक कुछ फल नहीं होगा। शारीरिक उन्नति भी शिक्षा का एक अङ्ग है। इस में भी अपना समाज बहुत पीछे है। और और समाजों में इस विषय पर जितना ध्यान दिया जाता है, हमारे समाज में उतना नहीं दिया जाता। हमारे भाई दिन रात व्यवसाय वाणिज्य में पंसे रहने के कारण इस ओर से प्रायः उदासीन रहते हैं। मनुष्य-जीवन सफल करने में स्वास्थ्य का प्रथम स्थान है, 'एक तन्दुरस्ती सौ न्यामत' यह प्रत्यक्ष देख रहे हैं, फिर भी स्वास्थ्य की उन्नति के उपाय सोचने तथा उन्हें कार्यरूप में परिणत करने में समुचित प्रयत्न नहीं होता। सबल शरीर में रहनेवाली आत्मा भी बलवान होती है। संसार की सहस्रों अन्य जातियां भी व्यवसायी और वाणिज्य-प्रेमी हैं, परन्तु वे अपने स्वास्थ्य पर उचित ध्यान देना प्रथम कर्तव्य समझती हैं और इसी कारण वे सब कामों में अपने लोग से अधिक सफलता प्राप्त करती हैं। व्यायाम के अतिरिक्त जब तक एक दिनचर्या के अनुसार रहन सहन, आहार बिहार करने का अभ्यास नहीं रखेंगे तो क्रमशः स्वास्थ्य नष्ट होता जायगा। स्वास्थ्य के लिये लच्छ जलवायु और शुद्ध भोजन को सामग्री अत्यावश्यक है। साथ साथ कुछ व्यायाम और मनोरंजन का समय भी निषत करना चाहिये। स्वास्थ्य उन्नति से केवल समाज की नहीं, बल्कि देश की उन्नति में भी हम लोग भाग ले सकेंगे। एक समय था कि हमारे समाज में सच्चे वीरों की कमी नहीं थी। यदि इस ओर ध्यान दिया जाय और व्यायामसाला आदि स्थापित हों तथा समय और साधन के अनुकूल व्यवस्था कर के हम क्रमश: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५३ ] स्वस्थ और बलवान बनें तो और समस्त कार्यों में भी अवश्य फलीभूत होंगे। इसी प्रकार हमारी बहनों को भी स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान रखना चाहिये। आजकल हमारे समाज की स्त्रियों में स्वास्थ्य हानि अधिक परिमाण में देखी जाती है । यदि वे भी शिक्षा के साथ साथ कुछ शारीरिक परिश्रम जैसे कि टहलना, शुद्ध वायु सेवन आदि अनुकूल व्यायाम का अभ्यास रखें तो थोड़े समय में उनकी भी स्वास्थ्योन्नति हो सकेगी । जब कि समाज का उत्थान और पतन माताओं और बहनों के हाथ में है तो उनके स्वास्थ्य पर उचित ध्यान देने के विषय में कोई मतभेद नहीं हो सकता । कुछ आजकल देश में स्थान २ पर सेवा समितियां स्थापित हैं I इन सेवा समितियों में तो विशेष जातियों, सम्प्रदायों या समाजों की है और कुछ सर्वसाधारण को है । सर्वसाधारण को सेवा समितियों में कहीं कहीं पर हमारे जैन नवयुवक भी स्वयंसेवकों का कार्य करते हैं। क्या ही अच्छा हो कि जहां कहीं भी हमारे समाज के लोग पर्याप्त संख्या में हों, वहां पर इस प्रकार की सेवा समितियां स्थापित की जांय । चेष्टा करने से समाज में ऐसे नवयुवकों की कमी न होगी जो अपना थोड़ा सा समय - वह समय जिसे वे अक्सर गपशप करने अथवा ताश खेलने में उड़ा देते हैं- देकर समाज की सेवा कर सकें। विवाह शादी, मी तथा तिथि-त्यौहार के अवसरों पर ये स्वयंसेवक अपने भाइयों को सहायता दे सकते हैं । इन्हीं सेवा समितियों के द्वारा व्यायामशालाओं, स्वास्थ्यप्रद खेलों और मनोरंजन आदि का प्रबन्ध आसानी से हो सकता है। इस कार्य में व्यय भी अधिक न होगा, जिसे स्थानीय सज्जन थोड़ी सी उदारता से अनायास उठा सकते हैं। मनुष्य सामाजिक जीव है । उस की सभ्यता और संस्कृति की नींव समाज पर ही है। समाज का अवलम्ब न रहने से मनुष्य का मनुष्यत्व स्थिर नहीं रह सकता । यही कारण है कि सामाजिक वहिष्कार बहुत कठोर दण्ड समझा जाता है। कभी कभी मनुष्य राज-दण्ड की उपेक्षा कर जाता है, परन्तु समाज-दण्ड के आगे उसे अपना मस्तक झुकाना ही पड़ता है। सर्वसाधारण पर समाज का जो व्यापक प्रभुत्व है, उस से हम सब भलो भांति परिचित हैं । समाजके प्रभुत्व और समाज की क्षमता के सामने बड़े बड़े शक्तिशाली शासकों को भो पराजित होना पड़ा है। समाज के गुरुत्व और उस को व्यापकता के विषय में आप लोगों से कुछ अधिक कहना व्यर्थ सा ही है। क्योंकि आज आप सज्जनों का इतनी विशाल संख्या में यहां एकत्रित होना ही समाज की गुरुता, उपयोगिता और प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है । मतभेद को दूर कर के, एक अब मैं अपने समाज की कुछ कमजोरियों की ओर आप महानुभावों का ध्यान आकर्षित करता हूं। सम्भव है, कुछ सज्जन मेरी बातों से सहमत न हों, परन्तु सभा और सम्मेलन का उद्देश्य हो यह होता है कि विचार विनिमय के द्वारा सर्वमान्य प्रणाली निकाल कर उसके द्वारा समाज का हित विषयों का उल्लेख करूंगा, जिन का सुधार इस समय समाज हो रहा है। किया जाय । अब मैं उन लिये नितान्त आवश्यक के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५४ ] सामाजिक जीवन का सब से अधिक सम्बन्ध रोटी और बेटी से है । संक्षेपतः इसे हम निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं: १ - एक पंक्ति में कच्चा पक्का भोजनादि २- परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध ३ - परस्पर गोद लेन-देन का सम्बन्ध प्राचीन काल से ओसवालों का बारह न्यातों के साथ रोटी व्यवहार चला आता है, और अबतक मौजूद है । परन्तु बेटी व्यवहार और गोद लेन-देन का व्यवहार केवल श्रीमाल भाइयों के साथ होता है। कहीं कहीं पोरवालों और खंडेलवालों के साथ भो बेटी व्यवहार है, ऐसा सुना है। यह क्रान्ति का युग है । प्रत्येक समाज अपनी उन्नति तथा प्रसार की ओर अग्रसर हो रहा है । इस प्रवाह से हम लोगों को भी उचित लाभ उठाना चाहिये। मेरा तो मत यह है कि जिन जिन न्यातों के साथ रोटी व्यवहार है, उन से विवाह सम्बन्ध भी स्थापित किया जाय। इस से समाज की सीमा बहुत कुछ विस्तृत हो जायगी। देश की वर्त्तमान परिस्थिति इस समय हमारे सामने है । प्रायः सभी समाज उदारता तथा सद्भाव के द्वारा अपनी सीमा विस्तृत कर रहे हैं। हम लोगों को भी इस दौड़ में किसी प्रकार पीछे नहीं रहना चाहिये । अपने समाज की वर्तमान स्थिति और रीति रिवाज देखते हुए यह कहना पड़ता है कि जिन न्यातों से रोटी व्यवहार है, उनके साथ बेटी व्यवहार खोल दें, तो अपने समाज की सीमा और संख्या, जो दिन प्रति दिन संकीर्ण और क्षीण हो रही हैं, बहुत कुछ विस्तृत हो सकती हैं। अपने समाज के प्रधानुसार विवाह के क्षेत्र में धर्म की अथवा आम्नाय की रोक टोक नहीं होनी चाहिये । देखिये ! हमारे एक ओसवाल न्यातों में ही श्वेताम्बर मूर्त्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरहपंथी, दिगम्बर, वैष्णव आदि हैं और इन में विवाह आदि में कोई बाधा नहीं पड़ती। ऐसी दशा में जिन न्यातों से खान पान खुला हुआ है, और वे एक ही धर्म को मानने वाले हैं, तो परस्पर विवाह आदि सम्बन्ध भी खुल जाना बिलकुल ही न्यायसंगत और उचित है। इस से कई प्रकार के लाभ होंगे । हमारे ओसवाल न्यात में जो दशे और पांचे कहलाते हैं, उन के विषय में भी हम लोग उदासीन बैठे हैं । यह तो सिद्ध है कि हम लोग एक ही थे, किसी समय कुछ कारणों से वैमनस्य होकर पारस्परिक सामाजिक व्यवहार बन्द हुआ होगा । जिन कारणों से सामाजिक व्यवहार बन्द हुआ होगा, अब उनका अस्तित्व भी नहीं है । अतः अब उन के साथ सब प्रकार का सम्बन्ध और व्यवहार खोल देना चाहिये । वैवाहिक क्षेत्र की सीमा विस्तृत करने से संतान नीरोग और बलवान होगी। इसकी विशालता से कुटुम्बियों का पारस्परिक वैमनस्य घट जायगा । प्रायः देखा गया है कि एक ही गांव या शहर में विवाह होने से सन्तानोत्पत्ति कम हो जाती है और सम्बन्धियों के बीच पारस्परिक सद्भाव की भी कमी हो जाती है। इसलिये जहां तक सम्भव हो, एक गांव की लड़की का विवाह दूसरे गांव या शहर में करना चाहिये । इस के साथ ही दूसरे स्थानों में विवाहादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५५ ] सम्बंध होने से परस्पर विवार और भाव विनिमय होते रहेंगे। ऐसा होने से हमारी उन्नति का मार्ग बहुत प्रशस्त हो जायगा। इस स्थल पर मुझे एक घटना याद आ गयी है। यह बीकानेर की बात है। मैं सस्त्रीक वहां गया था और समाज के एक प्रतिष्ठित धनवान भाई के यहां ठहरा था। वे दो भाई थे। घर में दोनों भाइयों की पत्नियां और वृद्धा माता थीं। मेरी स्त्री हबेलो में वृद्धा माताजी के पास ठहरीं। दोनों बहुयें शहर की थीं। स्थानीय रिवाज के अनुसार प्रातःकाल दोनों अपने पीहर चली जाती और संध्या समय लौटती थीं। नतीजा यह था कि गृहस्थी का सारा भार और अतिथियों की सेवा आदि वृद्धा माता को ही करना पड़ता था। इस घटना ने शहर में विवाहादि करने की दिक्कतों और दिन भर मायके में रहने की कुरीति ने मेरे ऊपर गहरा प्रभाव डाला। दाम्पत्य जीवन के अतिरिक्त भी महिलाओं का बहुत कुछ कर्त्तव्य है। वे गृहस्थ जीवन की अधिष्ठात्री और संचालिका हैं। अतिथि-सेवा, शिशुपालन आदि का भार उन्हीं पर है। परन्तु यदि वे दिन का सारा समय मायके में ही स्वच्छंदता से बितायेंगी तो उन को इन पवित्र कर्तव्यों के सम्पादन का अवसर नहीं मिल सकता। इन सब कठिनाइयों को दूर करने का एकमात्र उपाय वैवाहिक क्षेत्र की वृद्धि और इस प्रकार मायके में रहने के रिवाज को दूर करना ही है। ___यहाँ समाज की वेशभूषा के सम्बन्ध में भी कुछ निवेदन कर देना मैं आवश्यक समझता हूं। वस्त्र का मुख्य उद्देश्य लज्जा और गर्मी-सरदी का निवारण है, परन्तु अब उन का प्रयोग आकर्षण और सौन्दर्य वृद्धि के लिये किया जाता है। इस समय जो पहिरावा प्रचलित है वह आर्थिक तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वथा हानिकारक है। उदाहरण खरूप राजपूताने के पहिरावे को ही लीजिये। किसी प्रांत विशेष पर आक्षेप करना हमारा उद्देश्य नहीं है। लेकिन स्पष्टवादिता के नाते हमें यह अवश्य ही स्वीकार करना पड़ेगा कि हमारे पहिरावे में सुधार की बहुत कुछ गुञ्जाइश है। हमारी स्त्रियाँ गहनों से इस प्रकार लदी रहती हैं कि वे उन के ऊपर एक प्रकार का बोझ सा हो जाता है। इस व्ययसाध्य आडम्बर से समाज को जो कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं, उसे प्रायः सभी भाई जानते हैं। इसके साथ ही हमारी देवियों के सौन्दर्य तथा स्वास्थ्य पर भी इनका बड़ा ही हानिकर प्रभाव पड़ता है। गहनों के बोझ के कारण वे अपने शरीर को पूर्णरूप से साफ सुथरा नहीं कर सकती हैं, जो केवल उन के शरीर को ही हानि नहीं पहुंचाता वरन् उन की भावी सन्तान को भी इस हानि का भागी होना पड़ता है। आभूषणों के कारण स्त्रियों की खतंत्रता में भी काफी बाधा पड़ती है। चोर बदमाशों के भय से वे एक स्थान से दूसरे स्थान में खतंत्रतापूर्वक जा भी नहीं सकती हैं। इंग्लैंड में विदेशी वस्तुओं को त्याग कर अपने देश की वस्तुयें खरीदने के लिये लोग एड़ी-चोटी का पसीना एक कर रहे हैं। इटली में केला पैदा न होने के कारण, मुसोलिनी इटेलियनों को केला खाने की मनाही कर रहा है, तब क्या हमारे समाज की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] लहवाय शुद्ध खदेखो वस्त्रों का व्यवहार नहीं कर सकतीं ? अब तो देश में सुन्दर वस्त्र बनने लगे हैं। अतः हमें प्रत्येक बात में स्वदेशी वस्तुओं से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिये। मैं समाज के नेताओं से करवद्ध अनुरोध करता हूं कि इन सब बुराइयों को दूर करने में वे अपनी शक्ति तथा प्रभाव का उपयोग करें। सी प्रसंग में स्त्रियों के परदे का विषय भी कह देता हूं। जिन जिन प्रान्तों या शहरों में यह रिवाज है, वहाँ के लोगों को चाहिये कि वे सांसारिक जीवन में और स्वास्थ्य पर इससे जो जो हानि और लाभ होते हों उनकी अच्छी तरह जाँच कर लें। यदि घे इसे हानिकर समझें तो इस को शीघ्र ही हटाने का प्रयत्न करें। अबलाओं को सब प्रकार से उपयुक्त बनाने में और उन के द्वारा पुरुषों को कार्य क्षेत्र में पूरी सहायता मिलने में, यह हानिकारक रिवाज बहुत ही बाधक है। इतिहास से स्पष्ट है कि पहले अपने आयों में ऐसा न था। पुरुषों के साथ साथ स्त्रियों की उन्नति और स्वतंत्रता में ऐसा प्रतिबन्ध न था। मुसलमान शासकों के अत्याचार से ही यह परदे को कुप्रथा प्रचलित हुई थी और वह उस समय अनिवार्य भी था। अब समाज को आवश्यकतानुसार इस प्रकार की हानिकारक प्रथाओं में सुधार कर लेना चाहिये। गुजरात के जैनियों में बिलकुल ही पर्दा नहीं है, वे हमारे हिन्दी भाषा-भाषी समाज से किसी बात में पिछड़े नहीं हैं। परदा न रखने से उन्हें किसी प्रकार को हानि नहीं होती, अतः हम लोग ही इस प्रकृति-विरोधी प्रथा से क्यों चिपटे रहें ? इसी प्रकार स्त्रियों के भोज के समय पुरुषों का परिवेशन करना, विवाहादि के समय भद्दी भही मालियाँ गाना आदि जो कुछ हानिकारक और कुत्सित रिवाज जहाँ जहाँ मौजूद हैं, उन की भी इतिश्री होनी चाहिये। हाँ, मैं पहिले विवाह-क्षेत्र के विस्तार की चर्चा कर रहा था। इस विषय में और कौन कौन सी प्रथा प्रचलित है, इस सम्बन्ध में भी संक्षेपरूप से कुछ निवेदन कर देता हूं। एक किम्बदन्ती चली आती है कि अपने ओसवाल न्यात में सोलह गोत टाल कर विवाह होते थे। इस समय उन की संख्या घटते घटते केवल चार रह गयी है। कहीं कहीं दो मोत छोड़ कर ही वैवाहिक सम्बन्ध हो जाता है। गोत टाल कर विवाह आदि होगा वैज्ञानिक दृष्टि से भी हितकारी माना गया है। आजकल पंजाब के ओसवालों से राजपूताना आदि स्थान के ओसवालों का वैवाहिक सम्बन्ध कम देखने में आता है। इसका प्रधान कारण यही प्रतीत होता है कि हमारे पंजाब निवासी भाई गोत का व्यवहार कम करते हैं । यदि वे लोग भी अपने अपने मोत को अन्य ओसवाल भाइयों की तरह अपने नाम के साथ रखें और विवाह आदि के