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परिशिष्ट-क
स्वागताध्यक्ष का भाषण
महिलाओ और सज्जनो !
पञ्च परमेष्ठी परमात्मा को मन, वचन, काया से नमस्कार कर के और उन्हीं की शरण लेकर मैं आज आप लोगों के सम्मुख उपस्थित हुआ हूँ । यह मेरे लिये बड़े ही सौभाग्य की बात है कि आप के स्वागत का सुवर्ण सुयोग मुझे प्राप्त हुआ है । शब्दों में शक्ति नहीं कि मैं अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर सकू। आप लोग दूर दूर स्थानों से नाना प्रकार के कष्टों को सह कर तीर्थयात्री की तरह, इस समाज-समारोह में सम्मिलित होने के लिये पधारे हैं, अतः आप का दर्शन ही कल्याणकर है । पर मुझे तो आप के स्वागत का भी सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। इस सौभाग्य पर मैं जितना भी गर्व करू, थोड़ा है । आज का दिन मेरे जीवन का एक गौरवपूर्ण भाग है । स्वागतसमिति की ओर से आप का स्वागत करते हुए आज मैं अपने को धन्य मान रहा हूँ ।
आज जिस स्थान पर आप का स्वागत करने के लिये मैं खड़ा हुआ है, वह ऐतिहासिक, प्राकृतिक तथा सामाजिक गौरव में अपनी समता नहीं रखता। भारत के प्राचीन इतिहास के साथ अजमेर शब्द सम्बन्धित है। इस नगर की उत्पत्ति के सम्बन्ध में नाना प्रकार की किम्बदन्तियां प्रचलित हैं। अनेक विद्वानों ने इस सम्बन्ध में गवेषणापूर्ण अनुसन्धान किया है। कर्नल टाड अजमेर नाम की उत्पत्ति की व्याख्या करते हुए एक स्थान पर लिखते हैं कि यह संस्कृत के 'अजय' और 'मेह' शब्द के संयोग से बना है । 'अजय' शब्द का अर्थ होता है नहीं जीत सकने लायक और 'मेर' का ये है पहाड़ी। यह स्थान इतना सुरक्षित था कि यह एक प्रकार से अजय समझा जाता था। इस
. कारण. यह अजयमेरु ( अजमेर) कहा जाने लगा। उन्होंने ही एक दूसरी व्याख्या भी दी
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