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[ ६३ मुख उज्ज्वल किया है। कला के क्षेत्र में भी, इस आधुनिक काल का संसार हमारे आबू के मन्दिरों को देख दांतों तले उंगली दबाता है। इसी प्रकार अपने बहुत से रत्नों का इतिहास अन्धकार में पड़ा हुआ है। खोज करने पर ऐसी बहुत कुछ ऐतिहासिक और साहित्यिक सामग्री उपलब्ध होगी।
अपनी जाति की डाइरेकरी तैयार करना भी एक प्रकार से इतिहास का एक अङ्ग है। इस सम्मेलन के सम्बन्ध में कुछ शङ्काओं के समाधान का जो पर्चा प्रकाशित हुआ है, उस में ऐसी कार्यों की उपयोगिता स्पष्ट रूप से समझायी गयी है। आशा है कि आप लोग उन विचारों से सहमत होंगे। डाइरेकृरी बनाना अत्यावश्यक है। समाज की स्थिति को सुगमता से जानने के लिये इसके सिवा और कोई सुलभ साधन नहीं हो सकता। एक बार प्रकाशित होने से ही इस की उपयोगिता स्पष्ट दिखाई पड़ेगी।
आज से ४२ वर्ष पूर्व नासिक से हमारे एक ओसवाल बन्धु बाबू नेनसुख जी केवलचन्दाणी निमाणी साहबने 'ओसवाल लोकांरो आज कालरी स्थिति' (The Present State of the Oswal ) नामक एक निबन्ध पुस्तकाकार में प्रकाशित किया था। वह पुस्तिका मेरे पूज्य पिताजी साहेब के पास भी आई थी। यद्यपि वह पुस्तक मारवाड़ी भाषा में अर्थात् डिंगल हिन्दी में लिखी हुई है, परन्तु उस में लेखक ने अपने विस्तृत अनुभव से अपने समाज की स्थिति पर प्रकाश डाला है और अन्त में जो विचार प्रकट किया है, वह अत्यन्त महत्व पूर्ण है। यदि उन का विचार कार्य रूप में परिणत होता तो आज अपना समाज बहुत कुछ उन्नति पथ में अग्रसर हो चुका होता। आप लोगों के सम्मुख उस निबन्ध की मुखपीठिका और अन्त का कुछ अंश यहां उपस्थित करता हूं:
"हर एक चीज ने वारलो और मायलो इसा दोय अङ्ग हुवे हे उण प्रमाणेईज आपणे स्थिति रा पिण वारलो ओर मायलो इसा दोय अङ्ग जुदा जुदा है, उणरो जुदो जुदो विवार करसां।
वारले अङ्गरो विचार करता तो लोक सुखी, पैसावाला. दानसूर, खरचू इसा दोसे कारण चारुकानी मोटी मोटी बातां देखण में ओर सुणन में आवे, कोई ठिकाणे पांच सो एक रुप्यासू बींटी आई, कोई ठिकाणे तो एक हजार एक रुप्यासू आई। कठई चार हजार की पेरावणी दिरीजी, तो कठेई दस हजार की। कठई शेवगां ने पांच सो एक रुप्या त्यागरा, तो कठेई एक हजार एक, कठेई दोय परगणारो कारज, तो कठेई पांच परगणारो, कठई शेवगा ने दोय दोय रुप्या दिखणा, तो कठडे दस दस रुप्या, कठेई सवा सो रुप्यासू जवार, तो कठे तीन सो रुप्यासू, कोई ठिकाणे एक सो एक रुप्यासू पगे लगाइ, तो कोई ठिकाणे तीन सो एक रुप्यासू, एक जिणारे अठे पांच पकवानारा जीमण, तो दूजारे घेवर फोणी शिवाय में, गेणारो तो अन्तइज नहीं, इस्त्राजे
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