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पानेका उपाय सोंच रहे थे। कोई भी व्यक्ति या समाज नहीं चाहता कि उन्नति की ओर अग्रसर होने की वह चेष्टा न करे । अवनति को दूर करने का प्रत्येक व्यक्ति हर समय विचार करता है । साधनों की प्रतिकूलता के कारण इच्छापूर्ति अथवा लक्ष्य प्राप्ति के लिये उसे भले ही अधिक दिनोंतक प्रतीक्षा करनी पड़े।
ओसवाल समाजके सम्बन्ध में भी यही बात थी । यों तो हमलोग बहुत दिनों से सामाजिक संगठन का उपाय सोचा करते थे लेकिन दुर्भाग्यवश अथवा अपनी अकर्मण्यता के कारण हमको इस सम्बन्ध में व्यवहारिक रूप से कुछ करने का अवसर नहीं मिला था। फिर भी सामाजिक संगठन की आग मन ही मन सुलग रही थी और यह निश्चित सा था कि किसी न किसी समय यह अवश्य प्रज्ज्वलित होगी और इसके द्वारा सामाजिक बुराइयों, कमजोरियों और अभावों का सहज में ही यथाशीघ्र नाश हो सकेगा ।
इस स्थल पर यह कह देना भी आवश्यक है कि इधर कई वर्षों से भिन्न २ व्यक्तियों के द्वारा अपने सामाजिक संगठन का उद्योग हुआ था । भिन्न २ स्थानों में संस्थाओं तथा सम्मेलनों की उत्पत्ति होती थी, लेकिन कई कारणों से उनमें कोई भी अखिल भारतवर्षीय रूप न पा सका और न किसी का संचालन ही अधिक दिनों तक हो सका । इन संस्थाओं और सम्मेलनों के दीर्घजीवी नहीं होने के कई कारणों में से हम मुख्यतः दो कारणों का उल्लेख कर सकते हैं। पहला तो यह था कि उनमें सर्वव्यापी सामाजिक भाव न थे। किसी संस्था का जन्म धार्मिक आधार पर हुआ था तो किसी का जन्म समाज के किसी श्रेणी विशेष को लेकर। इसलिये इन्हें पूर्ण सहयोग अथवा सहानुभूति नहीं मिल सकी। दूसरा कारण यह था कि इनका सम्बन्ध किसी प्रान्त विशेष अथवा स्थान विशेष से था अतः इन्हें अखिल भारतवर्षीय महत्व प्राप्त न हो सका ।
पिछले अनुभवों से लाभ उठाना समाज के लिये आवश्यक था । इसके साथ ही समाज के मनस्वी व्यक्ति यह अनुभव कर रहे थे कि किसी व्यापक उद्योग तथा संगठन के बिना समाज की बिगड़ी हुई दशा को सुधारना कठिन है लेकिन अखिल भारतवर्षीय उद्योग के लिये कोई अग्रसर नहीं हो रहा था । एक देश व्यापी संगठन के उद्योग का बोझ अपने सिर पर लेकर कोई भी समाज को विवशता के कष्ट से मुक्त करने का साहस नहीं करता था। इस समय अचानक कुछ लोगों का विचार व्यवहारिक रूप धारण करने लगा । प्रारंभ में यह न सोचा गया था कि जिस प्रकार एक छोटे से वट वीज के द्वारा विशाल वटवृक्ष की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार चंद उत्साही लोगों के पारस्परिक परामर्श के फलस्वरूप एक अखिल भारतवर्षीय संस्था की उत्पत्ति हो सकेगी परन्तु इस अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन की उत्पत्ति ऐसे ही हुई ।
घटना यह हुई कि गत जाड़े के दिनों में आगरा निवासी बाबू दयालचंदजी जौहरी अजमेर पधारे। राय साहेब कृष्णलालजी बाफणा, बाबू दयालचन्दजो जौहरी तथा बाबू अक्षयसिंहजी डांगी के बीच समाज की वर्त्तमान अवस्था पर बातें हुई। इसी परामर्श ने धीरे २ गम्भीर रूप धारण किया और एक अखिल भारतवर्षीय सम्मेलन करने की तरंग मनमें
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