साय उसी प्रकार टालें तो उनका भी सामाजिक व्यवहार किसी प्रकार दोषणीय नहीं रह जायगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी प्रकार गुजरात के भी आओसवाल भाई गोत्र कर बाहर कम रखने के कारण अपने अपने गोत को भूल गये हैं। फिर भी वहाँ के कुछ ओखवाळ भाकों को अपने अपने गोत मालूम हैं। जो लोग भूल गये हैं, उन्हें वेटा कर अपने अने मोखों पर पता लगाना और विवाहादि के समय पर टालना चाहिये, ताकि अपने को उनके साथ सामाजिक व्यवहार में किसी प्रकार की बाधा न पड़े। सजनो ! यह घोषित करते हुए मुझे असीम प्रसन्नता होती है कि हमारे समाज से संकोच विचार और अनेक कुप्रथायें हटती जा रही हैं। विदेश मना-गमन की बाधायें भी हट गई हैं। इन दिनों बालविवाह, बृद्धविवाह, कन्याविक्रय, फिजूलमानों आदि कुरीतियों के दुःखद दृष्टान्त कम दूष्टिगोचर होते हैं। फिर भी इसका सभी मूलोच्छेद नहीं हुआ है। यह समय आया है जब कि हम लोगों को इन को समान पूरा करने में अपनी सारी शक्ति लगा देनी चाहिये। जिन लोगों के हाथों में इस समय समाज का सूत्र है, उनका भार इस सम्बन्ध में बहुत ही गुरुतर हो जाता है। प्रायः देखा जाता है कि उनकी छोटी छोटी कमजोरियों के द्वारा भी अनेक सामाजिक कुहीतियों को प्रोत्साहन मिलता है। समाज उन्हें केवल संचालक के रूप में-सारथी के रूप में ही नहीं देखता, वह उनसे आदर्श की आशा रखता है। जनता उन्हें अनुकरणीय समझती है। अतः उन्हें किसी प्रकार का कमजोरी दिखानी उचित नहीं। सामाजिक संस्कारों में विवाह संस्कार का प्रमुख स्थान है। स्थान स्थान पर इस सम्बन्ध में भिन्न भिन्न प्रकार की प्रथायें प्रचलित हैं। खेद का विषय है कि इस समय तक इस सम्बन्ध में कोई सर्वमान्य जातीय नियम नहीं बन सका है। इस प्रकार के नियम बनाने की बहुत बड़ी आवश्यकता है। ऐसा न होने से समाज की अवस्था सुधर नहीं सकती। धनाड्यों की बांधली से गरीब भाई बोतरह पिस जाते हैं। धनीमानी श्रीमानों के पास तो पानी की तरह बहाने के लिये यथेष्ट धन रहता है। यद्यपि इसका कुपरिणाम उन्हें भी आगे चलकर भोगना पड़ता है, लेकिन इस सामाजिक संघर्ष में गरीब भाइयों को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। हम लोगों का प्रधान कर्तव्य है कि सामाजिक नियम बना कर विवाह सम्बन्धी फिजूलखर्ची को एकदम रोक दें, जिस से सामाजिक प्रतिष्ठा की वेदो पर हमारे गरीब भाइयों का बलिदान न हो। सर्वसम्मति से विवाह की रीति रस्म दो या तीन प्रकार की बनाई जांय तो उन्हें कार्यरूप में सब जगह आसाती से लाया जा सकता है। सज्जनो! विवाह प्रकरण को समाप्त करने के पहले, बाल विवाह के सम्बन्ध में भी कुछ कहना आवश्यक सा प्रतीत होता है। अति प्राचीन कालमें बाल का की प्रथा नहीं थी। मनुष्य जीवन को मूल्यवान बनाने के लिये अच्छे अच्छे नियम प्रचलित थे। ब्रह्मचर्य के साथ गुरु से शिक्षा प्राप्त करके शारीरिक उन्नति के साधनों का अभ्यास करते ऽ। प्रश्चात् वयः प्राप्त होने पर विवाह करके सांसारिक सुख भोगते थे। उस समय अन्तर्जातीय विवाह भी निषिद्ध न था। दाम्पत्य जीवन को सुलो बनाने के लिये स्मांस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५८ अथवा रूप गुणादि की समानता देख कर विवाह होते थे । मुसलमानी शासन कालमें उन सबों के अमानुषिक अत्याचारों के कारण बाल-विवाह प्रचलित हुआ है । इसी प्रकार अनमेल विवाह, बहु विवाह आदि की उत्पत्ति हुई है । इनके फलस्वरूप भावी सन्तान अयोग्य होती और उनसे समाज का तो कहना ही क्या, सारे देश की हानि होती है । आप जानते हैं कि हमारे ब्रिटिश भारत में बाल-विवाह निषेध के लिये सरकारी कानून बन गया है। देशी राज्यों में भी कहीं कहीं ऐसे ही कायदे बने हैं, परन्तु जहां जहां नहीं हुए हैं, वहां भी बनना चाहिये । इस कार्य के लिये उस राज्य के प्रजा लोग दत्तचित्त होकर शीघ्र कानून बनवा लें और उन्हें मान्य करें, यह मेरा नम्र निवेदन है । सामाजिक हित की दृष्टि से वृद्ध विवाह को दूर करने की भी बहुत बड़ी आवश्यकता है । वृद्ध विवाह के फलस्वरूप समाजमें नाना प्रकार की बुराइयों का प्रादुर्भाव होता है। हम लोगों को वैवाहिक अवस्था की कोई सीमा निर्धारित कर देनी चाहिये । मेरा विश्वास है कि इस प्रकार की व्यवस्था प्रायः सभी लोगों को मान्य होगो और समाज के सिरसे यह कलङ्क भी दूर हो जायगा । देखा जाय, कन्या विक्रय की प्रथा अत्यन्त निन्दनीय है । जिस स्थान में यह कार्य होते वहां आन्दोलन अथवा सत्याग्रह करके तुरत इसे रोक देना चाहिये । विवाह चर्चा समाप्त करने के पहले अनमेल विवाह का जिक्र करना भी आव श्यक है । अनमेल विवाह से जो बुराइयां होती हैं, उनसे प्रायः सभी सज्जन परिचित हैं। इसके चक्र में पड़ कर पारिवारिक जीवन कितना दुःखपूर्ण हो जाता है, यह शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता । इस सम्बन्ध में अधिक कुछ न कह कर मैं केवल यही अनुरोध करना चाहता हूं कि अविलम्ब इन बुराइयों को सदा के लिये दूर कर देना चाहिये । हमारे समाज में और भी कई प्रकार की कुप्रथायें प्रचलित हैं । मृत्यु संस्कार को ही लीजिये । इस कुप्रथा को लेकर समाज में बहुत कुछ विवेचन हुआ है। लेकिन खेद का विषय है कि इस से समाज को अभी तक परित्राण नहीं मिला है। एक रिवाज जो देश में अत्यन्त हास्यास्पद बन रहा है और हमारे समाज को भीषण हानि पहुंचा रहा है, वह मृतक के घर में अग्नि संस्कार करने के बाद उनके निकट सम्बन्धियों का पहुंच जाना है। जिस के घर में कोई मरे, जहां किसी सगे सम्बन्धी का विर वियोग हो, वहां जाकर समवेदना प्रगट करना, बेकल परिवार को ढाढ़स बंधाना और उसकी हर प्रकार सहायता करना, इष्टमित्रों और बन्धुबान्धवों का कर्त्तव्य है । लेकिन ऐसे शोकातुर कुटुम्ब में भोजन करने को डट जाना वास्तव में अमानुषिकता है। ऐसी प्रथा सभ्य समाज में अन्यत्र कहीं देखने में नहीं आती । भला, आप सोचिये तो पति- पिता आदि के देहान्त से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] विह्वल परिवार शोकसागर में मग्न छटपटा रहा है, उसे अपनी सुध नहीं है, ऐसो घोर विपत्ति के समय में उस पर यह बोझ लाद दिया जाता है कि वह अपने सम्बन्धियों को दावत दे और उनके भोजन के लिये पूड़ी और मिठाइयां तैयार करे। वह मातम मनावे या हम को छक छक के जिमावे । यदि निर्धन कुटुम्ब में किसी की मृत्यु हो तो उसे मरने का उतना दुःख नहीं होता है । असह्य यन्त्रणा तो आनेवाले कुटुम्बियों को दावत देने की हो जाती है । यह कुत्सित प्रथा शीघ्र बन्द होनी चाहिये। ऐसे अवसर पर हमारा मुर्शिदा बाद का समाज जो व्यवहार करता है, वह विशेष सराहनीय है। वहां अपने सम्बन्धी तथा कुटुम्ब के लोग भोजन करने नहीं जाते। बल्कि अपना धर्मं समझते हैं कि