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________________ [ ५३ ] स्वस्थ और बलवान बनें तो और समस्त कार्यों में भी अवश्य फलीभूत होंगे। इसी प्रकार हमारी बहनों को भी स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान रखना चाहिये। आजकल हमारे समाज की स्त्रियों में स्वास्थ्य हानि अधिक परिमाण में देखी जाती है । यदि वे भी शिक्षा के साथ साथ कुछ शारीरिक परिश्रम जैसे कि टहलना, शुद्ध वायु सेवन आदि अनुकूल व्यायाम का अभ्यास रखें तो थोड़े समय में उनकी भी स्वास्थ्योन्नति हो सकेगी । जब कि समाज का उत्थान और पतन माताओं और बहनों के हाथ में है तो उनके स्वास्थ्य पर उचित ध्यान देने के विषय में कोई मतभेद नहीं हो सकता । कुछ आजकल देश में स्थान २ पर सेवा समितियां स्थापित हैं I इन सेवा समितियों में तो विशेष जातियों, सम्प्रदायों या समाजों की है और कुछ सर्वसाधारण को है । सर्वसाधारण को सेवा समितियों में कहीं कहीं पर हमारे जैन नवयुवक भी स्वयंसेवकों का कार्य करते हैं। क्या ही अच्छा हो कि जहां कहीं भी हमारे समाज के लोग पर्याप्त संख्या में हों, वहां पर इस प्रकार की सेवा समितियां स्थापित की जांय । चेष्टा करने से समाज में ऐसे नवयुवकों की कमी न होगी जो अपना थोड़ा सा समय - वह समय जिसे वे अक्सर गपशप करने अथवा ताश खेलने में उड़ा देते हैं- देकर समाज की सेवा कर सकें। विवाह शादी, मी तथा तिथि-त्यौहार के अवसरों पर ये स्वयंसेवक अपने भाइयों को सहायता दे सकते हैं । इन्हीं सेवा समितियों के द्वारा व्यायामशालाओं, स्वास्थ्यप्रद खेलों और मनोरंजन आदि का प्रबन्ध आसानी से हो सकता है। इस कार्य में व्यय भी अधिक न होगा, जिसे स्थानीय सज्जन थोड़ी सी उदारता से अनायास उठा सकते हैं। मनुष्य सामाजिक जीव है । उस की सभ्यता और संस्कृति की नींव समाज पर ही है। समाज का अवलम्ब न रहने से मनुष्य का मनुष्यत्व स्थिर नहीं रह सकता । यही कारण है कि सामाजिक वहिष्कार बहुत कठोर दण्ड समझा जाता है। कभी कभी मनुष्य राज-दण्ड की उपेक्षा कर जाता है, परन्तु समाज-दण्ड के आगे उसे अपना मस्तक झुकाना ही पड़ता है। सर्वसाधारण पर समाज का जो व्यापक प्रभुत्व है, उस से हम सब भलो भांति परिचित हैं । समाजके प्रभुत्व और समाज की क्षमता के सामने बड़े बड़े शक्तिशाली शासकों को भो पराजित होना पड़ा है। समाज के गुरुत्व और उस को व्यापकता के विषय में आप लोगों से कुछ अधिक कहना व्यर्थ सा ही है। क्योंकि आज आप सज्जनों का इतनी विशाल संख्या में यहां एकत्रित होना ही समाज की गुरुता, उपयोगिता और प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है । मतभेद को दूर कर के, एक अब मैं अपने समाज की कुछ कमजोरियों की ओर आप महानुभावों का ध्यान आकर्षित करता हूं। सम्भव है, कुछ सज्जन मेरी बातों से सहमत न हों, परन्तु सभा और सम्मेलन का उद्देश्य हो यह होता है कि विचार विनिमय के द्वारा सर्वमान्य प्रणाली निकाल कर उसके द्वारा समाज का हित विषयों का उल्लेख करूंगा, जिन का सुधार इस समय समाज हो रहा है। किया जाय । अब मैं उन लिये नितान्त आवश्यक के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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