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उठी । इसी के फलस्वरूप अजमेर के कई अन्य उत्साही सज्जनों से भी बातें हुई और बुलेटिन प्रकाशित करना स्थिर हुआ। वह बुलेटिन ( नं० १) भिन्न २ प्रान्तों तथा नगरों के प्रमुख व्यक्तियों तथा उत्साही कार्यकर्त्ताओं के पास भेजी गई और सम्मेलन के सम्बन्ध में उन महानुभावों की सम्मति मांगी गई ।
समाज के सौभाग्यवश सम्मेलन के सम्बन्ध में कई स्थानों से आशावद्ध क सम्मतियां आई । इसले अजमेर के कार्यकर्त्ताओं का उत्साह और भी बढ़ा और निकट भविष्य में ही वे सम्मेलन का अधिवेशन करने का विचार करने लगे । उत्साह तो बढा, सम्मेलन करने की उत्कट अभिलाषा लोगों के हृदय में उठो परंतु इसे व्यवहारिक रूप कैसे दिया जाय यह प्रसंग उपस्थित हुआ । यहि उत्साहपूर्ण सम्मतियों के साथ २ सहायता के भी वचन मिलते तो दूसरी बात होतो और मार्ग में किसी प्रकार को प्रबल बाधा दिखलायी नहीं देती । लेकिन ऐसी बात न थी । सहायता के लिये कोई सामने उपस्थित न था । ऐसो दशा में केवल निजी बल पर इस महान् कार्य का दायित्व अपने सिर पर उठाने में गिने गिनाये स्थानीय कार्यकर्त्तागण आगा पीछा करते थे । परन्तु उत्लाह तथा समाज सेवा की भावना उनमें प्रबल थी। इसके साथही सम्मिलित स्वर से संस्था को आवश्यकता बतला कर समाज के Toranन्य व्यक्तियों ने उनके उत्साह को और भी बढा दिया था । उनलोगों के हृदय में यह भावना उठी कि जब समाज को सम्मेलन की आवश्यकता है तो बाधाओं के भय से आवश्यकता पूर्ति की ओर अग्रसर न होना कायरता होगी । समाज की विराट शक्ति में अटल विश्वास रखते हुए वे कार्यक्षेत्र की ओर अग्रसर हुए ।
सम्मेलन करने के प्रस्ताव को कार्यरूप में लाने के लिये अजमेर के कार्यकर्त्ता उत्सुक हो उठे और इस सम्बन्ध में विचार करने के लिये एक सभा करने का निश्चय हुआ । कुछ सज्जनों के हस्ताक्षर से एक सूचना छपत्रा कर बांटी गई और संवत् १६८६ चैत शुक्ल ४ (१० अप्रैल लि-१९३२ ई० ) के साढ़े सात बजे संध्या समय लाखनकोठड़ी में बाबू मूलचन्दजी बोहरा के सभापतित्व में एक सभा हुई। इस सभा में बुलेटिन नं० १ तथा उस पर आई हुई सम्मतियां पढ़कर सुनाई गई । इसके साथ इस विषय पर भी विचार हुआ कि सम्मेलन करने का आयोजन किया जाय या नहीं और यदि करना आवश्यक हो तो कहां और कब होना चाहिये । प्रस्तावित सभा के नामकरण के सम्बन्ध में भी परामर्श हुआ और दीर्घकाल तक वाद विवाद होता रहा । पश्चात् यह स्थिर हुआ कि सम्मेलन का आयोजन किया जाय तथा इसका प्रथम अधिवेशन अजमेर में ही हो। कार्त्तिक कृष्ण १,२,३ तदनुसार ताः १५-१६-१७ अक्टूबर सन् १६३२ को बैठक का दिन स्थिर किया गया और दूसरे ही दिन रात्रि को स्वागत समिति का संगठन करने के लिये एक सभा बुलाने का निश्चय करके सभा विसर्जित हुई ।
इसके अनुसार चैत्र शुक्ल ५ ताः ११ अप्रैल १९३२ ई० को बाबू मूलचंदजी बोहरा के सभापतित्व में फिर एक सभा हुई। उसमें स्वागत समिति के पदाधिकारियों का चुनाव हुआ और स्वागत समिति सम्बन्धी कुछ नियमादि बनाये गये !
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