शोक सन्तप्त परिवार को खाना पकाने के भांझट से बचायें। वे कई दिनों तक — जब तक अशौच रहे - भोजन का पकापकाया सामान भेजते रहते हैं । मेरी समझ में यदि सब जाति भाई यह प्रथा अपना लें तो हमारे समाज की एक निष्ठुर कुप्रथा दूर हो जाये। मृतक के घर में धीरज दिलाने जा कर वहाँ जुहारी वगैरह के रूप में रुपये लेना और देना तो इस से भी अधिक निन्दनीय है । एक तो मृतक के घर वालों पर इष्ट वियोग से घोर शोक छाया रहता है। उस पर यदि सहानुभूति दिखाने और उनकी आर्थिक सहायता करने के स्थान पर उल्टे उनसे धन लिया जाय और उन पर अर्थ सङ्कट डाला जाय तो यह समाज के लिये महान कलङ्क का विषय है । इसके अतिरिक्त गुजरात की तरफ मृत्यु पर छाती पोटना, पंजाब, राजपूताना आदि प्रदेशों में जब जब कोई सगे सम्बम्धी 'मुकाम' देने के लिये आते हैं, तब तब रोना पीटना आदि कुप्रथायें भी निरर्थक और निन्दनीय हैं। जिन प्रथाओं से समाज को लाभ के बदले हानि होती हो उन्हें जितनी जल्दी छोड़ा जाय उतना हो समाज का अधिक कल्याण हो । मृतकभोज, वर्षी आदि कुप्रथायें भो हमें छोड़नी पड़ेगी। क्योंकि इनसे हानि के सिवा लाभ नहीं है । हमारी जाति को भी इन प्रथाओं के विरुद्ध आन्दोलन करना चाहिये, ताकि सब भाई जान जांय कि इन से क्या अहित हो रहा है। I .. अछूतोद्धार के प्रश्न ने आज भारत भर में भीषण खलबली मचा दी है। महात्मा गांधी ने अपना अमूल्य जीवन संकट में डाल कर जो भीष्म प्रतिज्ञा की थी, उसने इस समस्या का विशाल और उग्र रूप सब के सामने उपस्थित कर दिया है । हिन्दू समाज का कोई अङ्ग ऐसा नहीं है, जो इस जटिल प्रश्न से विचलित न हुआ हो । यह है भी स्वाभाविक, क्योंकि २२ करोड़ हिन्दुओं में प्रायः ७ करोड़ अछूत माने जाते हैं और यदि ये हम से अलग हो जांय तो हमारा तिहाई अङ्ग ही कट जायगा । उस समय हमारी जो दुर्गति होगी, उसकी कल्पना भी भयंकर है । जैन समाज भी हिन्दू जाति का अंश होने के कारण इस विकट परिस्थिति से कोरा नहीं निकल सकता । राष्ट्रीय भावापन्न कुछ जेनी भाई अछूतोद्धार में जुट गये हैं और वे अनेक उपायों से अस्पृश्यों को अपनाने लगे हैं। इसलिये यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि जैन समाज को ठोक पथ पर रखने के पूर्ण और विवेक सम्मत विचार रखे जांय । लिये उस के सम्मुख युक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ६० ] . अछूतों की मुख्य आपत्तियां ये हैं कि उन्हें कमों और तालाबों में पानी मरने नहीं दिया जाता, स्थलों और कालेजों में वे उच्च जाति के हिन्दू लड़कों के साथ पीनही पाते, मन्दिरों में प्रवेश नहीं कर सकते और पतित यानीच गिने जाने के कारण उन्हें अच्छी नौकरियां नहीं मिलती, जिस से उनकी जीचिका में बाधा पड़ती है। ये आपत्तिमा उचित है। जब हम लोग कारखानों में काम करने वाले मुसलमान, ईसाई आदि का छुमा हुमा नल का जल पीते हैं, तो फिर इन हिन्दू अस्पृश्यों का छुमा पानी पीने में क्या पाच है ! ऊंट के चमड़े से बनी हुई मशक का पानी भी तो हम पीते ही है। मला सोचिये तो, जिस को हम आज अछत कह कर दुतकारते हैं, कल को हो यदि वह ईसाई या मुसलमान हो जाय तो विद्यालयों में सब के साथ पढ़ता है और किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। रेलगाड़ी तथा दाम पर अछूत हमारे बगल में बैठते ही हैं। और उसमें हमें आपत्ति नहीं होती, तब उन्हें नौकरी देने में क्या ऐतराज हो सकता है ? भारत के अधिकांश प्रदेशों की व्यवस्थापिका सभाओं में चमार, भंगी आदि अन्त भाई सदस्य हैं। उनके साथ सब हिन्दू बिना अगर मगर के सहर्षे बैठते है। सच तो यह है कि प्रत्येक मनुष्य अछूत तो उस अवस्था में रहता है जब वह अशुचिपूर्ण हो । उदाहरणार्थ जब हम कोई अशुद्ध काम कर के आते हैं तो स्नानादि करने के पहले तक अछूत रहते हैं। स्वास्थ्य और विज्ञान की दष्टि से यह उचित भी है। अछूत तो तभी तक छूने योग्य नहीं है जबतक वह गंदा काम करे। उस के बाद नहा धो लेने पर वह शुद्ध और स्पृश्य हो जाता है। किन्तु मनुष्य समाज की अत्यावश्यक सेवा करने वालो जाति पर सदा के लिये अस्पृश्यता का कलङ्क लगाना महान पाप है। समयं की गति को देख कर यह बिलकुल अनावश्यक है। इस विषय में जैन समाज बहुत हो उदार है। जैन सिद्धांत तो यह है कि प्राणी मात्र की आत्मा झान, दर्शन चारित्रमयो है और निश्चय रूप से समान है। किसी भी मनुष्य को अपने से हीन या नोव समझने से, समझने वाले को मोहनीय कर्म का बंध होता है, और किसी भी जीव को उस के अधिकारों से वञ्चित करने से बा उस की स्वाधीनता में बाधा डालने से अन्तराय कर्म के बंध का हेतु होता है। इस दृष्टि से जैन धर्म मनुष्य मात्र में भेद भाव नहीं रखता। अब रही मन्दिर प्रवेश को बात। हमारे मन्दिरों के तीन विभाग हैं : (१) गर्भ गृह अर्थात् मूल गम्भारा (२) सभामण्डप और डमण्डप (३) बाहरी भाग मूल गंमार में स्नान कर के, शुद्ध वस्त्र धारण कर अनी तथा अन्य जातियों के निरामिशाषी भी जिनेन्द्र देव की पूजा के निमित्त जायें तो किसी को कोई आपत्ति न हो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी प्रकार सभामण्डप और रंगमण्डप में किसी भी जाति का मनुष्य क्यों न हो, यदि वह शुद्ध हो कर प्रभु भजन और वंदन के लिये आवे तो इस में भी किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ? बाहरी हिस्से में तो सदा से हर जाति के मनुष्य आया ही करते हैं। इस में तो छूत-अछूत का प्रश्न कभी उठा ही नहीं। किन्तु इन अछूत भाइयों का अन्य हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करने का आग्रह करना वास्तविक अर्थ रखता है। जैन मंदिरों में तो इन का जाना या जाने का आग्रह करना निरर्थक है। हां, जो अछूत जैन आचार-विचार ग्रहण कर इस सम्प्रदाय में आवे तो दूसरी बात है। ___ इस सम्मेलन में अन्यान्य उद्देश्यों के साथ साथ समाज को आर्थिक स्थिति सुधारने का विषय भी रखा गया है। वर्तमान काल में आर्थिक स्थिति चारो ओर शोचनीय हो रही है। जब तक समाज के बन्धुगण परस्पर ऐक्यभाव स्थापित कर के पूर्ण विश्वास से व्यवसाय क्षेत्र में अग्रसर न होंगे तब तक अपनी स्थिति के सुधरने की आशा नहीं है। आर्थिक उन्नति के सम्बन्ध में अथवा रोजगार या व्यवसाय के विषय में जातीय सम्मेलन के द्वारा नियम बनाना या प्रतिबन्ध स्थापित करना संभव नही है। जब आपस के संगठन से बल और विद्या प्रचार से ज्ञान की वृद्धि होगी और समाज से हर तरह की फिजूलखी दूर होगी उस समय हमारी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। परन्तु स्थिति सुधारने के लिये बैङ्क आदि कोई भी ऐसी सार्वजनिक संस्था खास एक समाज के लिये लाभदायक होना कठिन है। व्यवसाय का क्षेत्र विशाल है। यदि हम लोग अच्छी तरह सोच विचार कर सत्यता और परिश्रम से अपने धन और बुद्धि को इस ओर लगायेंगे तो अवश्य आर्थिक स्थिति में उन्नति होगी। सजनो! जातीय इतिहास प्रकाशित करना एक सराहनीय कार्य है, परन्तु ओसवाल जाति का इतिहास तैयार करना टेढ़ी खीर है। किसी जाति का इतिहास लिखने के लिये कलम उठाने पर उस के प्रारम्भिक इतिहास अर्थात् उत्पत्ति से ही लिखना होगा, पोछे परवत्तों इतिहास लिखा जायगा। अद्यावधि 'महाजन वंश मुक्तावली', 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा', 'जैन जाति महोदय' आदि कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इन में ओसवाल, श्रीमाल, पोरवाल, खंडेलवाल आदि न्यातो को उत्पत्ति का वर्णन है। इन के अतिरिक्त राजपूताने के तथा विशेष कर मारवाड़ के कुछ भाटों के यहां 'ओसवंश उत्पत्ति' आदि के कवित्तों का संग्रह मिलता है। इन लोगों के पास उन के गोत्रवार पूर्व पुरुषों की तालिका भी मिलती है। इन सबों में उत्पत्ति के विषय में जो कथा है, वह प्रामाणिक ज्ञात नहीं होती। ओशियां में जो मन्दिर प्रशस्ति सं० १०१३ की मिलती है, उस में और वहां के सचियाप माता के मन्दिर में सं० १२३६ का जो लेख वसमान है, उस में हमारे मोशवंश को उत्पत्ति का कोई उल्लेख नहीं है। जैन यतिओं के यहां जो पत्र मिले हैं, उनमें वीरात् ७० बर्षे ओशवंश उत्पत्ति लिखी मिलती है और कुल भाटों के कपित्तों में विक्रम संवत् २२२ है। परन्तु आज तक इस विषय की खोज में जो कुछ प्रमाण उपलब्ध हैं, उनसे ये दोनों ही भ्रमात्मक मालूम पड़ते हैं। वीर भगवान् के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६२ ] पश्चात् आचार्यों की पट्टावली में जो कुछ लिखा है, उस से, स्पष्ट है कि अन्तिम केवली जंबू स्वामी, जिन्हों ने महावीर स्वामी के पश्चात् ६४ वर्ष में मुक्ति प्राप्ति की थी, उनके शिष्य प्रभव स्वामी उस समय आचार्य थे और उन का स्वर्गवास बोरात् ७५ वर्ष में हुआ था। यदि ओशवंश की स्थापना उस समय हुई होती तो किसी न किसी ग्रन्थ में इस विषय का उल्लेख अवश्य मिलता। इस लिये इन सब कारणों से यह कल्पना हो सकती है कि ओसवालों को उत्पत्ति का इतिहास बिलकुल अन्धकार में है। पूर्वाचार्यों ने कुछ भविष्य सोच कर ही इस विषय की कोई सामग्री नहीं रखी है। परवर्ती यतिओं और कुल भाटों के यहां पाई जाने वाली सामग्री प्रामाणिक नहीं है। वे सब अधिकांश में प्रमाण-शून्य, पक्षपात युक्त और कल्पित हैं।। परिवर्ती इतिहास के विषय में प्राचीन लेख प्रशस्ति, तात्र शासन आदि में जहां जहां हमारे ओशवंश की ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख मिलता है, उस से प्रकट होता है कि हमारे समाज के लोगों ने धर्म और देश सेवा के लिये तन, मन, धन की अगणित आहुतियां दी हैं। इन सब का बहुत कुछ मसाला वर्तमान है। भारत के इतिहास की सामग्री के साथ हमारा सामाजिक इतिहास भी बहुत सा नष्ट हो गया है, परन्तु अब भी प्रयास करने से बहुत कुछ साधन मिलने की संभावना है। मेरे विवार से ऐसी दशा में वर्तमान शताब्दि की घटनाओं से ही अपनी जाति का इतिहास लिखना आरम्भ कर दें और पश्चात् पहले का इतिहास लिखा जाय । ज्यों ज्यों पूर्ववर्ती इतिहास की ओर अग्रसर होते जायंगे त्यों त्यों मार्ग साफ होता जायगा और आगे के साधन मिलने की कठिनाइयां कम होती जायगी। और थोड़े ही समय में एक अच्छा इतिहास बन जायगा। क्रमशः हमें उत्पत्ति के समय तक पहुंचने का प्रयास करना होगा। इस प्रणाली से कार्य करने में सफलता मिलने की आशा है। दिल्ली के हमारे श्रीमाल भाई बाबू उमराव सिंहजी टांक, वकोल साहब ने कुछ दिन पूर्व Oswal & Oswal Family नामक एक छोटी पुस्तिका का एक खण्ड और Jain Historical Studies प्रकाशित किया था। तत्पश्चात् उनकी और कोई पुस्तक शायद नहीं छपी है, परन्तु और भी बहुत पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिन से समाज के इतिहास और महत्ता पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। अपने ओसवाल समाज में बहुत से शूर वीर कर्मठ नीतिज्ञ महापुरुष हो गये हैं। भामा शाह, कर्मचन्द वच्छावत, थाहरू शाह भनशाली, रत्नसिंह भण्डारी, अमरचन्द सुराणा, इन्द्रराज सिंघी आदि महा पुरुष सदा चिरस्मरणीय रहेंगे। इसी अजमेर नगरी में ड्रमराज सिंघी ने अपने प्राणों की आहुति देकर जाति और समाज के गौरव की रक्षा की थी। मूता नैनसी प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ 'ख्यात' के रचयिता भी ओसवाल थे। "गोरा बादल की कथा" आदि के कर्ता जटमल नाहर आदि साहित्यिकों की कमी नहीं है। 'प्रेम रत्न' सरीखी रचनायें कर के रत्न कुवर ऐसी विदुषियों ने भी हमारे समाज का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६३ मुख उज्ज्वल किया है। कला के क्षेत्र में भी, इस आधुनिक काल का संसार हमारे आबू के मन्दिरों को देख दांतों तले उंगली दबाता है। इसी प्रकार अपने बहुत से रत्नों का इतिहास अन्धकार में पड़ा हुआ है। खोज करने पर ऐसी बहुत कुछ ऐतिहासिक और साहित्यिक सामग्री उपलब्ध होगी। अपनी जाति की डाइरेकरी तैयार करना भी एक प्रकार से इतिहास का एक अङ्ग है। इस सम्मेलन के सम्बन्ध में कुछ शङ्काओं के समाधान का जो पर्चा प्रकाशित हुआ है, उस में ऐसी कार्यों की उपयोगिता स्पष्ट रूप से समझायी गयी है। आशा है कि आप लोग उन विचारों से सहमत होंगे। डाइरेकृरी बनाना अत्यावश्यक है। समाज की स्थिति को सुगमता से जानने के लिये इसके सिवा और कोई सुलभ साधन नहीं हो सकता। एक बार प्रकाशित होने से ही इस की उपयोगिता स्पष्ट दिखाई पड़ेगी। आज से ४२ वर्ष पूर्व नासिक से हमारे एक ओसवाल बन्धु बाबू नेनसुख जी केवलचन्दाणी निमाणी साहबने 'ओसवाल लोकांरो आज कालरी स्थिति' (The Present State of the Oswal ) नामक एक निबन्ध पुस्तकाकार में प्रकाशित किया था। वह पुस्तिका मेरे पूज्य पिताजी साहेब के पास भी आई थी। यद्यपि वह पुस्तक मारवाड़ी भाषा में अर्थात् डिंगल हिन्दी में लिखी हुई है, परन्तु उस में लेखक ने अपने विस्तृत अनुभव से अपने समाज की स्थिति पर प्रकाश डाला है और अन्त में जो विचार प्रकट किया है, वह अत्यन्त महत्व पूर्ण है। यदि उन का विचार कार्य रूप में परिणत होता तो आज अपना समाज बहुत कुछ उन्नति पथ में अग्रसर हो चुका होता। आप लोगों के सम्मुख उस निबन्ध की मुखपीठिका और अन्त का कुछ अंश यहां उपस्थित करता हूं: "हर एक चीज ने वारलो और मायलो इसा दोय अङ्ग हुवे हे उण प्रमाणेईज आपणे स्थिति रा पिण वारलो ओर मायलो इसा दोय अङ्ग जुदा जुदा है, उणरो जुदो जुदो विवार करसां। वारले अङ्गरो विचार करता तो लोक सुखी, पैसावाला. दानसूर, खरचू इसा दोसे कारण चारुकानी मोटी मोटी बातां देखण में ओर सुणन में आवे, कोई ठिकाणे पांच सो एक रुप्यासू बींटी आई, कोई