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________________ [ २२ ] होकर बाधक होते हैं। पुरुषों से अपील करते हुए कि स्त्रियों को उचित खतंत्रता देवें, उन्होंने स्त्रियोंकी तरफ संकेत करते हुए कहा कि प्यारी बहनों! आप भी तो परमात्मा की घनाई हुई हैं, आपमें भी भलाई बुराई सोचने समझने की बुद्धि है। यदि पुरुष ध्यान नहीं दें तो आप सबही मिलकर स्वयं परदा तोड़ने के शुभ कार्य को हाथ में ले, ऐसे कार्य में ईश्वर सहायता करेगा और मैं सेवा करने के लिये तैयार हूं। बाबू इन्द्रचंदजी सुचंती ऐडवोकेट-पटना ने इस प्रस्तावका अनुमोदन करते हुए कहा कि परदा आधुनिक भारतकी सबसे बुरो प्रथा है। जितनी जल्दी हो सके हमें इसे उठा देने की कोशिश करनी चाहिये। भारतका उज्ज्वल स्त्रित्व जो सभी कालमें गौरवान्वित था इसी के कारण अपनी आभा खो रहा है। जिधर आंख उठावें उधर आपको दीख पड़ेगा कि जो बालिका बाल्यकाल में बड़ी प्रतिभाशालिनी, स्वतंत्ररूप से विचरण करने वाली एवं उज्ज्वल दीख पड़ती थी वही अपनी सारी प्रसन्नता, आभा तथा उत्साह खो कर एक शर्मीलो भार्या बन बैठती है। उसे बाह्य जगत् का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता और उसके जीवनका आदर्श और उद्देश्य बिलकुल संकीर्ण हो जाता है। इस दुखदाई प्रथा के विरुद्ध महात्मा गांधी ने भी कई बार अपने विचार प्रकाशित किये हैं। उनका स्पष्ट कथन हैं कि परदे की प्रथा अत्यन्त अमानुषिक. हानिकर और समय की गति के विरुद्ध है। इस सम्बन्ध में बनारस के प्रसिद्ध विद्वान् बाबू भगवानदासजी के कथन को भी नहीं भूलना चाहिये। आप लिखते है कि जैसे २ तुम परदा कम करो, तुम्हें अपना कपड़ा मोटा करना चाहिये। परदे के कारण हमारे पहिनावे में जो फर्क हो गया है जिस के कारण स्त्रियां बारिक और भवकेदार ड्रेस पहनती है उस में भी बहुत शोघ्र परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इस विषय में हमें महात्माजो के आदेशों के अनुसार कार्य करके भारत की रमणियों को फिर से सती सीता एवं दमयन्ती के समान आदर्श बना देना चाहिये। बाबू कुन्ननमलजी फिरोदिया वकील अहमदनगर ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए परदे से पैदा हुई हानियां जैसे स्त्रियों में कम शिक्षा होना, स्वास्थ्य को खो देना, कायरता और हतोत्साहित होना इत्यादि बतलाई और उपस्थित जनता को खूब समझाकर कहा कि यदि तुम अपने बहनों को सिंहनो बनाना चाहते हो तो परदा तोड़ दो। परदा प्रकृति के विरुद्ध है और स्त्रियां स्वयं भी परदा नहीं चाहती है। उन्होंने स्त्रियों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि यहां पर परदे का प्रबन्ध रहते हुए भी कई स्त्रियां परदे के बाहर आकर बैठी हैं और जो परदे में बैठी हुई हैं उनने भी परदे की चान्दनी नीचे गिरादो है। यदि कोई परदा पसन्द करतो तो एक और वान्दनी अपनी अपनी ओर से लगा लेती। एक परदे का प्रस्ताव अनुभबी महिलाने रखा है इससे भी स्वयं सिद्ध है कि स्त्रियों के विचार परदे के विषय में कैसे हैं। परदा न रखने वाली गुजरात की स्त्रियां बड़ी विवक्षण बुद्धि की होती है और हर प्रकार से पति की मदद करने में समर्थ होती हैंदूसरी स्त्रियों की तरह लाचार नहीं होतीं। समाज के प्रतिनिधि सजनों से मैं प्रार्थना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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