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। २३ ] करता हूं कि वे इस कुप्रथा को हटा कर स्त्रियों का शारिरिक, आत्मिक और मानसिक विकाश होने दें।
बाबू जवाहरलालजी लोढ़ा सम्पादक 'श्वेताम्बर जैन' आगरा ने इन शब्दों में इसका समर्थन करते हुए कहा कि हमारे भोले भाइयोंको समझ पर आपलोगों को बिचार करना चाहिये कि वे कहीं २ तो औरतों को इतना ढांक कर निकालते हैं मानो कोई बड़ा पार्सेल एक स्थान से दूसरे स्थान को जा रहा हो और वे ही स्त्रियां माई, धोबी, कहार, मनिहारों के आगे मुह उघाड़े महीन वस्त्र पहने हुए निःसंकोच डोलती फीरती हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि जिनके पैरों की अङ्गलियां कोई घरवाला वा रिस्ते दार नहीं देख सकता है, वही स्त्रियां मुसलमान चूड़ीवालों से निःसंकोच चूड़ियां पहनती है। जो हाथ पति के हाथ में दिया था वह मनिहार के हाथ में देकर चूड़ियां पहन लेती है। कहीं २ तो दिन में घरसे बाहर नहीं होती और रात में निकलती हैं। कहीं लम्बी घूघट निकालती हैं परन्तु पेट ढकने का तनीक भी ध्यान नहीं रखती। परदे के कारण सैकड़ों स्त्रिया तपेदिक को शिकार बन गई हैं, कई गुण्डों के हाथों सताई जाने पर भी कुछ न कर सकीं इत्यादि परदे की खुराइयां बतलाते हुए कहा कि अपनी प्राचीन प्रथा के अनुसार वर्ताव करना चाहिये पहिले मातायें यह बेढंगे परदे नहीं करती थीं; उनकी आंखों में शर्म थी, वह ढोंग करना पसन्द नहीं करती थीं। कहीं अपने किसी देवी देवतों की मूर्तियों के चित्र पर परदा देखा है ? परदा तो मुसलमान शासकों के समय से चला है। अब समय बदल गया है, परदे की आवश्यकता नहीं है इसलिये आप लोगों से प्रार्थना है कि अपने देवियों को परदे रूपी कुप्रथा से हटाकर खतन्त्र बनाइये।
प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। इसके पश्चात् दूसरे दिन की बैठक का कार्य समाप्त हुआ और सभा विसर्जित हुई। संध्या को यथासमय विषय निर्धारिणी समिति की बैठक हुई और अधिक रात्रि तक काम चलता रहा। उसी प्रकार प्रातःकाल में भी समिति की चौथी बैठक बैठी। प्रस्तावों के कार्य समाप्त होने पर सभापतिजी ने सम्मेलन का कार्य भविष्य में सुन्दर रूप से चलाने के लिये फंड की आवश्यकता बताई और सम्मेलन की बैठक में फंड के लिये अपील करने का प्रस्ताव उपस्थित किया ग
तीसरे दीन की बैठक
बग प्रस्ताव इस सम्मेलन के विवार में १८ वर्ष से कम उम्र के लड़के तथा २४ वर्ष से कम उम्र की कन्या का विवाह तथा ४० वर्ष से ऊपर की वृद्धविवाह और एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह समान के लिये बहत ही
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