ठिकाणे तो एक हजार एक रुप्यासू आई। कठई चार हजार की पेरावणी दिरीजी, तो कठेई दस हजार की। कठई शेवगां ने पांच सो एक रुप्या त्यागरा, तो कठेई एक हजार एक, कठेई दोय परगणारो कारज, तो कठेई पांच परगणारो, कठई शेवगा ने दोय दोय रुप्या दिखणा, तो कठडे दस दस रुप्या, कठेई सवा सो रुप्यासू जवार, तो कठे तीन सो रुप्यासू, कोई ठिकाणे एक सो एक रुप्यासू पगे लगाइ, तो कोई ठिकाणे तीन सो एक रुप्यासू, एक जिणारे अठे पांच पकवानारा जीमण, तो दूजारे घेवर फोणी शिवाय में, गेणारो तो अन्तइज नहीं, इस्त्राजे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६४ ] वाली बातांमे तो कोई कोई बात कमतीपणारी निखर आवे नहीं, जिनस आपणा लोक पैसा वाला, ओर सुखी दीसे, पिण बारलो एक अङ्ग देखनेइज, कोई बात नक्की करणी वाजवी नहीं, मायलो अङ्ग देख्या बिना खरी स्थिति मालुम पडली नहीं जिरो अठे थोडो विचार करसां । मायले अडरे विचार में उपरली सारली बातां उलटी निजर अम्बे, ओर लोक, दुखी, करज में डूबोडा कायरे काम ने कंटालयोडा इसाईज घणा दीसे, कारण रुजगार में चारुकानी पैदा आगले विधे कमती हुय गई खरच दिन दिन देखा देखी बध गया, जिणसू लोकांरे कन्ने पूंजी में तन्त और तरावट रही नहीं, ऊ ऐब छिपावणारे वाक्खे थोथी कीर्ति मिलावणारी इच्छा बध गई, वा थोथी कीर्ति सैंकड़ों कुटुम्बरो नास कर रही है" इत्यादि अन्त में कामरे वास्ते एक मोटी सभा स्थापन हुई चहिजे, उण सभा में न्याय न्यारा गांवरा दुश्यार और अनुभवो लोक मेंबर नेम्या चहिजे, वा सभा हर एक जिल्हारे गांव में भरणी चहिजे, ओर हर एक गांवरे और खेडारे पंचारे तरफ एक एक मुक्त्यार उण सभा में आवणो चहिजे, उण सभा में बहुमतसू जिका जिका ठेराव हुवे, वे ठेराव सारा जिणा कबूल करने उण प्रमाणे चालीयो चहिजे, उण सभारे खरच सारु, हर एक गांव वाला ओर खेडा वाला आप आपरे ताकद माफक वर्गणी खुशीसू गोला करने मदत भेजनी चाहिने, इस्त्राजे काम चाल्यो तो थोड़ा दिना में आपना लोकांरो सारी बांता में सुधारो इसी इण में बिलकुल संसो नहीं ।" स्वागतसमिति की ओर से आप की सेवा में कई विज्ञप्तियां पहुंची होंगी । उनके अवलोकन से आप इस सम्मेलन के उद्देश्य से भलीभांति परिचित हो गये होंगे । उसकी सफलता के निमित्त एक ऐसी संस्था का स्थापित होना आवश्यक है जो समस्त समाज में संगठन की रुचि पैदा करे । एक ही वर्ग की उन्नति को अपना लक्ष्य बनाने पर संगठन में उतनी सफलता प्राप्त नहीं 'सकती जितनी आशा की जाती है। वर्ग की सीमा जितनी विस्तृत होगो, संगठन में उतनी ही आसानी होगी। संस्था का नाम ऐसा होना चाहिये जिस में किसी भी वर्ग को संस्था के साथ सहानुभूति दिखाने में हिचकिचाहट न हो। ऐसे सम्मेलन यदि समय समय पर होते रहेंगे तो उन से में उत्साह उत्पन्न होता रहेगा और हम क्रमशः अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करेंगे। संस्था की ओर से एक पत्र का प्रकाशित होना भी जरूरी है। पत्र से दूर दूर देशों में रहने वालों को भी संस्था के कार्यों की जानकारी रहेगी और यदि आप लोग बराबर उन्नति दिखाते रहेंगे तो मुझे पूर्ण आशा है कि संस्था को हर एक तरफ से सब प्रकार की सहायता मिलती रहेगी। समाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज से पचीस वष पूर्व सन् १९०७ में मेरे स्वर्गीय पूज्य पिताजी ने श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स के पांचवें अधिवेशन के सभापति का पद ग्रहण किया था। यह अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ था और उस में पर्याप्त सफलता भी मिली थी। जैनमदद-फण्ड की स्थापना उसी अधिवेशन का परिणाम है। इस स्थायी फण्ड की सहायता से आज तक जैन विद्यार्थीगण लाभ उठा रहे हैं। परन्तु समाज की आवश्यकतामों को देखते हुए केवल यही फण्ड पर्याप्त नहीं है। इस प्रकार के कई फण्ड होने चाहिये, जिन से प्रान्त प्रान्त में और स्थान स्थान में हमारे समाज के असमर्थ छात्र विद्यार्जन से वञ्चित न रहने पावें। सम्मेलन के उद्देश्यों पर ये सब विवार आप महाशयों के सम्मुख है। अब आप लोगों का कर्तव्य है कि उन्हें अच्छी तरह मनन कर के उचित प्रस्ताव पास करें और उन्हें कार्य रूप में परिणत करें तथा कार्यकर्ताओं को सब प्रकार की सहायता दें। समय सयय पर और स्थान स्थान पर इस प्रकार के सम्मेलनों का होना. आव. श्यक है, जो बीच की कार्यवाही का निरीक्षण कर के उसे अग्रसर करते रहें। उद्देश्यों को सफल बनाने के लिये जिस प्रकार की कमिटी, सब कमिटी आदि आवश्यक हों, आप लोग उन का चुनाव करें। हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि समाज की जो पञ्चायते, सभा समितियां आदि वर्तमान हैं, उन्हें उखाड़ फेका जाय या ऊन का विरोध किया जाय, वरन हमारा लक्ष्य यह होना चाहिये कि अपनी समवेत शक्ति और संगठन से उन सषों को और भी पुष्ट किया जाय। उन की बुराइयों का समयानुकूल सुधार करें और उन की ओर समाज को जाग्रत रखें। गांव की पञ्चायतों तथा स्थान स्थान पर नवयुवकों अथवा वयोवृद्ध सजनों ने जो मण्डल, समितियाँ, संस्था आदि स्थापित कर रखी है तथा समाज की भलाई के लिये और जो कुछ कार्य चल रहे हैं उन में और भी स्फूर्ति पदा की.जाये और जिन जिन कारणों से उन्नति में बाधा पहुंचती है, उन्हें मिटा कर समाज को उन्नति की ओर बढ़ाया जाय। इस से पहले भी हमारी जातीय महासभा करने के लिये कई बार प्रयत्न हो चुके हैं और कई अधिवेशन भी हो चुके हैं। परन्तु खेद है कि वे प्रयत्न चिरस्थायी व हो सके। इस असफलता के अनेक कारण हैं। मैं महानुभावों से प्रार्थना करूंगा कि आप इन कारणों पर गम्भीरता पूर्वक विवार करें और पहले की असफलताओं के अनुभवों से लाभ उठाकर, इस महासभा की नींव को स्थायी और दूढ़ आधार पर स्थापित करें। पहले की असफलताओं से निराश होने की कोई बात नहीं है। असफलता हमारे अनुभव को बढ़ाती है, हमारी बुद्धि और सङ्कल्प को अधिक दूढ़ करती है और उस से हमारी भावी सफलता और भी अधिक जाज्वल्यमान हो उठती है। इस सम्बन्ध में मैं एक बात निवेदन करूंगा कि हमारे कार्य कर्ताओं को एक साथ ही अनेक योजनाओं ( स्कीमों) को हाथ में न लेना चाहिये। उस से हमारी शक्ति 10 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६६ ] अनेक भागों में विभाजित हो जाती है और किसी कार्य में पूरी सफलता नहीं मिलती । महासभा की प्रारम्भिक अवस्था में यह श्रेष्ठतर होगा कि हम लोग एक दो बातों को ले कर उन पर ही अपनी समस्त शक्ति केन्द्रीभूत कर दें और उन में सफलता प्राप्त होने पर आगे बढ़ें। यह ढङ्ग अधिक व्यावहारिक और उपयोगी सिद्ध होगा । अन्त में मैं समाज के नवयुवकों से प्रार्थना करूंगा कि वे इस जातीय महानुष्ठान को सफल बनावें । हमारे वयोवृद्ध भाइयों की परिपक्क बुद्धि, उनका