SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४] जमाने में खाद्य पदार्थ इतने सस्ते थे कि लोगों का जीमन कराना भारस्वरूप नहीं होता या। अब समय बिल्कुल बदल गया है। पहले से बिपरीत कारण उपस्थित हैं बल्कि सर्व कारण ऐसे उत्पन्न हो गये हैं जो बतलाते हैं कि इन रिवाजों का न रहना ही समाज के लिये हितकर हैं और इन्ही रिवाजों के विद्यमान रहने के कारण समाज दिनोंदिन अवनति की ओर जा रहा है। हमें भी अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने प्रचलित रिवाजों की बदलनी चाहिये। समय की गति से बिपरीत चलने वाला मनुष्य या समाज नहीं ठहर सकता और हमारा भी इसी में कल्याण है कि समय को पहचान कर हम तुरत उसके अनुसार काम करने लगे। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। . तीसरा प्रस्ताव देश तथा समाज की वर्तमान आर्थिक स्थिति को दृष्टि में रखते हुएं यह सम्मेलन अनुरोध करता है कि सम्बन्धं और विवाह आदि प्रसंगों परं जी खर्च किया जाता है उस में कमी की जाय और इस उद्देश्य से निम्नलिखित बांतों पर विशेष ध्यान दिया जाय : (क) गाजे बाजे आदि आडम्बर में कमी की जाय । (ख) वेश्यानत्यं, थियेटर आदि, आतिशबाजी, फुलवाडी, दांत का चूड़ा आदि एकदम बन्द किया जाय । (ग) बरातियों की संख्या घटाई जाय । (घ) जीमनवारों में खर्च कम किया जाय । (च) नावां, त्याग आदि में अधिक खर्च न करना, इस उद्देश्य से प्रत्येक स्थान के समीज को यह उचित है कि उपरोक्त तथा इसी प्रकार के अन्य निरर्थक खर्ची पर नियंत्रण करे। (छ) मिलणी, जुहारी, पहरावणी, पैर धुलाई इत्यादि अवसरों पर जो रुपया कपड़ा आदि दिया जाता है, उसे कम किया जाय । (ज) सगाई के बाद कन्या के लिये जो जेवर पड़ले के पहले भेजा जाता है वह न भेजा जावे। यह प्रस्ताव वयोवृद्ध समाज सेवी बाबू गुलाबचन्दजी ढड्डा एम० ए० ने रखते हुऐ कहा कि कई अच्छी २ गृहस्तियां अपने लड़के लड़कियों की शादियों में अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करने के कारण किंगड़ गई है। आजकल जब कि लोगों के रोजगार कम हो में हैं तो यह बहुत जरूरी है कि उनके खर्चे में भी कमी हो जावे। उन्होंने बतलाया कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy