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________________ [ १६ ] भारी उपकार किया है। उन्होंने उपयुक्त शब्दों में उपस्थित जनता को आदेश दिया कि भविष्य में अछूत कहलानेवाले भाइयों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें जिससे महात्माजी का उद्देश्य सफलीभूत हो और देश का कल्याण हो। उन्होंने समझाया कि जैन धर्म के अन्दर तो अछूतपन है ही नहीं ओर ओसवाल जाति जिनमें अधिकतर जैनी हैं उनका परम कर्तव्य है कि वे अछूतोद्धार के देशव्यापी आन्दोलन में अपना क्रियात्मक सहयोग प्रदान करें जिससे महात्माजी को अपना व्रत पुनः न आरम्भ करना पड़े। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। दूसरा प्रस्ताव यह महासम्मेलन मृत्यु सम्बन्धी किसी भी प्रकार के जीमनवार को नितान्त अनावश्यक, हानिकर, समाज पर भारस्वरूप तथा जैन सिद्धान्तों के प्रतिकूल समझता है और समाज से अनुरोध करता है कि इस प्रकार के जीमनवारों को शीघ्र उठा दें और मौकान आदि अवसरों पर मिलणी, जुहारी, पगे लगाई इत्यादि लेन देन के दस्तूर तुरत बन्द कर दें। यह प्रस्ताव बाबू पूनमचंदजी नाहटा भुसावलवालों ने रखा और बतलाया कि ओसवाल समाज में प्रचलित मृत्यु सम्बन्धी जीमनवार समाज पर कलरूप है। यह केवल धर्म विरुद्ध ही नहीं है परन्तु आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी इतना निकम्मा और हानिकारक है कि उनकी बुराइयां बताने के लिये कोई भी उपयुक्त शब्द नहीं है। ऐसे घातक रिवाजों के कारण गरीब बालक बालिकायें जीविका तथा शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और बेचारी विधवायें खर्च के लिये दूसरों का मुंह देखती हुई घोर दुःख का अनुभव करती है। आश्चर्य तो यह है कि आदमी घर से जाता है, आमदनी का सिलसिला दृढ़ता है और तरत ही दावत की तैयारी होती है। गांवों में तो यहां तक ज्यादती:होती है कि जायदाद, जेवर बेच कर भी क्रिया की रस्म अदा की जाती है। समाज को ऐसे २ अमानुषिक रिवाज़ों को तुरत बन्द करना चाहिये और यह भी ध्यान रखना चाहिये कि ऐसे अवसर पर मौकान आये हुए रिस्तेदारों को मिलणी, जुहारी, पगे लगाई इत्यादि लेन देन के दस्तूर भी बन्द करें क्योंकि यह अवसर ढाढ़स बंधाने के लिये होता है, आमदनी करने के लिये नहीं। प्रस्ताव को अनुमोदन करते हुए वकील बाबू कुन्ननमलजो फिरोदिया, अहमदनगरवालों ने कहा कि समाज का जितना पैसा नुकते आदि निउपजाऊ कामों में खर्च हो जाता है वह यदि बालबच्चों की परवरिश और शिक्षा में ख़चे हो तो समाज का कल्याण हो सकता है। क्या ऐसे नाजुक समय में जब कि संसार भर में आर्थिक संकट छाया हुआ है, हमारा गिरा हुआ समाज अपने आप को न संभालेगा और मरने के उपलक्ष में दावतें खाना बन्द न करेगा? नुकता के लिये न धर्म में हो आदेश है, न साधारण विदेक ही तकाज़ा करता है। जब किसी के घर का आदमो मरे तो समाज का तथा उसके सम्बन्धियों का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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