विस्तृत अनुभव और ज्ञान हमारा सहायक होगा, हमारा पथ प्रदर्शक बनेगा, परन्तु वास्तविक कार्य केवल नवयुवकों के द्वारा ही सम्पन्न होगा। प्रत्येक जाति में, प्रत्येक सम्प्रदाय में, प्रत्येक समाज में और प्रत्येक देश में असली और ठोस कार्य नवयुवक ही करते आये हैं । नवयुवको! आप ही हमारी जाति और देश के भावी नेता हैं। हमारा समस्त उज्ज्वल भविष्य आप के ही दृढ़ कन्धों पर है। भगवान् महावीर ने जिस समय अपने दिव्य सन्देश से पृथ्वी को आलोकित किया था, उस समय उन की आयु क्या थी? जिस समय उन्हों ने अपने निर्मल धर्म का प्रचार आरम्भ किया था, उस समय रेल नहीं थी, तार नहीं थे, मोट नहीं थीं, वायुयान नहीं थे, छापाखाने और समाचार-पत्र भी नहीं थे। उस समय बङ्गाल से अजमेर तक पहुंचने में वर्षों लग जाते थे । इतनी सब कठिनाइयां होने पर भी उन्हों ने सौराष्ट्र से लेकर अङ्ग तक और पञ्जाब से लेकर सुदूर कलिंग और दक्षिण अनार्य देश तक समस्त भारतवर्ष को अपने दिव्य आलोक से आलोकित कर दिया था, और ऐसा आलोकित कर दिया था कि आज तक उन के प्रकाश से हमारे अन्तःकरण प्रकाशित हैं; उस प्रकाश को देख कर आज भी विदेशी विद्वानों की आंखें चकाचौंध में पड़ जाती हैं । अतः आजकल जब वायुयान के द्वारा केवल पन्द्रह घण्टे में कलकत्ते से अजमेर पहुंचा जा सकता है, जब बिजली के द्वारा केवल कुछ क्षणों में यहां का समाचार पाताल लोक अमेरिका तक पहुंच जाता है, जब हमें अन्य सहस्रों सुविधायें और साधन प्राप्त हैं, तब क्या आप अपनी जाति का संगठन नहीं कर सकते, क्या आप अपने समाज को अतीत के उस गौरव पूर्ण पद पर प्रतिष्ठित नहीं कर सकते ? कर सकते हैं अवश्य ही कर सकते हैं। अतः मैं एक बार पुनः अपने नवयुवकों और देवियों से अपील करता हूं कि आप भगवान का नाम लेकर दृढ़ सङ्कल्प से इधर ध्यान दें, ऋद्धि सिद्धियां आप की चेरी होंगी, सफलता आप की बाट जोह रही है । ॥ ॐ शान्तिः ॥ अजमेर सं० १९८६, कार्तिक यदि १ सन् १९३२ ई० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पूरणचंद नाहर सभापति, प्रथम अधिवेशन श्रीअखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-ग विषय निर्धारिणी समिति के सदस्यों की तालिका अजमेर . श्रीयुत गाढ़मलजी लोढ़ा , कानमलजी लोढ़ा ,, पन्नालालजी लोढ़ा , सुगनवन्दजी नाहर , सोभागमलजी मेहता , रूपकरणजी मेहता रूपचन्दजी मेहता शिवचन्दजी धाडीवाल हरीचन्दजी धाडीवाल रामलालजी लूणोया , जीतमलजी लूणीया , धनराजजी लूणीया , हमीरंमलजो लूणीया " माणकचन्दजी बांठिया , अक्षयसिंहजी डांगी राय साहब कृष्णलालजीवाफणा श्रीयुत चन्दरसिंहजी सिंघी , मीललालजी चोपड़ा ,, घेवरचन्दजो चोपड़ा , हरखचन्दजी गोलेछा जेठमलजी मुथा धनकरणजी चोरडिया . दलेलसिंहजी कोठारी मोतीसिंहजी कोठारी .. । मदनचन्दजी सेठो । - कल्याणमलजी वैद्य आगरा श्रीयुत जवाहरलालजी लोढ़ा , चान्दमलजी चोरडिया , दयालचन्दजी चोरडिया , रामचन्दजी लूकड़ , दुर्गाप्रसादजी नाहर , सोभागचन्दजी .. . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बयपुर श्रीयुत हिम्मतसिंहजी ।। रतनलालजी मेहता श्रीयुत पूरणचन्दजी नाहर विजयसिंहजी नाहर , पूरणचन्दजी सामसुखा । ६८ ] जयपुर श्रीयुत गुलाबचन्दजी ढड्डा , सिद्धराजजी ढड्डा , मंगलचन्दजी मेहता , उमरावमलजी सुखलेचा , कपूरचन्दजी दूसल , भवरलालजी भूसल , दुर्लभजी त्रीभुवनजी जोधपुर - श्रीयुत संपतराजजी भंडारी . कुशलसिंहजी कोठारी टाड़गढ़ श्रीयुत गुलाषचन्दजी मुणोत ठाठोती किसनगढ़ श्रीयुत धनरूपमलजी मुणोत रणजीतसिंहजी मुणोत , धोकलसिंहजी मुणोत , इन्दरचन्दजी दरड़ा . रतनचन्दजी पारख गणपतसिंहजी वाफणा , माणकचन्दजी भड़मेचा जसफरणजी कोठारी मोतीलालजो जम्मड़ सुरतसिंहजी मेहता ., मदनसिंहजी मेहता , अमरचन्दजी भण्डारी छीतरमलजी चोरडिया कुकवर श्रीयुत किशनलालजी पटवा श्रीयुत मांगीलालजी चौधरी खीचन्द श्रीयुत शंकरलालजी गोलेछा गुलाबपुरा श्रीयुत कस्तूरचन्दजी नाहर दुर्ग श्रीयुत गजमलजी संचेती . जैसिंहजी भड़गतिया - श्रीयुत भीमराजजी फतेपुरवाले श्रीयुत गोकुलचन्दजी नाहर - आनन्दराजजो सुराणा श्रीयुत हंसराजजी दशलहरा देवगढ़ श्रीयुत सहसमलजी संचेती श्रीयुत लालचंदजी कटारा धामन गांव श्रीयुत सुगनचन्दजी लुणावत नीमच सीटी श्रीयुत नथमलजी चोरडिया - , उमरावसिंहजी चौधरी परतापगढ़ - श्रीयुत आनन्दीलालजी रातडीया धामक गुडीया गणपतरायजी जैन घाणेराव श्रीयुत रतनचन्दजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचपहाड़ पीपलोंदा पोपल्या फलोदी बरकाणा बिजोवा श्रीयुत नथमलजी नागोथा श्रीयुत भोपालसिंहजी राठोड़ श्रीयुत हीरालालजी भंडारी श्रीयुत फुलचन्दजी भावक अमरचन्दजी कोचर बनूड़ श्रीयुत विहारीलालजी जैन बहेड़ बम्बई प्रांत, सि० पी०, वेरार प्रांत श्रीयुत कुन्दनमलजी फिरोदिया पुनमचन्दजी नाहटा पन्नालालजो बम्ब भैरूलालजी बम्ब मोतीलालजी सुराणा बंशीलालजी चोरडीया सोभागचन्दजी रांका बिहार बीकानेर 2 » ވ " 29 " " " " » अमृतलालजी जवेरी मोतोदासजी जसकरणजी जवेरी किशनदासजी मुथा मोतीलालजी मुथा चुन्नीलालजी मुथा दीपचन्दजी मुथा [ ६६ ] श्रीयुत भभूतमलजी श्रीयुत प्रेमचन्दजी सोलंखी श्रीयुत इन्द्रचन्दजी सुचन्ती श्रीयुत फते चन्दजी सेठीया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat बेतुल ब्यावर भीम भोपाल मणासा मंडोरा मिनाय श्रीयुत दीपचन्दजी गोठी श्रीयुत अमोलख चन्दजी सुराणा सहसमहजी वोहरा हेमराजजी बरड़ा अमरचन्दजी नाहटा चिमनसिंहजी मेहसा मेषाणा रायपुर ” » रूपनगर "9 想 " " " श्रीयुत रामलालजी डोसी जफरमलजी लोढ़ा श्रीयुत रतनलालजी पामेवा श्रीयुत करणचन्दजी खेमराजजी श्रीयुत लालचन्दजी मेहता भैरूलालजी हिंगड़ " श्रीयुत सीतारामजी दख तुलारामजी लोढ़ा तुलारामजी गुडलिया " मूलचन्दजी मोदी सहस मलजी .. 2 जामलसिंहजी मेड़तवाल कालुरामजी कांकरिया श्रीयुत सुखराजजी डागा श्रीयुत अमोल चन्दजी मुधा " श्रीयुत बालचन्दजी भंडावत रामसिंहजी दरड़ा www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ] . [७ लाडन श्रीयुत धनराजजी वैदमुवा शाहपुरा श्रीयुत सरदारमलजी छाजेड़ , रुगनाथमलजी चोरडीया उंकारसिंहजी लोढ़ा , मनोहरसिंहजो डांगी , मदनसिंहजी चंडालिया सिकंदरावाद __ श्रीयुत जवाहरलालजी नाहटा सीतामऊ . . श्रीयुत परतावसिंहजी , इन्दरचन्दजी बाफणा सुमेरपुर श्रीयुत सुकनराजजो वकील सेवाड़ी ___ श्रीयुत उमेदमलजो रिखवदासजी सोजत श्रीयुत हीरालालजी भंडारी हरमाडा श्रीयुत दौलतसिंहजी मेहता हाला श्रीयुत कस्तुरचंदजी ___" मेहरचन्दजी हैदरावाद श्रीयुत इन्दरमलजी लूणीया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - परिशिष्ट-घ आय-व्यय का हिसाब आय का विवरण व्यय का विवरण ३६६३MB | सहायता खाते + २०८०) स्वागत सदस्य शुक्ल खाते ११५४) प्रतिनिधि ३६५) दर्शक विविध ७३०१) कुल जोड़ १९६६॥