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________________ [ १७ ] यह कर्तव्य है कि किसी तरह भी उसकी पूर्ति करे और सब मिल कर उसके खानदान की धन जन से सहायता कर उसका वियोग भुला दे। इसके विपरीत हमारे समाज के बड़े बुढ़े उसका घर खाली कराकर सदा के लिये ही उसकी पत्नी, बालबच्चों को मोहताज़ और दुःखी करने का महा पाप अपने सिर लेते हैं। किसी धनी व्यक्ति को पैसा खर्च करने में आपत्ति न हो तो इसके यह माने नहीं कि गरीब आदमियों को भी पिस जाना पड़े। मृत्यु सम्बन्धी जोमनवार जैसे कु-रिवाज़ तथा मौकान के अवसर पर आये हुए सम्बन्धियों को मिलणी, जुहारी, पगे लगाई इत्यादि लेन देन के दस्तूर सर्वरूप से बन्द करने के लिये समाज को कटिबद्ध हो जाना चाहिये अन्यथा समाज के लोगों की स्थिति बड़ी भयंकर हो जायगी। प्रस्ताव को.बाबू राजमलजी ललवाणी ने समर्थन किया और मृत्यु सम्बन्धी जीमनवारों की बुराइयां बतलाते हुए कहा कि मृत्यु भोज के कारण हमारे समाज की स्थिति डावांडोल हो गयी है। देश के कई भागों में इस प्रथा ने इतना जोर जमाया है कि लोग इसके लिये अपनो पैतृक सम्पत्ति से हाथ धो बैठने को तैयार हो जाते हैं। हमारे देश में अधिकांश लोगों की आर्थिक परिस्थति कैसी खराब है, यह बतलाने की आवश्यकता नहीं। इससे आप सहज ही में समझ सकते हैं कि इसके फलस्वरूप हमारे कई भाई भारो कर्ज के बोझ से लद कर शोघ्र ही मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं, कई बाजार में अपनीशा ख खो बैठते हैं और कई अपने को बड़ी दुखमय स्थिति में पाते हैं। इस कुप्रथा को उठाने के लिये उन्होंने जोर दिया। बाबू नथमलजी चोरड़िया ने समर्थन करते हुए कहा कि कैसे २ धनिक एक २ नुकते में पचास २ हजार रुपया खर्च कर देते हैं और अपने गरीब स्वजातीय भाइयों के सामने बुरा उदाहरण रखते हैं। ऐसी अमानुषिक प्रथा को एकदम जड़ से उखाड़ कर अलग कर देना चाहिये। बाबू सुगनचन्दजी नाहर ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि उपस्थित सजनों में से कई लोगों के दिल में ये भावनायें उठती होंगी कि जब ये रिवाज़ कई वर्षों से चले आते हैं तो क्या हमारे पूर्वज ऐसे निर्बुद्धि थे कि उनको इन प्रथाओं के अवगुण दिखाई नहीं देते थे? और उन्होंने इनको क्यों सामाजिक रूप दिया। उन्हों ने बतलाया कि हमारे पूर्वजों का समय इस समय से बिलकुल भिन्न था और उस समय की जरूरतों को भई दृष्टि रखते हुए उन्होंने इन रिवाज़ों को कायम किया। पुराने जमाने में न रेल थी न तार और न आजकल ऐसी दूसरी सुविधायें। लोगों को एक जगहसे दूसरी जगह जाने में तथा दूसरे नगरों के लोगों के कुशल समाचार मंगाने में बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती थी, खजातीयपन का भाव भी उन दिनों जोर पर था जिससे विवाह तथा बुड्डों के मरने पर मौसर ऐसे अवसर आसपास की विरादरी को इकट्ठा करने और परिचय करने के हेतु चल पड़े। ऐसे अवसरों पर मिलने से उनके लड़के लड़कियों के सम्बन्ध जोड़ लिये जाते थे और आपत्ति के समय एक दूसरे की सहायता सम्मिलित रूप में करने का प्रबन्ध कर सकते थे। उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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