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________________ [ ६२ ] पश्चात् आचार्यों की पट्टावली में जो कुछ लिखा है, उस से, स्पष्ट है कि अन्तिम केवली जंबू स्वामी, जिन्हों ने महावीर स्वामी के पश्चात् ६४ वर्ष में मुक्ति प्राप्ति की थी, उनके शिष्य प्रभव स्वामी उस समय आचार्य थे और उन का स्वर्गवास बोरात् ७५ वर्ष में हुआ था। यदि ओशवंश की स्थापना उस समय हुई होती तो किसी न किसी ग्रन्थ में इस विषय का उल्लेख अवश्य मिलता। इस लिये इन सब कारणों से यह कल्पना हो सकती है कि ओसवालों को उत्पत्ति का इतिहास बिलकुल अन्धकार में है। पूर्वाचार्यों ने कुछ भविष्य सोच कर ही इस विषय की कोई सामग्री नहीं रखी है। परवर्ती यतिओं और कुल भाटों के यहां पाई जाने वाली सामग्री प्रामाणिक नहीं है। वे सब अधिकांश में प्रमाण-शून्य, पक्षपात युक्त और कल्पित हैं।। परिवर्ती इतिहास के विषय में प्राचीन लेख प्रशस्ति, तात्र शासन आदि में जहां जहां हमारे ओशवंश की ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख मिलता है, उस से प्रकट होता है कि हमारे समाज के लोगों ने धर्म और देश सेवा के लिये तन, मन, धन की अगणित आहुतियां दी हैं। इन सब का बहुत कुछ मसाला वर्तमान है। भारत के इतिहास की सामग्री के साथ हमारा सामाजिक इतिहास भी बहुत सा नष्ट हो गया है, परन्तु अब भी प्रयास करने से बहुत कुछ साधन मिलने की संभावना है। मेरे विवार से ऐसी दशा में वर्तमान शताब्दि की घटनाओं से ही अपनी जाति का इतिहास लिखना आरम्भ कर दें और पश्चात् पहले का इतिहास लिखा जाय । ज्यों ज्यों पूर्ववर्ती इतिहास की ओर अग्रसर होते जायंगे त्यों त्यों मार्ग साफ होता जायगा और आगे के साधन मिलने की कठिनाइयां कम होती जायगी। और थोड़े ही समय में एक अच्छा इतिहास बन जायगा। क्रमशः हमें उत्पत्ति के समय तक पहुंचने का प्रयास करना होगा। इस प्रणाली से कार्य करने में सफलता मिलने की आशा है। दिल्ली के हमारे श्रीमाल भाई बाबू उमराव सिंहजी टांक, वकोल साहब ने कुछ दिन पूर्व Oswal & Oswal Family नामक एक छोटी पुस्तिका का एक खण्ड और Jain Historical Studies प्रकाशित किया था। तत्पश्चात् उनकी और कोई पुस्तक शायद नहीं छपी है, परन्तु और भी बहुत पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिन से समाज के इतिहास और महत्ता पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। अपने ओसवाल समाज में बहुत से शूर वीर कर्मठ नीतिज्ञ महापुरुष हो गये हैं। भामा शाह, कर्मचन्द वच्छावत, थाहरू शाह भनशाली, रत्नसिंह भण्डारी, अमरचन्द सुराणा, इन्द्रराज सिंघी आदि महा पुरुष सदा चिरस्मरणीय रहेंगे। इसी अजमेर नगरी में ड्रमराज सिंघी ने अपने प्राणों की आहुति देकर जाति और समाज के गौरव की रक्षा की थी। मूता नैनसी प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ 'ख्यात' के रचयिता भी ओसवाल थे। "गोरा बादल की कथा" आदि के कर्ता जटमल नाहर आदि साहित्यिकों की कमी नहीं है। 'प्रेम रत्न' सरीखी रचनायें कर के रत्न कुवर ऐसी विदुषियों ने भी हमारे समाज का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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