5॥ प्रचार राहा खर्च खाते ३६) मकान किराया " ३०० डाक, तार विभाग " १४१४ रोशनी " ३३६॥ वेतन पुरस्कार १३५४) स्टेसनरी फर्निचर ८६४] प्रेस विभाग ३०) सङ्गीत " ११२३४ पंडाल " ५२१॥ स्वागत" १८२] भाषण छपाई. १२६४। फुटकर खर्च ५७६६ १५०४४) मौजूद रकम .. ३४३० सभापति के पास ११६१) मन्त्री के पास ७३०१) कुल जोड़ * व्यय का हिसाब ता० २५.२३२ से २१-११-३२ तक का है। + सहायकों की तालिका पृ० ७२ में देखिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायकों की नामावली कलकत्ता जामनेर धामनगांव नागपुर हैदराबाद (दक्षिण) कचरोद सिकन्दराबाद बेतूल जामनेर कलकत्ता बुलडाना (बेरार) किशनगढ़ ५०१) श्री पूरणचन्दजी नाहर ३५१) श्रीमती पानकंवरजी ललवांनी ३५) " भवर कंवरजी लुनावत " मानकंवरजी चोरडीया २०१३ दीवान बाहादुर थानमलजी इन्द्रचन्दजी लुनिया १०१) श्रीमती मानकंवरजी १०१) " गुमानकंवरजी कोचर १०१) " पानकंवरजी कोचर १०१) श्री जोरावरमलजी मोतीलालजी " लक्ष्मीचंदजी दीपचंदजी गोठी "राजमलजी ललवानी " बहादुरसिंहजी सिंधी " लादूरामजी मोमराजजी देशलरा " मदनसिंहजी नारायणसिंहजी "सुगनचंदजी "दीपचंदजी गोठी . राय बहादुर सिरेमलजी बाफणा ४१) श्री चम्पालालजी वैद ४) " इंद्रचंदजी, ३५॥ " सोभागमलजी मेहता - " लालभाई कस्तूरभाई " पुन्नीलालजी बोरड़ वा कस्तूरचंदजी पारख " कुन्ननमलजी फिरोदिया " रामलालजी लूनियां " तिलोकचंदजी सुराणा " रघुनाथमलजी " फौजमलजी कोठारी २४ " गंभीरमलजी अभयमलजी सांड २१) "चौथमलजी जयचंदजी धामनगांव बेतूल aaaaaaaaaaaaaaaaaaa इन्दोर जयपुर हैदराबाद अजमेर अहमदाबाद दाला (सिंध) अहमदनगर अजमेर कलकत्ता हैदराबाद (दक्षिण) बासवाड़ा अजमेर कलकत्ता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजमर iPits आगरा किशनगढ़ अंजमेर इन्दार साजत आगरा कलकत्ता श्री सुगनचंदजी नाहर १४) , मिट्ठन सिंहजी दूगड़ १४) , तेजकरणजी चांदमलजी १४) , इन्दरचंदजी बरडिया १९) , लक्ष्मीचंदजी बोथरा १७॥ , राय साहब कृष्णलालजी बाफणा गलजी भंडारो १६) , संपतराजजी भंडारी १६) , अचलसिंहजीकी धर्मपत्नी , टीकमचन्दजी डागा , मोहनलालजी कटोलिया , लूणकरणजी पटावरी , अमरचंदजी कोचर , पूनमचंदजी प्रतापचंदजी कोचर , रघुनाथसिंहजी चोरडिया , सरदारमलजी छाजेड़ , मोतीलालजी बोहरा , लक्ष्मीपतसिंहजी कोठारी , फूलचंदजी झावक , गुलाबचंदजी गोलेछा , सिधराजजी , ओंकारमलजी लोढ़ा , समस्त ओसवाल समाज " , , पंच , पंच ओसवाल शाहपुरा जबलपुर कलकत्ता फलोदी 02220020200२२२२२२panaanaana शाहपुरा भोपाल कोरडी नीमच भीलाड़ा अजमेर जोधपुर , कस्तूरमलजी बांठिया , नवरतनमलजी भंडावत , किशनसिंहजी मेहता , नेमचंदजो लुकड़ , भूपतसिंहजी दूगड़, एम० एल० ए० , हनुमानदासजी लक्ष्मीचंदजी कर्णावट , दयालचंदजी जौहरी ७), 'शानिमलजी केशरीमलजी , भगवानदासजी रिखबदासजी आगरा अजीमगंज कलकत्ता आगरा 11 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७) श्री पीरचंदजी पूलचन्दजी वैद जोरावरमलजी वैद केसरीचंदजी दानचंदजी गनपतसिंहजी डाक्टर अक्षयसिंहजो डांगी पन्नालालजी लोढा घेवरचंदजी चोपड़ा बीबी कीबोভীजे जे जे जे जे जे जे जी जी जी जी जी जीजेजेजेভীতীভীगोली को को को ীশীको को ५) ५) ५) ४) ३) ३) ३) ૩ ຍ ३) २२ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ " " 2 "" " 99 » सुधार मंडल " 92 "" लादुरामजी जौहरी कानमलजी सिंघी " आईदानजी हीराचंदजी कोठारी फतेचंदजी रणछोड़दासजी . पूरणचंदजी सामसुखा धनराजजी वैद हुक्मीचंदजी बाफणा सुगनराजजी सुराना रामचंदजी मोदी जवेरचंदजी बाफणा जैरसी ताराचंदजी अचलमलजी मोदी मदनसिंहजो मेहता चंदन सिंहजी सिंघी छगनमलजी की धर्मपत्ती मगनमलजीकी " प्रतापचंदजी मुहताकी धर्मपत्नी [ ७ ] पृथ्वीराजजी खेमराजजी मनोहर सिंहजी डांगी सुमेरचंदजी मेहता दलपतसिंहजी मेहता बनारसीदासजी काशीप्रसादजी. मुनालालजी सिद्धमलजी हमीरमलजी छगनमलजी बेनीप्रसादजी जेठमलजी नागरचंदजी कोठारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat सिपरी कलकत्ता कोटा सोपट अजमेर २.२ २ इन्दोर आगरा कलकत्ता खटोल-लाडनू सिरोही " 79 "1 "" रतलाम साहिरा " अजमेर यां बादनबाड़ा विलोवा खुडाला शाहपुरा जोधपुर देवगढ़ बनारस सिरोही लश्कर आगरा " www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई ดอกอออออออออ [ ७१ ] ३) श्री कल्याणदासजी कपूरचंदजी आगरा ३) , खेमराजजी बोहरा २) , मोहनसिंहजी बुलिया शाहपुरा २) , जगमोहनलालजी बुलिया , फतेसिंहजी चोरडिया २), मनोहरसिंहजी चंडालिया , नंदरामजी खोड़ीदासजी कोटा , अनराजजी संपतराजजी , सागरमलजी लछमनदासजी बाड़मेर , हस्तीमलजो मांगीलालजी , छोगलालजी रूपलालजी भिलवाड़ा , बनारसीदासजी रिखभचन्दजी लखनऊ २) ,सुमेरमलजी सुराणा कलकत्ता २) , कुननमलजी पोखरणा किशनगढ़ , हजारी मलजी दलाल सिरोही २) , अमरचंदजी नाहर व्यावर २) , शक्तिसिंहजी कोठारी अजमेर २) , वृद्धिचंदजी २) श्रीमति चंड कंवरजी लोढ़ा ४७) निम्नलिखित प्रत्येक सजनोंने रु० १) की सहायता दी है :अजमेर श्री बालाबक्सजी झालोरो, जयपुर , हरिचंदजी धाड़ेवाल, श्री सिद्धराजजी ढड्डा, , मानिकचन्दजी सोनी ,, उमरावचन्दजी मोहता , राजमलली सुराणा जोधपुर - , प्यारेलालजी सोनी श्री मिट्ठालालजी मिश्रीलालजी, उदयपुर देवगढ़ श्री सोभागसिंहजी दूगड़, श्री हस्तिमलजी डागा , रतनलालजी मेहता धरमादा कदवास श्री नेमिचन्दजी बम्ब, श्री घिसूलालजी सुराणा, नसिराबाद कुकड़ेश्वर श्री ताराचन्दजो चोपड़ा, श्री किशनलालजी पटवा बाड़मेर , केशरीमलजो जविया श्री भीमराजजी भगवानदासजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यावर [76 ] অনাৰ लखनऊ श्री केशवलालजी सिवलालजो श्री रिखंबदासजी रतनचन्दजी बनेरी " हींगलालजी चुन्नीलालजी, श्री चंडूसिंह भंडारी " मुलाबचंदजी सिताबचंदजी, " फ्लचंदजी रूपचन्दजी . श्री मेगालालजी मणिलालजी, __" इन्दरचन्दजी मानिकचन्दजी लालचन्दजी अमरवन्दजी खिऊसरा " सुगनचन्दजो सरूपचन्दजी विम्मन सिंहजो . लश्कर (ग्वालियर) भिलवाड़ा श्री सुगनचंदजी सुचंती . श्री सुजानसिंहजी बरडिया " विजयमलजी सिंघो मकराना " वृद्धिचंदजी मानिकचंदजी श्री संपतराजजी भंडारी. " धाबूलालजी चोपड़ा मनासर शाहपुरा श्री रतनलालजी पामेवा, श्री मोहनसिंहजी छाजेड़, मांउलगढ़ सरवार श्री देवीलालजी मारु श्री मोतीलालजी चोरडिया, मिनाव सिरोही श्री गोंदालालजी भेरूलालजी धींगड़, श्री समरथमलजों सिंघी, पुष्कर " भगवान दासजो मक्खनदासजो, श्री कुन्दनलालजी लोढ़ा " मीरुलालजी चोपड़ाकी माताश्री, ,, धनराजजी तातेड़ " हीरालालजो भंडारीकी पत्नी, शिवराजजी पोरवार, रमा देवगढ़ // मुखीलालजी बरड़िया, भरतपुर S) गुमनाम फुटकर - 3663 POWER Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com