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परिशिष्ट-ख PARAMHARITATISTIANE
सभापति का भाषण
थरिहन्ते सरणं पवजामि, सिके सरणं पवजामि। .. साहू सरणं पवजामि, केवलिपपत्तं धम्म सरणं पवजामि॥
बन्धुओ और बहनो!
संसार परिवर्तनशील है। संसार की प्रत्येक बात में, प्रत्येक वस्तु में सदा परिवर्तन होता है। भगवान महावीर ने भी कहा है "तेणं फालेणं देणं समवेग"। इतिहास का कोई भी युग ऐसा नहीं है, जिस में कोई न कोई परिवर्तन दुपा। वास्तव में यदि देखिये तो इतिहास इन्हीं परिवर्तनों का लेखबद्ध वृत्तान्त मात्र है। मगर वीर सम्बत् की इस पचीसवीं शताब्दी में मानव जीवन में जो परिवर्तन हुए है, गत्यात व्यापक हैं। मनुष्य ने जब से भाप और बिजली पर विजय प्राप्त की है. से जिस कार्य महीनों लगते थे, वह आज कुछ दिनों में ही हो जाता है। संसार में होने वाले परिवर्सों में भी बिजली की भांति तेजी घुस गई है। परिणाम स्वरूप माज सारे संसार -- पुथल मची है। मनुष्यों के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन में जमीन आसमान के परिवर्तन उपस्थित हो गये हैं। माज संसार का प्रत्येक जीवित देव और प्रत्येक जीवित जाति अपने को नवीन परिवर्तनों भौर नवोन परिस्थितियों के मक बनाये में व्यस्त हैं। परिवर्तन प्रकृति का अटूट नियम है। जो जातियां अपो जीवन को समय और परिस्थितियों के अनुकूल नहीं बनानी, वे मष्ट हो जाती है। बाब सारे प्राच्य देशों
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